1857 की क्रांति: अंग्रेजी सरकार ने बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया। उनके ऊपर अभियोग लगाने के लिए तीसरी कैवेलरी के मेजर जेएफ हैरियट को जज एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया। जफर को दोषी करार दिया गया और दिल्ली से बाहर ले जाया गया।

13 अक्टूबर को ओमैनी ने अपनी रिपोर्ट में लिखाः “भूतपूर्व बादशाह और उनके साथियों का सफर बहुत अच्छा गुजर रहा है। वह सब बहुत अच्छे मूड में हैं। मैं सुबह आठ बजे तक उनको आराम से उनके खेमों में ठहरा देता हूं। सिवाय इसके कि उन्हें रोज़ाना सवेरे एक बजे (उस दिन के कूच के लिए) उठाना पड़ता है, कोई दिक्कत नहीं है।

दरअसल,  जफर को हमेशा से बाहर सैर करना, जुलूस में जाना और तफरीह करना बहुत पसंद था। अपनी जवानी में दिल्ली के आसपास शिकार को जाना उनका पसंदीदा मनबहलाव था। बुढ़ापे में भी बरसात में महरौली अपने महल में जाना उनके लिए दक्षिण में जाकर जंगलों में शिकार खेलने का बहाना होता था। लेकिन वह अपनी पूरी जिंदगी में अपनी राजधानी से एक या दो दिन से ज़्यादा की दूरी पर कभी नहीं गए थे। यह निर्वासन का सफर उनकी ज़िंदगी का सबसे लंबा सफर था और अब ग़दर और घेराबंदी के ज़बर्दस्त तनाव, और अपने मुकद्दमे और गिरफ्तारी के अपमान के बाद निर्वासन का यह सफर उनके लिए तफरीह करने का मौका नहीं तो उन तमाम मुसीबतों से एक तरह की राहत का जरिया जरूर था, जो उन्हें पिछले अठारह महीनों में झेलनी पड़ी थीं।

यह लोग एक काफिले की शक्ल में चल रहे थे। लैंसर्स के घुड़सवारों की एक टुकड़ी सबसे आगे मुहाफिज पहरेदारों की तरह था, फिर वह छतदार पालकी गाड़ी थी, जिसमें ज़फ़र और उनके दोनों बेटे थे और जिसके चारों तरफ भी लैंसर्स के ग्रुप थे। फिर जीनत महल की पर्दा गाड़ी थी, जिसमें मिर्ज़ा जवांबख्त की नौजवान बीवी नवाब शाह जमानी बेगम और उनकी मां मुबारकुन्निसा थीं। तीसरी गाड़ी में मलिका ताज महल, उनकी खादमाएं और ख़्वाजा बालिश (जिसका मतलब है तकिया) नाम का उनका एक ख़्वाजासरा था ‘एक शांत जवान’ था। पीछे पांच अस्लहा ले जाने वाली गाड़ियां थीं जिनकी छतें झुकी हुई थीं और जिन्हें बैल खींच रहे थे। उनमें ज़फ़र के हरम की औरतें, और ज़फ़र के सेवक और खादमाएं थीं। हर गाड़ी में चार लोग थे और इन सबके साथ भी लैंसर्स की टुकड़ियां चल रही थीं।

सिवाय एक छोटे से हादसे के जो कश्तियों के पुल पर हुआ जब एक सामान की गाड़ी ने जफर की रखैलों को लगभग यमुना में उलट ही दिया था, और कोई मुश्किल या शिकायत नहीं हुई। जफर के खानदान ने ओमैनी द्वारा उनके खेमों के बंदोबस्त को खासतौर से पसंद किया, एक ‘पहाड़ी खेमा’ जिसमें जफर और उनके दो बेटे थे और एक ‘फौजी खेमा’ जिसके गिर्द औरतों के लिए कनात लगा दी जाती थी। मौसम भी बहुत खुशगवार था, सुबहें और रातें ठंडी और दिन खूब चमकदार और गर्म।

जब यह लोग कानपुर पहुंचे, तो मुगलों को पहली बार भाप की रेलगाड़ी देखकर बड़ी हैरत हुई जिसमें ‘मुसाफिर चढ़ रहे थे और थोड़ी देर बाद वह सीटी बजाती और धुंआं छोड़ती चल दी’, जबकि प्लेटफार्म पर एक बैंड ने ‘दि इंग्लिशमैन’ की धुन बजाई।’ बादशाह ने ओमैनी से यह भी कहा कि उन्हें समंदर देखने और कश्ती में सफर होने का इंतजार है क्योंकि वह कभी किसी दरियाई नाव से बड़ी किसी चीज़ में नहीं बैठे थे।

सिर्फ उनके इर्द-गिर्द हालिया लड़ाइयों की यादगारें-ढहे और आग से काले हो चुके बंगले, और जली हुई पुलिस चौकियां उन्हें अपने सफर के गंभीर कारण की याद दिलाते थे। कभी-कभी वह लड़ाई होते हुए भी देख सकते थे। एक बार जफर ने क्रांतिकारियों के फतह किए हुए एक किले को भी देखा जिस पर अंग्रेज सिपाही हमला करने की तैयारी में थे, और इलाहाबाद के सफर के आखरी हिस्से में वह क्रांतिकारियों के कब्जा किए हुए इलाके के पास से भी गुजरे।

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