AADTA ने बजट की आलोचना करते हुए उसे सरकारी क्षेत्र के र्शिक्षा के लिए खतरनाक बताया है। उसके अनुसार यह बजट वित्तीय अभाव को बढ़ाकर सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालयों को खत्म करने की दिशा में बढ़ाया गया एक विनाशकारी कदम है। डिजिटल स्तर पर असंतुलित और शैक्षिक असमानता वाले देश में ऑनलाइन शिक्षा के लिए बदलाव सामाजिक न्याय के लिए विनाशकारी बताते हुए AADTA ने शिक्षा के लिए किए गए बजटीय आवंटन को बढ़ाने की मांग की है क्योंकि शिक्षा ही देश में सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावी साधन है।
इस संदर्भ में दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी सदस्य डॉ. सीमा दास ने अपना विरोध प्रकट करते हुए कहा कि ऐसे समय में जब शिक्षक और छात्र निजीकरण का विरोध कर रहे हैं, इस बजट की वित्तीय दिशा में शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में भारी कटौती की गई है। इसका एक ठोस उदाहरण डीयू को यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली फाउन्डेशन नामक कंपनी में बदलना है। जैसा कि ईसी रिपोर्ट में उल्लेख भी किया गया है, यह बजट विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के एक तरह के निगमीकरण को मजबूत करने वाला है। शिक्षा महंगी हो जाएगी और समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों तक पहुंच बनाना मुश्किल हो जाएगा।
AADTA को उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) के लिए पिछले वर्ष के फंड में कटौती की भरपाई की उम्मीद थी, लेकिन यह बजट उच्च शिक्षा के लिऐ निराशा भरा एक दस्तावेज साबित हुआ है। उच्च शिक्षा विभाग के लिए धन को पर्याप्त रूप से बढ़ाने के बजाय, 2023-24 में भी गिरावट के रुझान की ओर संकेत किया गया है, कारण कि उच्च शिक्षा के लिए आवंटित बजट कुल बजट का केवल 0.97% है जबकि 2022-23 के बजट अनुमान में यह आंकड़ा 1.03% था।
बजट का विश्लेषण करते हुए AADTA ने विशेष रूप से रेखांकित किया है कि शिक्षा विभाग का बजट उन योजनाओं से भरा पड़ा है जो ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने और कक्षा शिक्षण को हतोत्साहित करने के लिए हैं। स्थिति यह है कि यूजीसी के लिए आवंटन और केंद्रीय विश्वविद्यालयों को अनुदान नाममात्र का है। दूसरे शब्दों में कहें तो इनमें वास्तविक रूप से गिरावट आई है।
इसी तरह राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (आरयूएसए) के लिए किया जाने वाला आवंटन घट गया है। 2022-23 बजट अनुमान में 2043 करोड़ रु. आवंटन था जबकि मौजूदा बजट में 1500 करोड़ ही रह गया है। कुल मिलाकर AADTA ने बजट को व्यर्थ का आडंबर बताते हुए उसे शिक्षा का शत्रु बताया है। उसके अनुसार बजट सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित उच्च शिक्षा संस्थानों के धन की कमी को खत्म करने में पूरी तरह से विफल दिख रहा है और यह स्पष्ट संकेत देता है कि सरकार पीपीपी के साथ निजी संस्थानों द्वारा संचालित शिक्षा की ओर बढ़ रही है जहां उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और समावेशिता के लिए कोई ध्यान नहीं दिया गया है।