Qutub Minar Complex and Qutab Minaret Tower. The Qutub Minar was constructed in the year 1192 out of red sandstone and marble.Is the tallest minaret in India, with a height of 72.5 meters (237.8 feet). Qutub Minar, Delhi, India.

कुतुब मीनार के निर्माण को लेकर रहा है विवाद

कुतुब मीनार के बारे में दो ख्याल हैं। हिंदुओं का कहना है कि इसे पृथ्वीराज ने बनवाया और मुसलमानों का कहना है कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1193 ई. में बनवाना शुरू किया। कई कहते हैं कि 1200 ई. में पूरा करवाया। मालूम होता है कि कुतुबुद्दीन ने केवल एक ही खंड बनवाया था। इस खंड पर उसका और गोरी का नाम ख़ुदा है। अल्तमश ने दूसरा, तीसरा और चौथा खंड बनाया। इन खंडों पर उसका नाम ख़ुदा हुआ है। फीरोज शाह ने इस मीनार की मरम्मत करवाई, जबकि बिजली गिरने से 1368 ई. में इसको भारी हानि पहुंची थी। शायद पांचवें, छठे और सातवें खंड को भी उसी ने बनवाया। मीनार पर फिर बिजली गिरी और उसे हानि पहुंची 1403 ई. में सिकंदर लोदी ने मीनार की फिर मरम्मत करवाई। मीनार 1782 ई. और 1803 ई. के भूकंपों से खस्ता हालत में हो गई। 1828 ई. में मेजर राबर्ट स्मिथ ने 17 हजार रुपये की लागत से इसकी मरम्मत करवाई। उसके बाद 1829 ई. और 1904 ई. में फिर दो बड़े भूकंप आए, मगर इन दोनों में मीनार को कोई हानि नहीं पहुंची।

मीनार की बुलंदी 238 फुट 1 इंच है। जमीन पर इसका व्यास 47 फुट 3 इंच है और ऊपर चोटी नौ फुट। इस वक्त इसके पांच खंड हैं और चार छज्जे दो खंड उतार दिए गए। यह लाल पत्थर की बनी हुई है और बीच-बीच में संगमरमर भी काम में लाया गया है। चौथा खंड संगमरमर का है। पहली मंजिल 94 फुट 11 इंच ऊंची है। दूसरी 50 फुट 8.5 इंच और तीसरी 40 फुट 1.5 इंच। आखिर की दो 24 फुट 4.5 इंच और 22 फुट 4 इंच ऊंची हैं। मीनार में चढ़ने को उत्तरमुखी दरवाजा है। उसमें 379 सीढ़ियां है। मीनार के चौतरफा खुदाई का काम है, जिसमें कुतुबुद्दीन और गोरी की प्रशंसा तथा कुरान की आयतें व ईश्वर के 99 नाम लिखे हुए हैं। मीनार का नाम या तो इसके बनाने वाले के नाम पर पड़ा या पृथ्वी के सिरे को भी कुतुब कहते हैं, इसलिए उसे कुतुब मीनार कहा गया या उस वक्त एक फकीर कुतुब साहब थे, उनके नाम पर इसका यह नाम पड़ा। अधिक संभावना यही है कि उसके निर्माता कुतुबुद्दीन के नाम पर ही इसका नामकरण हुआ।

इसका छठा खंड, फीरोज शाह की बुर्जी, 1794 ई. तक मौजूद था जो 12 फुट 10 इंच ऊंचा था। यह 1808 ई. के भूकंप में गिर पड़ा। यह फिर कब बना, इसका पता नहीं चलता। सातवां खंड बिल्कुल सीधा-सादा शीशम की लकड़ी का मंडवा था, जिस पर झंडा लहराया करता था। इस मंडवे के थम आठ फुट ऊंचे थे और झंडे का खंभ, जो साल की लकड़ी का था, 35 फुट लंबा था। 1884 ई. में लार्ड हार्डिंग ने उसे उतरवा दिया। उसका नमूना बिना झंडे के कुतुब के पास के एक चबूतरे पर रखा हुआ है।

यह मीनार इतनी ऊंची है कि इसके नीचे खड़े होकर ऊपर की तरफ देखें तो सिर की टोपी को थामना पड़े। लाट के ऊपर खड़े होकर देखने से नीचे खड़े आदमी छोटे-छोटे खिलौनों से चलते मालूम होते हैं। ऊपर से तांबे का पैसा मस्जिद के चौक में फेंकें तो वह पत्थर की धार से मुड़ जाता है। मीनार के ऊपर से जड़ के पास पृथ्वीराज का चौंसठ खंभा, लोहे की कीली, थोड़ी दूर बढ़कर लालकोट की दीवार, फिर पश्चिम में रायपिथौरा के किले की इमारतें नजर आती हैं। उसके सिरे पर पुरानी ईदगाह । रायपिथौरा के किले के उत्तर में जहांपनाह की गिरी हुई चारदीवारी के टीले हैं, जिनका सिलसिला सीरी की खंडहर चारदीवार तक चला गया है। बेगमपुर की मस्जिद भी देखने को मिलती है। जहांपनाह के आगे उत्तर-पश्चिम में फीरोज शाह के मकबरे का गुंबद जो हौजखास के पास है, दिखाई देता है। उससे आगे सफदरजंग का मकबरा चमकता दिखाई देता है। उसी लाइन में जामा मस्जिद की बुर्जियां देखने में आती हैं। सफदरजंग के पूर्व में पुराने किले की लंबी चारदीवारी और निजामुद्दीन की दरगाह का गुंबद और उससे जरा आगे हुमायूँ के मकबरे का गुंबद देखने में आएगा। दक्षिण की ओर देखने से पहाड़ी पर कालका देवी का मंदिर और फिर मीनार से पश्चिम की ओर तुगलकाबाद तथा आदिलाबाद के किले दिखाई देंगे, जिनके बीच में तुगलक का मकबरा है।

तुगलकाबाद की सड़क के करीब उत्तर में एक बड़ा भारी आम का पेड़ है। यह हौजरानी और खिड़की का मैदान है। इस सड़क के दक्षिण में और मीनार के पास ही जमाली मस्जिद और सुलतान बलबन के मकबरे के खंडहर पड़े हैं, जिनके पास कुतुब साहब की दरगाह के दक्षिण में मौजा महरौली की बस्ती नजर आती है।

ख्याल किया जाता है कि कुतुबुद्दीन इस मीनार को मस्जिद की मीनार बनाना चाहता था, जिस पर मुल्ला अजान दे सकें। दूसरी मीनार अलाउद्दीन खिलजी ने बनवानी शुरू की थी, मगर वह मुकम्मिल न हो सकी।

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