1857 की क्रांति: नवनियुक्त कमांड जनरल विल्सन ने 18 जुलाई को उसने लाहौर में सर जॉन लॉरेंस को एक बहुत परेशानी भरा खत लिखा। जिसमें उसने ब्रिटिश पोजीशन की नाजुक और खतरनाक हालत बयान की और कहा कि किसी भी कीमत पर लॉरेंस को फौरन रिज पर मदद भेजना सख्त जरूरी है।
उसने लिखा- मैंने अपनी फौज के चीफ इंजीनियर कर्नल बीयर्ड-स्मिथ से मशवरा किया है और हम दोनों की राय है कि इस वक्त दिल्ली पर कोई भी हमला करने की कोशिश करना सिर्फ हार और मुसीबत का सामना करना होगा।
इस वक्त हमारी फौज में 2200 यूरोपियन और 1500 हिंदुस्तानी सिपाही हैं यानी कुल 3700 हथियारबंद है। और बागी अनगिनत हैं, जिनमें हर तरफ से बगावत करने वाले सिपाही शामिल होते जा रहे हैं। उन्होंने बहुत अच्छी हिफाजती तैयारी कर रखी है और खूब हथियार जमा कर लिए हैं… बागी हम पर बीस बार हमला कर चुके हैं और आज भी वह इक्कीसवें हमले के लिए मौजूद हैं। यह सच है कि हमने उनको हर बार वापस भगा दिया है लेकिन ऐसा करने से हमारे बहुत से आदमी मारे गए हैं और जख्मी हुए हैं…
मेरा पूरा इरादा है कि हम इस जगह को जहां हम जमा हुए हैं आखिर तक अपने कब्ज़े में रखेंगे क्योंकि मैं समझता हूं कि यह बहुत जरूरी है कि हम उन सब क्रांतिकारियों को दिल्ली तक ही सीमित रखें ताकि वह सारे मुल्क में नहीं फैल जाएं, लेकिन इस जगह को अपने कब्जे में रखने के लिए अब मुझे फौरी मदद की सख्त जरूरत है, वह भी जितनी जल्द मुमकिन हो सके। मैंने सुना है कि कलकत्ता में जो फौजें जमा हो रही हैं उन पर भरोसा करने की कोई संभावना नहीं है, इसलिए मैं बहुत पुरजोर दर्खास्त करता हूं कि आप मुझे जल्दी से जल्दी पंजाब से जो भी मदद भेज सकते हैं फौरन भेज दीजिये। अगर मुमकिन हो तो एक पूरी यूरोपियन रेजिमेंट और एक या दो सिख या पंजाब रेजिमेंटें।
मैं आपको बहुत सफाई से बता रहा हूं कि अगर जल्दी मदद नहीं भेजी गई तो हमारी फौज जंग में मारे जाने और बीमारियों से खत्म होने वाले सिपाहियों की वजह से इतनी कम तादाद में रह जाएगी कि पीछे करनाल की तरफ हटने के सिवाय कोई और चारा नहीं बचेगा। और मैं सोच भी नहीं सकता ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में हमें कितनी बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा। मैं फिर दर्खास्त करूंगा कि आप मुझे फौरन तार से सूचना दें कि आप मुझे क्या फौज और मदद भेज सकते हैं और मैं कब उनके कैंप पहुंचने की उम्मीद रखूं।
आपका, आर्कडेल विल्सन