1857 की क्रांति: ब्रिटिश अफसर ओमैनी को बहादुर शाह जफर का जेलन नियुक्त किया गया था। ओमैनी की निगरानी में जफर व उनके परिवार के सदस्य कैद में रह रहे थे। शुरू-शुरू में ओमैनी का मानना था कि अंग्रेजों ने दिल्ली के साथ कुछ ज्यादा ही नरमी का बर्ताव किया। उन्हें अपना बदला लेने में और हिंसक होना चाहिए था, वह कैदियों की हालत बेहतर करने को तैयार नहीं था।

लेकिन उसको खुद ताज्जुब हुआ, जब धीरे-धीरे उसे जफर से लगाव सा होने लगा, जिनके बारे में उसका ख्याल था कि वह ‘सर सी नेपियर से काफी मिलते-जुलते’ हैं। जल्द ही उसे यकीन हो गया कि जफर इतने बूढ़े, जुनूनी और सठियाए हुए थे कि गदर के जमाने में ‘वह अपनी हरकतों के कतई जिम्मेदार नहीं हो सकते थे’ ।” जल्द ही, बूढ़े बादशाह भी अपने जेलर की अप्रत्याशित मेहरबानी से प्रभावित होने लगे।

मध्य-अक्तूबर में ओमैनी ने अपनी डायरी में लिखा कि उसे ऐसा लगा कि जफर ‘मुझे गले लगाना चाहते हैं, लेकिन (इसके बजाय) अपना हाथ मेरे कंधे पर रखकर मुझे थपथपाया’ । ओमैनी को जीनत महल में भी दिलचस्पी हो गई, जो, उसके अनुसार—अपने खामोश और बीमार पति पर हमेशा आदेश चलाती थीं, लेकिन वहां मौजूद हरम की सोलह औरतों में से सिर्फ वही उनकी देखभाल करती थीं।

ओमैनी ने लिखा है कि जफर को “उनकी चहेती बीवी जीनत महल बहुत अच्छा रखती हैं, जो अगर बोल रही होती थीं और जफर बीच में एक लफ्ज भी कह दें, तो वह उनको चुप करा देतीं। जफर हमेशा छोटी-छोटी बेकार की चीजें मांगते, जो अगर उनको पसंद नहीं आतीं तो उन्हें फेंक देते। जिससे अक्सर भूतपूर्व मलिका नाराज हो जातीं क्योंकि पैसा उनके हाथ में था। जफर के अपने बेटे और नौकर उनके साथ बहुत सम्मान से पेश आते थे।”

जीनत महल के बारे में ओमैनी ने लिखा कि ‘वह बहुत अच्छी तरह बातचीत करती हैं मगर एक नौसिखिए के लिए बड़ी मुश्किल भाषा में।’ बाद में उसने बताया, ‘मैंने उनको कभी नहीं देखा लेकिन एक दिन मैंने उनके हाथ और बाजू देखे जब वह मुझे यह दिखा रही थीं कि उनके कपड़े कैसे पुराने हो गए हैं और उन्हें पैसे चाहिए थे। वह बात अच्छी तरह करती हैं। लेकिन मुझे लगता है कि वह खूबसुरत नहीं हैं। मुझे लगता है कि वह बहुत चालाक और साजिशी औरत हैं।

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