दिल्ली महरौली सड़क से हौजखास की ओर जाते समय एक ऊंचे मैदान पर उत्तर की ओर दो मकबरे दिखाई पड़ते हैं, जिनमें से एक बड़ा है और दूसरा छोटा(Dadi Poti Tomb) है। अनगढ़े पत्थरों से निर्मित और पलस्तर किए गए इन मकबरों की खास बात यह है कि इसमें से पोती के मकबरे को पहले बनवाया गया था और बाद में दादी का मकबरा बनवाया गया। अब इन मकबरे को क्यों दादी पोती का मकबरा कहते हैं इसके पीछे कई दंत कहानियां हैं। हौजखास में रहने वाले लोगों के मुताबिक इस पार्क में दादी पोती खेला करती थी इसलिए इसके अंदर स्थित मकबरे को दादी और पोती का नाम दे दिया गया। दादी पोती के निर्माण शैली को देखते हुए जानकार बताते हैं कि यह मध्य काल में बनवाया गया था यानि दोनों स्मारकों का निर्माण 1321 से लेकर 1526 के बीच हुआ था। हालांकि यह पता नहीं कि उनमें कौन दफन है। इतिहास की किताबों में ऐसा भी कहा जाता है कि इनमें बड़ा वाला मकबरा मालकिन का है और छोटा वाला मकबरा नौकरानी का।

वास्तुकार बताते हैं कि इन स्मारकों के पूर्व, उत्तर और दक्षिण में द्वार हैं और जिनके अग्रभाग मंजिलों के आकार के सदृश हैं, लोधी काल के चौकोर मकबरों के नमूनों को देखा जा सकता है। हर काल और राजा का निर्माण करने का अपना स्टाइल होता था, फिरोजशाह तुगलक ने जो भी स्मारक बनवाएं वो मजबूत होने के साथ साथ भव्य होते थे। उसी स्टाइल को दादी के मकबरे में देखा जा सकता है वहीं, लोधी काल के मकबरे में भी गुंबद के साथ साथ आर्क का इस्तेमाल होता था। गुंबद और चौकोर नक्शे में बने यह स्मारक वहां से गुजरने वाले लोगों के मन में कई सवाल जरूर खड़ा कर देते हैं कि आखिर कौन दफन हैं इनमें?

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