दिल्ली विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग, वाणिज्य और व्यवसाय संकाय द्वारा ‘भारत@2047: वाणिज्य और व्यवसाय की भूमिका’ विषय पर एक विशिष्ट व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज के कन्वेंशन हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार ने मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए कहा कि तरक्की और समृद्धि के विरुद्ध करप्शन का वायरस है, अगर इस वायरस से नहीं निपटा जाए तो तरक्की और समृद्धि नहीं आ सकती। उन्होंने कॉमर्स एंड इंडस्ट्री से इस वायरस से निपटने और क्या करें व क्या न करें के सूत्र पर ध्यान देने का आह्वान किया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि भारत में अकेला कृषि क्षेत्र देश के 70% लोगों के हाथों को काम देता है। इसलिये हमें नीतियां बनाते हुए कृषि एवं संबंधित क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

इंद्रेश कुमार ने जीडीपी के मौजूदा फार्मूले पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए घरेलू नौकरों का उदाहरण दे कर कहा कि उन्हें रोजगार देने वाले परिवारों को न तो रोजगारदाता माना जाता है और न ही देश के इतने बड़े रोजगार को जीडीपी में सम्मिलित किया गया है। उन्होंने कहा कि दुनिया में भारत ऐसा देश है जिसका सरकारी रोजगार 4 करोड़ है जिनमें पक्के और कच्चे सभी कर्मचारी शामिल हैं, परंतु प्राइवेट रोजगार 81 करोड़ है। देश की बाकी बची आबादी या तो बुजुर्ग है या बालक है। इसलिए जीडीपी को रिजेक्ट करके कोई नया फार्मूला बनाइये जिसका अनुसरण दुनिया करे और वह खुशहाली ला सके। उन्होंने विभिन्न देशों की सामाजिक व्यवस्था का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें समृद्धि के साथ सामाजिक मूल्यों को भी महत्व देना होगा। इससे समाज में गरीब-अमीर, पढ़ेलिखे-अनपढ़ और ग्रामीण व शहरी का अंतर समाप्त होगा।

इंद्रेश कुमार ने कहा कि भारत को यह भी सोचना होगा कि क्या दुनिया का व्यापार डॉलर, पाउंड और रूबल में ही चलेगा? जिस दिन हम तय करेंगे कि दुनिया में हमारा व्यापार भारतीय मुद्रा में ही होगा तो डॉलर, पाउंड और रूबल धड़ाम से गिरेंगे। उन्होंने बताया कि भारत ने 4 साल पहले ईरान के साथ भारतीय मुद्रा में व्यापार आरंभ किया और अभी मिस्र के साथ भी व्यापार भारतीय मुद्रा में किया है। यही नहीं हाल ही में रूस के साथ भी जो व्यापार किया जा रहा है वह भारतीय मुद्रा में है। अगर भारत देश भारतीय भारतीय मुद्रा में ही व्यापार करेगा तो 2047 में देश में कोई भी भूखे पेट और नंगे बदन नहीं रहेगा। इसलिए भारतीय मुद्रा में विश्व व्यापार बड़ी जरूरत है।

उन्होंने कहा कि देश जो जाति और मजहब की कटुता में फंसा हुआ है, इसे निकालने के लिए देश के सामाजिक ढांचे पर भी काम करना होगा। अगर धर्मांतरण की बजाय एक-दूसरे के धर्मों का सम्मान करेंगे तो आर्थिक विकास अच्छा होगा। इसलिए समाज में अच्छे व्यापार और तरक्की व समृद्धि के लिए धार्मिक सौहार्द भी जरूरी है। उन्होंने रिक्शा चालक, सब्जी विक्रेता और मोची आदि का उदाहरण देते हुए कहा की सभी कामों के लिए सम्मान का भाव जरूरी है। जब तक सबके लिए शिक्षा और सब कामों के लिए सम्मान का भाव समाज में नहीं आएगा तब तक दुनिया का कोई फार्मूला काम नहीं आ सकता।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि हमारी 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इसे पहले 5 पर और फिर 18 पर लेकर जाना है, लेकिन 2047 तक उसे 18 ट्रिलियन डॉलर से भी ऊपर जाना है। इसके लिये वाणिज्य और व्यवसाय मुख्य उपकरण हैं। ये क्षेत्र जब तक इसको खींच कर नहीं लाएंगे, तब तक यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पाएगा। उन्होंने आंकड़े देते हुए बताया कि 2022 के डेटा के अनुसार भारत की जीडीपी में सर्विस सेक्टर 53.29% योगदान देता है। लेकिन इसमें जोखिम को भी ध्यान में रखना जरूरी है, क्योंकि संसार में बहुत से देश इस पर काम कर रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र 25.29% का योगदान कर रहा है और कृषि एवं सहायक क्षेत्र 20% का योगदान दे रहा है। इनमें 20% का कृषि क्षेत्र अकेले देश के 70% लोगों के हाथों को काम देता है। इन्वेस्टमेंट, इंडस्ट्री और अपग्रेडेशन की बात करें तो इस क्षेत्र में अधिक होना चाहिए, क्योंकि इस सेक्टर में जितना अधिक योगदान करेंगे उतना अधिक परिणाम जल्दी मिलेंगे। उन्होंने कहा कि हमें नीतियां बनाते हुए कृषि एवं संबंधित क्षेत्र पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

कुलपति ने कहा कि ग्रॉस नेशनल इनकम के मामले में अभी हम निम्नतम मध्यम वर्ग में आते हैं। विकसित राष्ट्र बनने के लिए हमें हायर इनकम लेवल तक जाना पड़ेगा। यह बिजनेस और ग्रोथ रेट को बढ़ाए बिना संभव नहीं हो सकता। इसके लिए कॉमर्स और बिजनेस को काम करने के साथ-साथ उचित माहौल भी जरूरी है। उन्होंने बताया कि आजादी से लेकर अब तक हमारी औसत ग्रोथ रेट 5.81 प्रतिशत है और हमें इसे कम से कम 8.9% पर लेकर जाना होगा, लेकिन अच्छा होगा कि यह 10% तक पहुंचे। उन्होंने बताया कि भारत के गुजरात राज्य का सालाना ग्रोथ रेट 2001 से 2014 तक 9.8% था। अगर उसे रिप्लिकेट किया जाए तो 2047 तक 10% ग्रोथ रेट प्राप्त करना कोई कठिन कार्य नहीं है। प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि वेल्थ क्रिएशन के लिए हमें निर्यात पर फोकस करना होगा। ग्लोबल ट्रेड में आज हमारा केवल 2.1% हिस्सा है जिसे सरकार 2047 तक 10% करने का लक्ष्य रखती है।

कुलपति ने कहा कि भारत का यूपीआई प्लेटफॉर्म दुनिया का सबसे बढ़िया आविष्कार है। गूगल-पे और पेटीएम जैसे सभी पेमेंट ट्रांजैक्शन माध्यमों के लिए बैकएंड पर यही प्लेटफार्म काम कर रहा है। इसके माध्यम से 9 ट्रिलियन का वेल्थ ट्रांजैक्शन हो रहा है जो दुनिया में कहीं नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत को नए उभरते क्षेत्रों में फोकस करना पड़ेगा। डिजिटल व आइटी क्षेत्र में हम ऐसा कर भी रहे हैं। कुलपति ने कहा कि क्वालिटी आंकड़ों में नहीं क्वालिटी लोगों में होती है। हमें अपने देश के लोगों की क्वालिटी पर काम करना है और उन्हें प्रोफेशनल और सबल व सहज बनाना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जो फ्रेमवर्क आया है, अगर हम उस पर सही तरीके से काम करते हैं तो शायद हम अपने देश के बच्चों को ज्यादा सफल और मजबूत बना सकेंगे, जिससे कि वह अगले 25 साल में राष्ट्र की विकास यात्रा में भागीदारी कर सकें। जैसे उनकी ट्रेनिंग होगी वैसा ही उनका योगदान रहेगा। इसके लिए हम सबको मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस लेक्चर सीरिज के माध्यम ते हम ऐसा माहौल बनाएं और इस में योगदान के लिये उपकरण तलाशें, ऐसी अपेक्षा देश दिल्ली विश्वविद्यालय से भी रखता है। कार्यक्रम के आरम्भ में वाणिज्य और व्यवसाय संकाय के डीन प्रो. अजय कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। समापन अवसर पर कार्यकम की कोर्डिनेटर प्रो. रीतू सपरा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डीन ऑफ कॉलेजज प्रो. बलराम पाणी, दक्षिणी दिल्ली परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, शताब्दी समरोह समीति की कनवीनर प्रो. नीरा अग्निमित्रा और रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता आदि उपस्थित रहे। 

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