आसमान में घुमड़ते काले घने बादलों को देख तन खिल उठता है, मन उल्लास से भर जाता है। अंबर से गिरती बूंदे दिल्लीवासियों के लिए खुशियों का वो लिफाफा है जिसमें सैर, सपाटा, मौज, मस्ती, सांस्कृतिक विरासत शब्दों की माला में पिरोकर सहेंजी गई है। पेड़ों से छनकर शरीर को छूती बारिश में भला किसका मन तितली बनकर उड़ने को नहीं करता, फिर दिल्ली की तो बात ही निराली है। बरसात के बाद धरती हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। बागों में बहार छा जाती है, ऐसा लगता है मानों पेड़-पौधों ने भी हरी चुनरी ओढ़ रखी है। मौसम का रंग बदलते ही दिन-दुपहरी चहकने लगती है। मन मयूरा बारिश की बूंदों का पीछा करते ना केवल घूमने को बेताब हो जाता है बल्कि लजीज जायकों का जिक्र भर से ही मुंह में पानी आ जाता है। इस आर्टिकल में हम बूंदों संग चटपटे जायके और सैर सपाटे के सफर पर चलेंगे।
मौसम के मिजाज से तय होता था जायका
इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि पुराने जमाने में लोग हर मौसम का ना केवल दिल खोलकर स्वागत करते थे बल्कि जमकर आनंद उठाते थे। बारिश और वसंत जिंदगी में उत्सव के समान थे। बारिश होते ही पुरानी दिल्ली का जायका भी बदल जाता था। तली चीजें लोग पसंद करते थे। मुगल काल में चांदनी चौक में हलवाई बारिश के अनुसार ही मिठाईयां बनाते थे। इधर बारिश धरती को भिंगोती उधर दुकान पर गरमा गरम हलवे तैयार होने लगते। सन 1790 से स्वाद के शौकीनों का ठौर रही घंटेवाला की दुकान पर गाजर, सूजी समेत देशी घी-क्रीम से बने सोहन हलवा खाने के लिए भीड़ उमड़ती थी। कराची हलवा आज भी पसंद किया जाता है। तली चीजें मसलन, पकौड़े, शाही कबाब, पराठा, सूखा कीमा जमकर लोग खाते थे। बारिश के लिए एक महीने पहले से ही हलवाई तैयारियां शुरू कर देते थे।
बारिश, आम और मिर्जा गालिब
मुगलकाल, बारिश और आम में गहरा नाता रहा है। बकौल आरवी स्मिथ मुगल काल में रात भर ठंडे पानी में आम रखा जाता था। दोपहर में जब बारिश होती तो परिवार के सभी सदस्य दरी बिछाकर बैठते थे। बाल्टी सभी के बीच में रख दी जाती थी और सदस्य मौसम का लुत्फ उठाते हुए आम खाते थे। मिर्जा गालिब तो आम के दीवाने थे। बारिश के दिनों में वो दोपहर में खुद आम लेकर बहादुर शाह जफर से मिलने जाते थे। कहते हैं कि 12 आम वो खुद भी खाते थे। बहादुर शाह जफर बारिश के इस कदर शौकीन थे कि उन्होंने यमुना किनारे एक पिकनिक स्पॉट तक बनवाया था। बारिश शुारू होते ही वो मिर्जा गालिब, शेख इब्राहिम समेत विद्वानों संग बैठकी में पहुंच जाते थे। जहां बारिश रूकने तक महफिल सजती थी। आरवी स्मिथ कहते हैं कि मिर्जा गालिब और उनके आम की पसंद पर कई किस्से कहानियां भी प्रचलित है। एक बार बारिश में आम खाने की वजह से मिर्जा गालिब के शरीर पर फोड़ा फूंसी निकल गया। किसी ने उन्हें कहा कि आम कम खाया करो तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया—
आम होए, मीठा होए, ज्यादा होए
बैलगाड़ी से मेला घूमने जाते
मुगलकाल में बारिश के मौसम में महरौली में एक माह तक मेला लगता था। मेले के प्रति लोगों के उत्साह इस कदर था कि तड़के सुबह बैलगाड़ी से सफर आरंभ हो जाता था। इसके लिए रात भर जगकर महिलाएं विभिन्न प्रकार के पकवान बनाती थी। बादशाह एवं अधिकारी घोड़े, हाथी पर जाते थे जबकि आम लोग बैलगाड़ी से। गाना गाते हुए सफर कटता था। रास्ते में कई जगह आराम करने के लिए लोग रूकते थे। जहां सफर रुकता वहां का दृश्य देखते ही बनता था। लोग अलग अलग समूहों में खाना खाते, बच्चे यहां वहां धमाचौकड़ी मचाते थे। पूरा लाल किला परिसर उस समय खाली हो जाता था।
लाल किला और सावन भादो
मुगल शासकों ने बारिश का आनंद भारत में उठाया। इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि मुगल जहां से आए थे वहां बारिश का मौसम नहीं होता था। लिहाजा, भारत में बारिश से वे रूबरू हुए। बाबर ने मानसून को पर्व के रूप में मनाना शुरू किया था। इसके बाद के शासकों ने भी इसे बदस्तूर जारी रखा। दिल्ली में बारिश की महत्ता कितनी बढ़ गई थी यह लाल किला परिसर में बने सावन, भादो से जान सकते हैं। भवन संगमरमर के बने हैं। सामने मोमबत्तियों के आलों सहित तालाब हैं। कहते हैं यहां बारिश के दिनों में बैठकें होती थी। उस समय यह भवन जामुन के वृक्षों से पटे पड़े थे। यहां से लेाग जामुन तोड़ते और भवन में बैठकर आराम से खाते हुए बारिश का लुत्फ उठाते थे।
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कल आज और कल
दिल्ली में बारिश आज भी खुशियों की पोटली है। इंडिया गेट पर बारिश में नाचते युवाओं का समूह इसकी अहमियत बताता है। हां, गुजरते वक्त के साथ बारिश इंज्वाय करने के तरीकों में जरूर बदलाव आया है लेकिन दिल्ली आज भी बारिश को जायको की चाशनी में घोल इंज्वाय करती है। जायकों का संसार बारिश में सज जाता है—–
घेवर का स्वाद, रहेगा याद
सावन शुरू होते ही पुरानी दिल्ली के बाजार घेवर की खुशबू से महक उठते हैं। एक महीने पहले से दुकानदार इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं और सूखा घेवर बनाकर रखते हैं। सावन में इन सूखे घेवर को गरम कर मलाई, खोया, मेवा के मिश्रण से तैयार किया जाता है। चांदनी चौक में बिकानेर और कंवरजी की 100 साल पुरानी दुकान घेवर प्रेमियों का ठौर है।
भुट्टों का स्वाद
इन दिनों भुट्टों की बहार आई है। ताजा नर्म और गुलाबी पीले भुट्टे बरबस ही मन मोह लेते हैं और अगर उन्हें जब आप सिंकते हुए देखते हैं तो उसकी खुशबू आपको दीवाना बना देती है। नींबू नमक के साथ इनका स्वाद हो तो मजा और बढ़ जाता है। इंडिया गेट, लाल किला, कुतुबमीनार समेत पर्यटन स्थलों के बाहर भुट्टे खाते लोग आसानी से देखे जा सकते हैं।
पकौड़े, चाट और समोसे की तिकड़ी
बारिश पकौड़े बिन अधूरी है। दिल्ली में गरम मसाला चाय संग पकौड़े खाने का अपना ही मजा है। प्याज के पकोड़े, आलू के पकौड़े, पनीर के पकौड़े खाने के लिए लोगों की बेकरारी सहज ही देखी जा सकती है। बारिश में इमली या पुदीने की चटनी के साथ पकोड़े आपका दिन बना देंगे। तो वहीं चाट के दीवाने भी कम नहीं। चांदनी चौक में लाला बाबू चाट भंडार के गोभी, मटर के समोसा मुंह में पानी ला देते हैं। बालाजी चाट भंडार का पपड़ी चाट खाने दूर दराज से लोग आते हैं। अलग अलग राज्यों के बारिश के प्रसिद्ध व्यंजनों का लुत्फ उठाना है तो दिल्ली हाट-आईएनए भी बेतहरीन ठौर है। यहां हैदराबाद, कश्मीर, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, बंगाल समेत कई अन्य राज्यों के जायके चख सकते हैं।
बारिश का मजा दोगुना कर देंगे पराठे
चांदनी चौक की पराठे वाली गली वैसे तो पर्यटकों के बीच पहले से ही प्रसिद्ध है लेकिन बारिश में गली का आकर्षण और बढ़ जाता है। यहां आलू के परांठे, गोभी के परांठे, पनीर के परांठों समेत तमाम तरह के परांठे मिलते हैं। ड्राई फ्रूट पराठे भी लोगों की पसंद बन चुके हैं। इसके अलावा मसूर की दाल, मेथी, मूली, पापड़, गाजर समेत पनीर, पुदीना, नींबू, मिर्ची, सूखे मेवों, काजू, किशमिश, बादाम, रबड़ी, खुर्चन केले, करेले, भिंडी तथा टमाटर के पराठे भी हर दिल अजीज बन चुके हैं। यहां आते ही परांठों की खूशबू आपको अपनी ओर खींचने लगेगी।
टेरस व्यू संग काफी, चाय
खुला आसमान, हरियाली की चादर, आसमान से टिप-टिप बरसता पानी और ठंडी हवाओं के बीच टेरस पर चाय बारिश के रोमांच को दोगुना कर देता है। कनॉट प्लेस, हौज खास, लोधी गार्डन इलाके में बारिश के बाद काफी हाउस में बैठ समय गुजारते युवा आसानी से दिख जाते हैं।
सूप
सूप पीना किसको अच्छा नहीं लगता है लेकिन बारिश के मौसम में सूप पीने का मजा ही कुछ और होता है। दिल्ली के चौक चौराहों पर बारिश के बीच टमाटर, चिकन, कॉर्न, मिक्स्ड सूप की चुस्कियां आनंद देती है। कनॉट प्लेस, हौज खास, डिफेंस कालोनी, गोल मार्केट, सरोजनी नगर, खान मार्केट, लाजपत नगर, चांदनी चौक, कालकाजी में सूप अब युवाओं की पसंद बन चुकी है।
जलेबी
परंपरागत भारतीय मिष्ठान। जलेबी का नाम लेते ही हर किसी के मुंह में पानी आ जाता है। ऐसे में बारिश होते समय जलेबी और समोसे का साथ हो, तो इससे बेहतर भला क्या हो सकता है। चांदनी चौक में जलेबीवाले की दुकान विगत कई सालों से बारिश में जायके के दीवानों की पसंदीदा जगह रही है।
बारिश का मजा दोगुना कर देंगे ये जायके
-मोमोज
-रोस्टेड टिक्का
-शाही कबाब।
-कचौड़ी।
-सांभर के साथ इडली व बड़ा।
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बारिश की बूंदों संग मुरथल तक सैर
दिल्ली की बारिश में चांदनी चौक के पराठों का लाजवाब स्वाद तो ठीक है लेकिन और रोमांचक बनाने की चाह में युवा मुरथल की तरफ रूख कर रहे हैं। बाइक, बारिश की बूंदे और ठंडी हवाओं के झोंकों संग सफर ना केवल रोमांचक बन जाता है बल्कि ताउम्र याद रहता है। अभिनेता सुशांत सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे बारिश में भीगते हुए बाइक चलाकर मुरथल पराठा खाने जाते थे ताकि बारिश यादगार बन जाए।
इन पर्यटन स्थलों पर बारिश में भींगते हुए सैर
-इंडिया गेट
-कुतुबमीनार
-लोदी गार्डन
-हौजखास विलेज।
-अक्षरधाम।
-बायोडायवर्सिटी पार्क।