1857 की क्रांति: बगावत के दरम्यान बादशाह बहादुर शाह जफर को लिखे गए खत बहुत ही दिलचस्प और साफगोई से उस समय की हकीकत बयां करते हैं। उस दौरान कई शहजादे भी मौके का फायदा उठाकर मनमानी कर रहे थे।

हमेशा की तरह उनमें नंबर एक मुजरिम मिर्जा अबूबक्र Shahzada Shahzada Mirza Muhammad Abu Bakr था। एक रात, जैसा उसका हर रात का नियम था, वह मिर्जा गुलाम गौस की हवेली पहुंच गया। गौस की बहनें दिल्ली की मशहूर हसीनाओं में से थीं।

मिर्जा अबूबक्र ने गुलाम गौस से कहाः

“”मैं बेहद नशे में हूं, और औल-फौल बकना शुरू कर दिया।

जब मैंने अपनी बहनों से कहा कि वह छिप जाएं तो उसने तलवार निकाली और मेरी तरफ पिस्तौल तान दिया। लेकिन मैंने किसी तरह उसे शांत कर दिया… इतनी देर में मुहल्ले के दरवाजे सुरक्षा के लिए बंद कर दिए गए थे। उनके खोलने के लिए चाबी आने में कुछ देर लगी, तो उसने वहां के रहने वालों को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया और अपनी दोनाली बंदूक से अनगिनत गोलियां दरवाजे पर मारीं…

इतने में फैज बाजार से एक शाही सिपाही वहां आ गया और उसने कुछ कहा तो अबूबक्र ने तीन बार उसको तलवार से मारा। फिर एलेक्जेंडर प्लाटून के चालीस सिपाही और कुछ तिलंगे वहां जमा हो गए और मुहल्ले में अमन कायम करने की कोशिश करने लगे। जब यह सब हो रहा था तो मैंने अपनी बहनों को दीवार फांदकर लाल कुंएं भेज दिया ताकि वह सुरक्षित हो सकें।

अच्छा ही हुआ कि उन्होंने ऐसा किया क्योंकि थोड़ी ही देर बाद मिर्जा अबूबक्र और उसके साथी घर में घुस गए और लूटमार शुरू कर दी। वह एक घोड़ा और एक बैलों की जोड़ी जो घर में अंदर बंधी थी, लेकर चल दिए। जब वह बाहर निकल रहे थे, तो उनका सामना डिप्टी कोतवाल से हुआ, जो इस हंगामे की खबर सुनकर तफ्तीश करने आए थे।

मिर्जा अबूबक्र ने पहले तो उनके ऐतराज को नजरअंदाज कर दिया और फिर तलवार उठाकर उन पर हमला करने को बढ़ा और इस झगड़े में उनके घोड़े पर भी कब्जा कर लिया। इस दौरान मिर्जा अब्दुल्लाह जो जफर के सबसे बड़े बेटे मिर्जा शाहरुख के बेटे थे, वहां आ गए और उन्होंने अपने भाई को यह सब हंगामा करने पर डांटा। और बड़ी मुश्किल से उनको राजी किया कि वह वहां से निकलें और लाल किले वापस जाएं।

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