हाइलाइट्स
- कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में सेना प्रमुख के हवाले से किया है खुलासा
- राजनीतिक वजहों से चीन के खिलाफ युद्ध लड़ना चाहती थी नेहरू सरकार
- युद्ध के बाद सेना प्रमुख ने कहा-काश इस्तीफा दे दिया होता
भारत-चीन 1962 युद्ध (indo china war 1962) को लेकर कुलदीप नैयर (kuldeep nayyar) ने अपनी किताब एक जिंदगी काफी नहीं में कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। कुलदीप नैयर लिखते हैं कि ऐसा लगता है कि सरकार सेना को पुनर्गठित और सशस्त्रीकृत किए बिना ही चीन (china) से लड़ने पर तुली हुई थी। वी के मेनन (Vengalil Krishnan Krishna Menon) की मीटिंग में सिर्फ एक व्यक्ति ने जनरल थापर (general thapar) का समर्थन किया था। वे व्यक्ति गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव वी. विश्वनाथन थे और उन्होंने कहा था कि अगर जनरल थापर का खयाल था कि सेना (indian army) तैयार नहीं थी तो चीन को ललकारना नादानी होगी। लेकिन मेनन चीन से भिड़ने पर अड़े हुए थे।
जब थापर को लगा कि सैनिक कार्रवाई (Sino-Indian War) के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं था तो उन्होंने प्रधानमंत्री (jawaharlal nehru) से मिलना चाहा। वे नेहरू के घर की तरफ रवाना हो रहे थे कि तभी केबिनेट सचिव एस. एस. खेर उनसे मिलने आ पहुँचे। “जनरल,” उन्होंने थापर से कहा, “अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो पंडित जी के सामने अपने डर का इजहार न करता । वे सोचेंगे कि तुम लड़ने से डर रहे हो।” थापर ने जवाब दिया कि वे प्रधानमंत्री को सच्चाई बताए बिना नहीं रह सकते थे। उसके बाद वे जो भी फैसला करेंगे उन्हें मंजूर होगा।
थापर के कार में बैठने से पहले खेरा ने एक बार फिर उन्हें आगाह करते हुए कहा कि अगर भारत ने लड़ाई नहीं की तो सरकार गिर जाएगी। थापर ने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन अब उन्हें और भी विश्वास हो गया था कि चीन से टक्कर लेने का फैसला राजनीतिक हितों से जुड़ा हुआ था।
थापर ने नेहरू से मिलकर यह बात दोहराई कि इस तरह की कार्रवाई के लिए भारतीय सेना के पास न तो तैयारी थी, न प्रशिक्षण और न हथियार। (मेनन ने मुझे बताया था कि उनके रक्षा मंत्री बनने से पहले भारत के पास न तो सीने में कोई सेना थी और न साज-सामान ।)
नेहरू ने कहा कि मेनन ने बताया था कि भारत खुद भी कई सैनिक उपकरणों का उत्पादन कर रहा था। थापर ने जवाब दिया कि भारत लड़ाई के लिए के पुरजे जोड़ने की स्थिति में भी नहीं था, उनका उत्पादन करना तो दूर की बात थी। उन्होंने नेहरू को उस नीट की याद दिलाई जो उन्होंने सेना प्रमुख बनने के फौरन बाद सरकार को लिखा था, और जिसमें उन्होंने सेना और उसके साजो-सामान की तहकी की थी। नेहरू ने कहा कि उन्होंने वह नीट देखा तक नहीं था।
नेहरू ने थापर की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि उन्हें विश्वसनीय सूत्रों से पता चला था कि अगर भारत अपनी चौकियों खाली करवाने के लिए कार्रवाई करेगा तो चीन विरोध नहीं करेगा। थापर जानते थे कि वे किस विश्वसनीय सूत्र की बात कर रहे थे। यह बिलकुल साफ था कि सरकार ने चीन की इन चेतावनियों को अनसुना कर दिया था कि “भारतीय हमलावरों को अपने अपराधों के परिणामों की पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
जनरल थापर अब भी यह खतरा उठाना नहीं चाहते थे। उन्होंने नेहरू से सेना के कुछ कमांडरों से बात करने का अनुरोध किया। पूर्वी कमान के कमांडन-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल प्रदीप सेन समय रक्षा मंत्रालय में ही मौजूद थे, इसलिए उन्हें बुला लिया गया। प्रदीप सेन ने वापर का समर्थन करते हुए कहा कि सेना बिलकुल भी तैयार नहीं थी। नेहरू ने उले भी आश्वस्त करते हुए कहा कि चीन जवाबी हमला नहीं करेगा।
थापर की कुछ हिम्मत बंधी। अगर यह सच था तो भारतीय सेना बिना तैयारी के भी जीत का सेहरा बांध सकती थी। कोई भी जनरल एक विजयी सेना के नेतृत्व के मोह से नहीं बच सकता। जनरल वापर भी इसके अपवाद नहीं थे। लेकिन 29 जुलाई, 1970 को इन घटनाओं को याद करते हुए उन्होंने कुलदीप नैयर से कहा था, “कितना अच्छा होता अगर मैंने इस्तीफा दे दिया होता। तो शायद देश एक शर्मनाक हार से बच जाता।