1857 की क्रांति: सितंबर महीने में अंग्रेजों ने दिल्ली पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था। अंग्रेज अब दरबार के समर्थकों संग बुरा बर्ताव कर रहे थे। इस बीच बागी सिपाहियों के पूर्व कमांडर बख्त खां ने बादशाह बहादुर शाह जफर को एक सुझाव दिया। जफर ने यदि सुझाव मान लिया होता तो गिरफ्तारी नहीं होती।

20 सितंबर की रात को जनरल बख्त खां, हुमायूं के मकबरे पर गया और उसने जफर को मनाने की कोशिश की कि वह उसके साथ लखनऊ चलें। जहां वह इस लड़ाई को जारी रखने का इरादा रखता था। लेकिन एक बार फिर अंग्रेजों के जासूस हकीम अहसनुल्लाह खां ने जफर को यकीन दिलाया कि उन्हें यहीं रुकना चाहिए।

कहा- ‘याद रखिये कि आप बादशाह हैं। आपको इस तरह जाना शोभा नहीं देता। अंग्रेजों की फौज ने उनके खिलाफ बगावत की उनसे लड़ाई की और अब वह पूरी तरह हार चुके हैं और तितर-बितर हो गए हैं। आपका इस सबसे क्या लेना-देना? हौसला रखिए, अंग्रेज आपको खतावार नहीं मानेंगे।’ ऐसे अल्फाज से उन्होंने बादशाह को फौज के साथ फरार होने से रोक लिया।” उधर मिर्जा मुगल को भी मिर्जा इलाही बख्श ने बातें बनाकर रोक लिया था।

उसी रात मिर्जा इलाही बख्श दिल्ली आया और शायद जीनत महल और अहसनुल्लाह खान के उकसाने पर उसने ब्रिटिश अफसर होडसन को बताया कि बहादुर शाह जफर और मिर्जा मुगुल ने कहां पनाह ली है।” उसने होडसन को यह भी बताया कि जफर के पास शाही जवाहरात और जायदाद की फेहरिस्त भी है।”

होडसन फौरन विल्सन के पास गया और उससे इजाजत मांगी कि वह जाकर जफर को गिरफ्तार करे। उसका कहना था कि ‘अगर बादशाह और उनके खानदान के मर्द आजादी से रहने दिए जाएंगे, तो हमारी फतह पूरी तरह कामयाब नहीं होगी’।

विल्सन ने शुरू में तो कहा कि यह मुहिम बहुत खतरनाक होगी। लेकिन होडसन और नेविल चेंबरलेन के बहुत कहने पर उसने होडसन को इस शर्त पर इजाजत दे दी कि वह सिर्फ अपने आदमियों को लेकर जाए और उसे इससे ज्यादा सिपाहियों की जरूरत न पड़े। ‘मुझे उनके बारे में परेशान मत करना’, अगर होडसन जाना चाहे, तो अपने आप खतरा मोल लेकर जाए और खुद ही इस तमाम मामले को निपटाए।

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