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श्रीराम-सीता विवाह पर आधारित यह गीत बड़ा ही मोहक है। मिथिला में प्रभु का स्वागत हो रहा है। जगतपिता राम और जगतजननी सीता के विवाह की खुशी सिर्फ मिथिलावासियों को ही नहीं बल्कि सभी लोगों के मन में उत्साह है।

देवता भी गगन से फूल बरसा रहे हैं। आम आदमी और देवगणों को तो खुशी है ही, पूरा वातावरण उनके विवाह की खुशी में झूम रहा है। कहीं शहनाई की मधुर तान है तो कहीं सीता की सखियां मंगल गा रही हैं।

मिथिलांचल की पावन विधि देखकर राम मुस्कुरा रहे हैं। ओखल-मूसल से सखियां राम से लावा कुटवाती हैं और गारी गाकर सुना रही हैं। देववधुएं भी मंगल गा रही हैं। मंडप पर ऋिद्धि-सिद्धि चंवर डुला रहे हैं। चारो ओर उमंग का वातावरण है-

सनन-सनन बहे पुरवैया सखि है ।

जनक दुअरिया ना ।।

ऋद्धि सिद्धि मंडप पै चंवर डुलावे।

मधुर मधुर बजे शहनइया सखि हे, जनक दुअरिया ना ।।

सखि सब मंडप पै गारी गावे। ओखल-मूसल से लावा कुरवावे।

कइसन है प्रेम के डोरिया सखि हे, जनक दुअरिया ना ।।

मिथिला के विध देख राम मुस्काये

सीता के माथे पै सिंदूर लगाये।

बरसे गगन से पंखुड़ियां सखि हे, जनक दुअरिया ना।।

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