लेखक-अरविंद जयतिलक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान भारत राष्ट्र के जनमन को हर्षित और गौरान्वित करने वाला है। चैधरी चरण सिंह का सम्मान देश के उन करोडों किसानों और मजदूरों का सम्मान है जो कठिन परिश्रम और मेहनत से देश को पेट भरते हैं। मोदी सरकार बधाई की पात्र है कि उसने चैधरी चरण सिंह के साथ-साथ आर्थिक सुधार के सूत्रधाार पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया है।

मोदी सरकार समाजवादी पुरोधा जननायक कर्पूरी ठाकुर और देश के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवानी को भी भारत रत्न दिए जाने का ऐलान कर चुकी है। निःसंदेह सरकार की पहल स्वागतयोग्य और सराहनीय है। किसानों के मसीहा चैधरी चरण सिंह का इतिहासपरक मूल्यांकन करें तो उनका राजनीति के विराट संसार में प्रवेश तब हुआ जब मोहनदास करमचंद गांधी ब्रिटिश पंजे से भारत को मुक्त कराने की जंग लड़ रहे थे।

1930 में गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान चरण सिंह हिंडन नदी पर नमक बनाकर उनका समर्थन किया। वे गांधी जी के साथ जेल की यात्रा की। गुप्त संगठन खड़ा कर ब्रितानी हुकुमत को चुनौती दी। इससे खौफजदा ब्रितानी ताकत उन्हें गोली मारने का फरमान सुनाया। लेकिन उनके इंकलाबी तेवर कमजोर नहीं पड़े। उन्होंने डटकर ब्रितानी हुकुमत की चुनौतियों का आंलिगन किया। जनता के बीच सभा करते हुए एक दिन पकड़ लिए गए। राजबंदी के रुप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। किंतु इस सजा कालखंड का भी उन्होंने सदुपयोग किया।

जेल में रहकर ‘शिष्टाचार’ नामक ग्रंथ की रचना की जो भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के विविध पहलूओं का प्रकाश डालती है। चरण सिंह की अंग्रेजी भाषा पर गजब की पकड़ थी। उन्होंने ‘अबॉलिशन ऑफ जमींदारी’ ‘लिजेंड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडिया पॉवरर्टी एंड इट्स सॉल्यूशन’ नामक पुस्तकों का लेखन किया। आजादी के उपरांत वे किसानों के ताकतवर नेता बनकर उभरे और भारत के किसानों ने उनमें एक मसीहा की छवि देखी।

उनकी छवि एक गंवई व्यक्ति की थी जो सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखता था। 1952 में उन्हें डा0 संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में राजस्व तथा कृषि विभाग का उत्तरदायित्व संभालने का मौका मिला। इस उत्तरदायित्व का भली प्रकार निर्वहन किया। उनके द्वारा तैयार किया जमींदारी उन्मूलन विधेयक कल्याणकारी सिद्धांत की अवधारणा पर आधारित था। इस विधेयक के बदौलत ही 1 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को उनका अधिकार मिला।

लेखपाल पद के सृजन का श्रेय भी चैधरी चरण सिंह को ही जाता है। किसानों के इस मसीहा ने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 1960 में भूमि हदबंदी कानून को लागू कराने में भी इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। आसमान छूती लोकप्रियता के दम पर वे 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने समाज व अर्थव्यवस्था के गुणसूत्र को बदलने का मन बना लिया।

उन्होंने किसानों, मजदूरों और हाषिए पर खड़े लोगों की समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण फैसले लिए। कुटीर उद्योग के विकास की नीतियां बनायी। 17 अप्रैल 1968 को वे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिए लेकिन जनमानस के नायक बने रहे। किसानों में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गयी।

मध्यावधि चुनाव में वह ‘किसान राजा’ के नारे के साथ मैदान में उतरे और  विरोधियों पर शानदार जीत अर्जित की। 17 फरवरी 1970 को वे पुनः मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने कृषि में आमूलचुल परिवर्तन का रोडमैप तैयार किया। उनका मानना था कि ‘गरीबी से बचकर समृद्धि की ओर बढ़ने का एकमात्र मार्ग गांव और खेतों से होकर गुजरता है। चरण सिंह अपनी योग्यता और लोकप्रियता के दम पर केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने।

पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उनका हक दिलाने के लिए मंडल और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वे वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री बने और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। 28 जुलाई, 1979 को वे देश के प्रधानमंत्री बने। वह प्रधानमंत्री के पद पर कुछ ही दिन रहे। इंदिरा गांधी ने बिना बताए ही उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी ईमानदार और सिद्धांतवादी राजनेता की छवि को खंडित नहीं होने दी। वे एक राजनेता से कहीं ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे।  

फोटो-अरविंद जयतिलक

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