किशोरी अमोनकर ने अपनी मां और प्रसिद्ध गायिका मोघूबाई कुर्डीकर की प्रेरणा से शुरू की अपनी संगीत यात्रा
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
किशोरी जी की जिंदगी से जुड़ी खास बातें
किशोरी अमोनकर ने जयपुर-अतरौली घराने की परंपरागत शैली को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
उनकी गायकी में तकनीकी शुद्धता और भावप्रवणता का अद्वितीय समन्वय था।
उन्होंने विविध गुरुओं से तालीम लेकर अपनी शैली को व्यापक और समृद्ध बनाया।
उनकी ‘रोमानी शास्त्रीयता‘ शैली ने शास्त्रीय संगीत को जनप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई।
1957 में अमृतसर में प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शन से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक उनकी ख्याति रही।
किशोरी अमोनकर भारतीय शास्त्रीय संगीत की उन महान हस्तियों में से हैं जिन्होंने संगीत की परंपरागत धारा में अपनी अनूठी शैली और गहरी समझ से एक नया आयाम जोड़ा। जयपुर-अतरौली घराने की प्रमुख गायिका के रूप में प्रसिद्ध, उन्होंने खयाल गायकी में अपनी ‘रोमानी शास्त्रीयता’ के लिए विशेष पहचान बनाई। उनकी गायकी न केवल तकनीकी रूप से परिपूर्ण थी, बल्कि उसमें भावप्रवणता का भी अद्वितीय समन्वय था। किशोरी अमोनकर की संगीत यात्रा, उनकी अद्भुत साधना और गायन में उनके प्रयोग, भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
जन्मस्थान
जयपुर-अतरौली घराने की प्रतिष्ठित गायिका और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में ख़याल शैली की प्रमुख प्रतिनिधि किशोरी अमोनकर का जन्म 10 अप्रैल 1931 को हुआ था। भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान को विशेष माना जाता है।
किशोरी अमोनकर ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपनी माता और जानी-मानी गायिका मोघूबाई कुर्डीकर से प्राप्त की। उनकी माता ने न केवल उन्हें घराने की परंपरागत शैली सिखाई, बल्कि उन्हें संगीत के प्रति अनुशासन और गहराई का भी बोध कराया।
शास्त्रीय प्रशिक्षण और संगीत का विकास
किशोरी अमोनकर ने अपने गायन में विविधता लाने के लिए विभिन्न गुरुओं से शिक्षा ली। उन्होंने आगरा घराने के उस्ताद अनवर हुसैन खाँ से विशेष रागों का अध्ययन किया और पं. शरतचंद्र आरोलकर, अंजनीबाई मालफेकर जैसे महान संगीतज्ञों के साथ संपर्क स्थापित किया, जिससे उनकी गायकी में तकनीकी गहराई और भावप्रवणता का संयोग बना।
किशोरी अमोनकर की गायन शैली ‘रोमानी शास्त्रीयता’ के रूप में जानी जाती है, जिसमें उन्होंने अपनी मौलिक सृजनात्मकता और पारंपरिक ज्ञान का अद्वितीय मिश्रण किया।
1952 में शुरू हुआ संगीत सफर
1952 में उन्होंने आकाशवाणी से अपने गायन करियर की शुरुआत की, और 1957 में अमृतसर में अपने पहले सार्वजनिक प्रदर्शन के बाद उन्हें व्यापक पहचान मिली। उन्होंने देश-विदेश में विभिन्न मंचों पर अपनी प्रस्तुतियों से ख्याति अर्जित की।
किशोरी अमोनकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत में भावनात्मकता और लयात्मकता को जोड़ते हुए जनसामान्य तक इसे पहुँचाने का सफल प्रयास किया।
शैली और योगदान
उनका मानना था कि शास्त्रीय संगीत को केवल कर्णप्रियता तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसमें सरसता और गहराई भी होनी चाहिए। उनकी गायकी में एक ओर जयपुर-अतरौली घराने की तकनीकी शुद्धता देखने को मिलती है, तो दूसरी ओर उन्होंने अपनी शैली में नई प्रयोगशीलता जोड़ी। उनकी इस विशेषता के कारण वे शास्त्रीय संगीत के पारंपरिक नियमों को भी नया रूप देने में सफल रहीं।
किशोरी अमोनकर भारतीय शास्त्रीय संगीत में अपने योगदान के लिए सदा याद की जाएँगी। उनकी गायन शैली ने न केवल जयपुर-अतरौली घराने को मजबूती दी, बल्कि एक नई दिशा भी प्रदान की। उनके शास्त्रीय गायन में परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम था, जो संगीत प्रेमियों और विशेषज्ञों दोनों के लिए प्रेरणादायक था।
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