लाल बहादुर शास्त्री (lalbahadur shastri) के असमय निधन के बाद प्रधानमंत्री बनी इंदिरा गांधी (indira gandhi)। इस पर पर आसीन होने के बाद इंदिरा गांधी का पहला फैसला ललिता शास्त्री (lalbahadur shastri wife lalita shastri) के इस आग्रह को लेकर था कि शास्त्री की समाधि पर ‘जय जवान जय किसान’ (jai jawan jai kisan) लिखा जाए। यह नारा शास्त्री ने 1965 की लड़ाई के दौरान दिया था, जो देश के दो सबसे मजबूत आधारों ‘जवान’ और ‘किसान’ को समर्पित था।
हालांकि कुलदीप नैयर अपनी किताब एक जिंदगी काफी नहीं में लिखते हैं कि अगर इन्दिरा गांधी का बस चलता तो वे शास्त्री की अंत्येष्टि उनके घरेलू शहर इलाहाबाद में करना पसन्द करतीं। उन्होंने कामराज को यही सुझाव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। शास्त्री का अन्तिम संस्कार दिल्ली में किए जाने की मांग पर इन्दिरा गांधी के नकारात्मक रवैये के बाद ललिता शास्त्री ने आमरण अनशन की धमकी दे दी। इन्दिरा गांधी को झुकना पड़ा। राजघाट के क्षेत्र में शास्त्री के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी समाधि बनाई गई और ललिता शास्त्री की इच्छानुसार उस पर ‘जय जवान जय किसान’ लिखा गया।
लंदन की यात्रा नहीं की
प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालते समय इंदिरा गांधी ने समाजवादी समाज के निर्माण केे लिए काम करने की बात कही थी। लेकिन अपने आश्वासन के विपरीत उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में अमेरिका का चुनाव किया, जो एक पूंजीवादी देश था। आलोचकों का मुंह बन्द करने के लिए उन्होंने आखिरी घड़ियाें में इसमें हल्का-सा फेरबदल करते हुए वाशिंगटन पहुंचने से पहले कुछ देर पेरिस में रुककर जनरल दी गाल से मिलने का कार्यक्रम भी बना लिया। अपनी वापसी यात्रा में उन्होंने लंदन और मास्को को भी शामिल कर लिया। (इसके बावजूद लंदन यह कहने से नहीं चूका कि वे पहली भारतीय प्रधानमंत्री थीं जिन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा लदंन की धरती से नहीं शुरू की थी।)