1857 की क्रांति: बहादुर शाह जफर का जेलर ओमैनी अब धीरे धीरे बदलने लगा था। कभी जफर से घृणा करने वाला ओमैनी उनके प्रति लगाव रखने लगा था। लेकिन वो जफर के बेटे मिर्जा जवांबख्त से बहुत नफरत करता था।

ओमैनी का कहना था कि वह बिल्कुल बिगड़ा हुआ था। वह बहुत जल्द गदर के सिलसिले में अपने खानदान की किसी भी गतिविधि के बारे में गवाही देने को तैयार हो गया था। कैद के शुरू के दिनों में एक बार जब उसने ओमैनी को जफर के दर्जी की ‘धुनाई’ करते देखा क्योंकि वह बगैर इजाजत अंदर आ गया था, तो वह खूब हंसा।

ओमैनी ने नौजवान शाहजादे को खबरदार किया कि अगर वह कभी उसे किसी को सजा देते देखकर हंसा तो उसको भी वही सजा मिलेगी। थोड़े दिन में उसने ओमैनी को पेशकश की कि वह उनको अपनी मां का जमीन में दबा हुआ खजाना दिखा देगा, अगर वह उसको सौ चुरुट दे दे तो, जो ओमैनी ने उसे पारसी सौदागर कोवासजी एंड को से लेकर दिए।

ओमैनी ने अपनी डायरी में लिखा, ‘अगर उसे (जवांबख़्त को) जरा भी छूट दी जाए, तो वह सिर पर चढ़ने को तैयार रहता है। मेरे विचार से, उसमें जरा भी सम्मान या स्नेह नहीं है, इन गुणों की अंग्रेजों की व्याख्या के अनुसार।’

“उसने मुझे बहुत सी बातें बताई, जिनसे उसके पिता को गदर के इल्जाम में फंसाया जा सकता था। उसने अपनी मां के जेवर और जायदाद के बारे में मुझको बताया, जबकि उन्होंने कहा था कि उनके पास कोई जेवर और जायदाद नहीं हैं, बल्कि उसने मुझसे यह तक कहा कि उसकी मां झूठी हैं। अपने भाई का खज़ाना दिखाने के बाद वह डर के मारे कांपता-थरथराता अपने मां-बाप के सामने गया और झूठ बोला कि वह कहां था। उसके दिल में अपने भाइयों की कोई मुहब्बत नहीं है और वह उनको बदमाश कहता है। एक जमाने में ताकतवर और गौरवशाली तैमूरी नस्ल के पतन का ऐसे गद्दार और बेशर्म वारिस से बड़ा क्या सुबूत हो सकता है।

1857 की क्रांति: ब्रिटिश अफसर होडसन ने बादशाह बहादुर शाह जफर को कैद कर लिया। इस बीच नवंबर के मध्य में कलकत्ता से खबर आई कि उस मिलिट्री कमीशन की सारी तफ्सीलें पूरी हो गई हैं, जो दिल्ली के सारे शहजादों, अमीरों पर, और बादशाह पर, मुकद्दमा चलाएगा।

इसके कुछ दिन बाद ही मेजर जे.एफ. हैरियट की डिप्टी जज एडवोकेट जनरल के ओहदे पर दिल्ली में नियुक्ति हुई और उसने मुकद्दमों की कार्रवाई का काम शुरू कर दिया। ओमैनी से कहा गया कि वह किले में पाए गए तमाम मसौदों के अनुवाद में हैरियट की मदद करे।

उन लोगों का ख्याल था कि उन मसौदों में पूरे मुगल खानदान और उनके दरबार को सजा देने के लिए साक्ष्य मिल जाएंगे।” और यह भी उम्मीद की जा रही थी कि जफर के मुकद्दमे से जो अब बहुत से अंग्रेजों के ख्याल में बगावत के असली साजिशी थे, इस बगावत की वजह की असली जड़ भी मालूम हो सकेगी। 27 नवंबर को हैरियट से पहली मुलाकात के बाद ओमैनी ने लिखाः ‘उनके मिजाज और अंदाज को देखने के बाद यह बिल्कुल नहीं लगता कि किसी कैदी को भी छुटकारा मिलेगा’।

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