कहानी भारत के पहले कव्वाल घराने कव्वालबच्चे की
हिन्दुस्तानी संगीत में ग्वालियर घराना सबसे ज़्यादा अहम और पुराना समझा जाता है, मगर उससे पहले भी ख़याल और ख़याल गायकी में क़व्वालबच्चे घराने (Qawwal Bacchon gharana) का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि यह घराना सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तुतमिश के काल में शुरू हुआ और इसके संस्थापक दो भाई सावंत और बूला थे। जिनमें से एक गूंगा और दूसरा बहरा था। इस घराने के नाम से जाहिर होता है कि उसके संस्थापक क़व्वाल थे।
उनके बारे में एक क़िस्सा मशहूर है-एक दिन बादशाह अल्तुतमिश ने संगीत गोष्ठी की इच्छा प्रकट की। अपने वज़ीरों को उसका आयोजन करने का आदेश दे दिया। वज़ीरों ने शहर भर में बड़े गवैयों की तलाश शुरू कर दी। कुछ लोगों को सावंत और बूला के साथ मजाक करने की सूझी यानी वे उनके माध्यम से तमाशा देखना चाहते थे।
उन्होंने वजीरों को बताया कि सावंत और बूला मशहूर संगीतकार हैं और उन्हें इस महफ़िल में बुलाया जाए। वजीरों ने दोनों भाइयों को हुक्म भिजवा दिया कि शाही दरबार में हाजिर होकर बादशाह के सामने गाएं। दोनों भाई अपनी अशक्तता के कारण चिंतित थे। अंततः उन्होंने निराश होकर अपने आपको खुदा के रहमोकरम पर छोड़ दिया। उन्होंने खुदा से दुआ की और मदद मांगी। खुदा ने दुआ कुबूल की।
एक हज़रत ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान को इस शरारत का पता चला तो उन्होंने खुदा से इल्तिजा की कि न सिर्फ़ इन दोनों भाइयों की अशक्तता दूर कर दे, बल्कि उन्हें ऐसी उम्दा आवाज़ और संगीत में प्रवीणता दे कि वे अपनी आबरू बचा सकें। उन्होंने दोनों भाइयों से कहा कि बिल्कुल मत घबराओ और बादशाह के हुज़ूर में पेश होकर जब हुक्म मिले तो निडर होकर गाना शुरू कर दो।
दोनों भाई हजरत ख्वाजा-ए-ख़्वाजगान की बात से हौसला पाकर दरबार में पहुँचे। पर ज्योंही उन्हें बादशाह ने हुक्म दिया तो दोनों भाई यह देखकर हैरान रह गए कि वे न केवल बोल और सुन सकते थे बल्कि वे उच्चे कोटि के संगीतकार भी थे। यह एक चमत्कार मात्र था जो कि सिर्फ़ अल्लाह की मर्जी और मेहरबानी से हो सकता था। दोनों भाइयों ने इतना उम्दा गाया कि बादशाह बहुत खुश हुए और जिन लोगों ने यह मजाक किया था वे हैरान और परेशान हो गए। उन्हीं दोनों भाइयों से क़व्वाल घराना शुरू हुआ।