-नेहरू नहीं चाहतेे थे अंग्रेजी के लिए सब्सिडिअरी शब्द इस्तेमाल किया जाए
-गृहमंत्री ने दुखी मन से कहा-हिंदुस्तान में हिंदी कभी नहीं आएगी
गृहमंत्री जीबी पन्त (Govind Ballabh Pant) का सबसे बड़ा गुण उनका धैर्य था। वे कभी भी आपे से बाहर नहीं होते थे। समिति की आखिरी बैठक में टंडन ने उन पर हिन्दी से ‘गद्दारी’ करने का आरोप लगाया तो भी पन्त नहीं भड़के। उन्होंने सिर्फ इतना कहा- “मैं देश की एकता को हिन्दी से बड़ी चीज मानता हूँ। मुझे अफसोस है अगर मैं टंडन जी के पैमाने पर खरा नहीं उतरा।”
पन्त ने हिन्दी को लागू करने को लेकर समिति में सर्वसम्मति बनाने का चमत्कार कर दिखाया था। वे अखिरी चरणों में जल्दबाजी दिखाकर इस उपलब्धि को खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने सदस्यों को अपने विचार व्यक्त करने का पूरा समय दिया। उन्होंने कहा कि वे किसी पर दबाव बनाना नहीं चाहते थे। यह रणनीति सफल रही और समिति की रिपोर्ट लिखने का काम उनके जिम्मे सौंप दिया गया।
समिति की सिफारिश को लेकर, एंथनी के एकमात्र अपवाद को छोड़कर, समिति में पूरी सर्वसम्मति थी। इसमें कहा गया था कि 26 जनवरी 1965 से हिन्दी मुख्य भाषा होगी और अंग्रेजी को सहायक (सब्सिडियरी) भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, जिसे पूरी तरह हटाए जाने के लिए कोई निश्चित अवधि निर्धारित नहीं की जाएगी।
समिति का यह फैसला पन्त के लिए एक बड़ी और शानदार उपलब्धि थी। लेकिन रिपोर्ट को अन्तिम रूप देने से पहले नेहरू की राय जानने के लिए भेजा गया। नेहरू अंग्रेजी के लिए ‘सब्सिडिअरी’ शब्द देखते ही भड़क उठे। क्या अंग्रेजी नौकरों की भाषा थी? पन्त ने उनसे इसी शब्द को रखने का आग्रह करते हुए ‘सब्सिडिअरी’ शब्द के कई अर्थों की सूची बनाकर भेज दी। मुझे इस शब्द के अर्थ ढूँढ़ने के लिए दिल्ली की हर लाइब्रेरी में जाकर न जाने कितने शब्दकोशों को खँगालना पड़ा। उनमें से कुछ में ‘सब्सिडिअरी’ का अर्थ ‘अतिरिक्त’ या ‘एडीशनल’ भी दिया हुआ था।
पन्त ने नेहरू को समझाने की कोशिश की कि दोनों शब्दों का लगभग एक ही अर्थ था। उन्होंने उन्हें यह भी बताया कि खुद मद्रास सरकार की रिपोर्ट में भी अंग्रेजी के लिए • सब्सिडिअरी शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इसमें कहा गया था कि अगर अंग्रेजी को एक ‘सब्सिडिअरी’ आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रखा जाता है तो 1965 तक हिन्दी को प्रमुख अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जा सकता है। लेकिन नेहरू सन्तुष्ट नहीं थे। इतना ही नहीं, वे काफी गुस्से में थे और कहा जाता है कि उन्होंने पन्त के लिए कुछ कठोर शब्दों का भी इस्तेमाल किया। ‘सब्सिडिअरी’ शब्द की जगह ‘एडीशनल’ शब्द रख दिया गया। पन्त ने दुखी मन से कुलदीप नैयर से कहा था, “मेरी बात याद रखना, हिन्दुस्तान में हिन्दी कभी नहीं आएगी।” उनका दिल टूट गया था। उसी शाम उन्हें दिल का पहला दौरा पड़ा। रिपोर्ट का काम पूरा हो जाने के बाद पन्त ने आधिकारिक भाषा के लिए कोई और आयोग या समिति न बनाने का फैसला किया।