जब दिल्ली उजड़ने लगी और मुगल सल्तनत का चिराग टिमटिमाने लगा तो दिल्ली के बड़े-बड़े कारीगर लखनऊ जा बसे। लेकिन वहां भी दिल्ली वालों ने लखनऊ वालों के दांत खट्टे कर दिए। इस सिलसिले में दिल्ली के एक शहजादे मिर्जा आस्मान कद्र और वाजिद अली शाह का एक किस्सा मशहूर है। दिल्ली का यह मुगल शहजादा लखनऊ गया तो वाजिद अली शाह का मेहमान हुआ।

वाजिद अली शाह के दस्तरख्वान पर एक मुरब्बा लाकर रखा गया जो देखने में बड़ा खूबसूरत लगता था। मानो अभी-अभी ताज़ा और स्वादिष्ट बना है। मुगल शहजादे ने उसे खाया तो चकरा गया क्योंकि वह मुरब्बा नहीं था बल्कि नमकीन कोरमा’ था। जिसकी शक्ल मुरब्बे की थी। इस तरह धोखा खा जाने पर शहजादे को बड़ी शर्मिन्दगी हुई। उसने भी वाजिद अली शाह को दावत की।

लखनऊ के बादशाह यह सोचकर आए थे कि आज दस्तरख्वान पर उनके साथ धोखा होगा। मगर वह चौकन्ना रहने पर भी धोखा खा गए और खाते चले गए। मुग़ल शहजादे के दस्तरख्वान पर तरह-तरह के खाने चुने हुए थे। मगर वाजिद अली शाह जिस चीज़ को चखते वह मीठी और शकर की बनी हुई निकलती। सालन थे तो शकर के चावल और पुलाव थे तो शकर के रोटियाँ, अचार और चटनी तक सब शकर की। यहाँ तक कि सब बरतन शकर के थे। वाजिद अली घबराकर एक-एक चीज़ पर हाथ डालते थे और धोखे पर धोखा खाते चले गए।

यह सोचना स्वाभाविक है कि शहजादे आस्मान कद्र का खाना बनाने वाले बावरची नहीं, हलवाई होंगे। यह बात नहीं थी। यह खाना बावरचियों और हलवाइयों ने मिलकर बनाया था। शहजादे के साथ उनका अपना बावरची शेख हुसैन अली और हलवाई भी दिल्ली से लखनऊ गए थे और वे हर तरह की चीजें बनाने में माहिर थे।

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