लेखक-प्रमोद भार्गव  

म्यांमार भारत का मित्र देश है,इसलिए उसके साथ 2018 में भारत की पूर्वोत्तर नीति के अंतर्गत फ्री मूवमेंट रिजीम यानी मुक्त आवागमन की सुविधा लागू की गई थी। यह दो देशों के बीच पारस्परिक सहमति से चलने वाली व्यवस्था थी,  लेकिन इसकी आड़ में उग्रवादी और घुसपैठिए भारतीय सीमा में दाखिल होने लग गए। क्योंकि सुविधा की शर्त के मुताबिक,दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियों को 16 किलोमीटर तक भारतीय सीमा के चार राज्यों में आने-जाने की छूट थी। ये राज्य मिजोरम,मणिपुर,नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश हैं।

यह उपाय इस दृष्टि से किया गया था,जिससे एकरूपता वाली जनजाति समुदायों में सांस्कृतिक मेल-मिलाप बना रहे।यह सुविधा भी वैध वीजा के आधार पर महज 72 घंटे की थी। एक समय ब्रह्मदेश के नाम से जाना,जाने वाला म्यांमार अखंड भारत का ही भूभाग था। लेकिन म्यांमार में 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद हजारों की संख्या में शरणार्थी म्यांमार से भागकर भारत पहुंचे हैं। ड्रग तस्करी और हथियारों की सप्लाई भी म्यांमार सीमा से हो रही है। यही वजह है कि सरकार ने फ्री मूवमेंट रिजीम को रद्द करने का फैसला किया है।  हालांकि म्यांमार की सेना ने 2017 में जब विद्रोहियों का दमन किया था,तभी से रोहिंग्या मुस्लिमों की  घुसपैठ पूर्वोत्तर के सातों राज्यों के साथ पश्चिम बंगाल  में भी बनी हुई है।

इन घुसपैठियों ने इन राज्यों का जनसंख्यात्मक घनत्व भी बिगाड़ने का काम किया है,जो संकट के साथ स्थानीय जनजातियों के अस्तित्व का खतरा बन रहा है।  इन विद्रोहियों को पकड़ने बहाने म्यांमार के सैनिक भी भारतीय सीमा में बड़ी संख्या में घुसे चले आते हैं। लिहाजा इस सुविधा को ख़त्म करना देशहित में जरुरी था। 

म्यांमार में दमन के बाद करीब एक दशक में रोहिंग्या मुस्लिम भारत, नेपाल, बांग्लादेश, थाईलैंड, इंडोनेशिया, पाकिस्तान समेत 18 देशों में पहुंचे हैं। एशिया में जिन देशों में इनकी घुसपैठ हुई है, उनमें से छह देशों की सरकारों के लिए ये परेशानी का सबब बने हुए हैं। भारत में इनको लेकर कई दिक्कतें पेश  आ रही हैं।

देश  में इनकी मौजूदगी से एक तो आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं, दूसरे इनके तार आतंकियों से भी जुड़े पाए गए हैं। प्रतिबंधित कट्टरपंथी पीएफआई संगठन से इनके संबंधों की तस्दीक हो चुकी है। नतीजन देश  में कानून व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो रही है। अलबत्ता कुछ लोग और संगठन ऐसे भी हैं, जो इन्हें भारत के मूल निवासी बनाने के दस्तावेज बनवाने में लगे हैं। ये रोहिंग्या किस हद तक खतरनाक साबित हो रहे हैं, इसका खुलासा अनेक रिपोर्टों में हो चुका है, बावजूद भारत के कथित मानवाधिकारवादी इनके बचाव में बार-बार आगे आ जाते हैं। जबकि दुनिया के सबसे बड़े और प्रमुख मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेश नल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि म्यांमार से पलायन कर भारत में शरणार्थी बने रोहिंग्या मुसलमानों में से अनेक ऐसे हो सकते हैं, जिन्होंने म्यांमार के अशांत रखाइन प्रांत में हिंदुओं का नरसंहार किया है ? रोहिंग्याओं ने 25 अगस्त 2017 को हिंसक वारदात को अंजाम दिया था।

रोहिंग्या आतंकियों ने अगस्त 2017 में रखाइन में पुलिस चौकियों के साथ म्यांमार के गैर मुस्लिम बौद्ध और हिंदुओं पर कई जानलेवा हमले किए थे। इस हमले में हजारों बौद्ध और हिंदू मारे गए थे। नतीजतन म्यांमार सेना ने व्यापक स्तर पर आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाया। जिसके परिणामस्वरूप करीब 15 लाख से ज्यादा रोहिंग्याओं को पलायन करना पड़ा।

इनमें से 40,000 से भी ज्यादा भारत में घुसपैठ करके शरण पाने में सफल हो गए, शेष बांग्लादेश , पाकिस्तान, इंडोनेषिया, थाईलैंड और नेपाल चले गए थे। मुस्लिम देश  होने के बावजूद इंडोनेशिया इनके आपराधिक चरित्र से परेषान है, अतएव वह इन्हें निकालने में लगा है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना कह रही हैं कि हमारे यहां अधिकांश  रोहिंग्या ड्रग एवं महिला तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त हैं। जो कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन गए हैं।

बांग्लादेश में 10 लाख से अधिक रोहिंग्या संकट का सबब बन चुके हैं। 92 हजार रोहिंग्याओं ने थाईलैंड में शरण ली है। इनमें से 13 हजार को वापस भेजा जा चुका है। भारत की सख्ती के चलते कुछ रोहिंग्या घुसपैठ में असफल होकर नेपाल चले गए हैं। यहां इन्हें जिहादी गुटों से आतंक को अंजाम तक पहुंचाने के लिए आर्थिक मदद मिल रही है। पाकिस्तान में भी करीब ढाई लाख रोहिंग्या पहुंचे हैं। इनमें से ज्यादातर को आतंकवाद का प्रषिक्षण देकर बांग्लादेश  की सीमा से भारत में टुकड़ियों में प्रवेश  करा दिया जाता है।

बहुत हैरानी होती है कि इन घुसपैठियों को मतदाता पहचान-पत्र, आधार कार्ड और राशन कार्ड भी बनवाकर कैसे दे दिया गया। जिससे इन्हें भारत के नगरों में बसने में कोई परेशानी न हो। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने 2021 में ही रोहिंग्या मुसलमानों को देश में नहीं रहने देने की नीति पर शीर्ष अदालत में एक हलफनामा देकर साफ किया था कि रोहिंग्या गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल हैं। कुछ रोहिंग्या मानव तस्करी जैसे संगीन वारदातों में भी लिप्त हैं।

देश में करीब 40,000 रोहिंग्या रह रहे हैं, जो सुरक्षा में सेंध लगाने का काम कर रहे हैं। इनमें से कई आतंकवाद में लिप्त हैं। इनके पाकिस्तान और आतंकी संगठन आईएस और पीएफआई से भी संबंध हैं। ये संगठन देश  में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। देश  में जो बौद्ध धर्मावलंबी हजारों साल से षांतिपूर्वक रह रहे हैं, उनके लिए भी ये हिंसा का सबब बन सकते हैं। 2015 में बोधगया में हुए बम विस्फोट में पाकिस्तान स्थित आंतकवादी संगठन लष्कर-ए-तैयबा ने रोहिंग्या मुस्लिमों को आर्थिक मदद व विस्फोटक सामग्री देकर घटना को अंजाम दिया था। वैसे भी भारत के किसी भी हिस्से में रहने व बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को हैं, घुसपैठियों को नहीं। किसी भी पीड़ित समुदाय के प्रति उदारता मानवीय धर्म है, लेकिन जब घुसपैठिए देश  की सुरक्षा और मूल भारतीय समुदायों के लिए ही संकट बन जाएं, तो उन्हें खदेड़ा जाना ही बेहतर है।

                 संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, कि सभी राज्यों को रोहिंग्या समेत सभी अवैध शरणार्थियों को वापस भेजने का निर्देश दिया है। सुरक्षा खतरों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। आशंका जताई गई है कि जम्मू के बाद सबसे ज्यादा रोहिंग्या शरणार्थी हैदराबाद में रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जम्मू-कश्मीर में रह रहे म्यांमार के करीब 15,000 रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके उन्हें अपने देश वापस भेजने के तरीके तलाश रही है। रोहिंग्या मुसलमान ज्यादातर जम्मू और सांबा जिलों में रह रहे हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में 3800 रोहिंग्याओं के रहने की पहचान हुई है। ये लोग म्यांमार से भारत-बांग्लादेश  सीमा, भारत-म्यांमार सीमा या फिर बंगाल की खाड़ी पार करके अवैध तरीके से भारत आए हैं। आंध्र प्रदेश  और जम्मू-कष्मीर के अलावा असम, पष्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश  में कुल मिलाकर लगभग 40,000 रोहिंग्या भारत में रह रहे हैं।

                जम्मू-कश्मीर देश का ऐसा प्रांत है, जहां इन रोहिंग्या मुस्लिमों को वैध नागरिक बनाने के उपाय तत्कालीन महबूबा मुफ्ती सरकार द्वारा किए गए थे। इसलिए अलगाववादी इनके समर्थन में उतर आए थे। इसी प्रेरणा से श्रीनगर, जबलपुर और लखनऊ में इनके पक्ष में प्रदर्शन भी हुए थे। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को प्रस्तुत शपथ-पत्र में साफ कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थियों को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत देश में कहीं भी आने-जाने, बसने जैसे मूलभूत अधिकार नहीं दिए जा सकते। ये अधिकार सिर्फ देश के नागरिकों को ही प्राप्त हैं। इन अधिकारों के संरक्षण की मांग को लेकर रोहिंग्या सुप्रीम कोर्ट में गुहार भी नहीं लगा सकते, क्योंकि वे इसके दायरे में नहीं आते हैं। जो व्यक्ति देश का नागरिक नहीं है, वह या उसके हिमायती देश की अदालत से शरण कैसे मांग सकता है ? बावजूद देश  में इनकी आमद बढ़ती जा रही है।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here