सर्दी की दस्तक के साथ दिल्ली (delhi) की फिजा प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों की चहचहाट से गुलजार हो गई है। नदी, तालाबों और जंगलों में इन दिनों इनकी मौजूदगी दर्ज की जा रही है। जैसे मेहमान से घर में रौनक आ जाती है वैसे ही इन दिनों राजधानी के तमाम जलाशयों, जंगलों में अनूठी रंगत देखी जा रही है। मीलों दूर से कई सरहद पार करते हुए आए विदेशी परिंदों के दीदार के लिए पक्षी प्रेमियों में भी कौतूहल है। वे भी इस मौसम और इस फिजा में घुली इनकी खूबसूरत मौजूदगी का अहसास करना चाहते हैं।
मेहमान परिंदों से मुलाकात करने का इंतजार अब खत्म हो गया है। तकरीबन सभी जलाशयों, नम भूमि और जंगलों में मेहमान पक्षी आ चुके हैं। वैसे तो मेहमान के आने का सिलसिला पूरे साल चलता है लेकिन सर्दियों में साइबेरिया, सेंट्रल एशिया, यूरोप, तिब्बत से आए कई सुंदर पक्षियों को देखना अदभुत अनुभव होता है। साल भर के इंतजार के बाद इन पक्षियों का दीदार होता है। ओखला बैराज में तो इन दिनों समंदर पार से आए सफेद मखमली पंखों वाले गल आकर्षण का केन्द्र है, तो वहीं यमुना नदी में भी गल और पेंटेड स्टोर्क बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं। यमुना नदी के घाटों में तो लोग नाव में बैठकर इनके बीच जा रहे हैं और इनकी खूबसूरती को करीब से निहार रहे हैं। पक्षी प्रेमी कुसुम बताती हैं कि वे हर साल यमुना के घाटों में इन पक्षियों की दुर्लभ तस्वीरें खींचती हैं। इसके लिए यहां घंटों समय बीताना पड़ता है। कई बार तो कुछ ही पल में इन पक्षियों का दीदार हो जाता है तो कई बार कीकर के झुरमुठ से इनके निकलने का काफी इंतजार करना पड़ता है।
दिल्ली में करीब 450 प्रजाति के पक्षी के मिलने की बात है। लेकिन घरेलू पक्षियों के साथ विदेशी मेहमानों को देखना दिल को सकून देता है। पक्षियों को सिर्फ शौक से निहारने वालों को यह पता नहीं कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। पक्षियों को देखने से लोग तनाव से दूर हो सकते हैं। यह एक तरह का अनूठा आर्ट ऑफ लिविंग है। पचास से ज्यादा प्रजाति के अप्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है। हर साल तकरीबन पांच हजार से ज्यादा मेहमान यहां ठहरते हैं। येलो आई बैबलर, स्पैनिश स्पैरो,रेड क्रिस्टेड, पिनटेल, गेडवॉल, कॉमन पोचार्ड जैसे कई विदेशी मेहमान को देख सकते हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो केन्या की राजधानी नेरोबी में सबसे ज्यादा पक्षियों की प्रजाति देखी जाती है। उसके बाद दिल्ली का नंबर आता है। दिल्ली में 450 प्रजाति के पक्षियों की चहचहाट सुनने को मिलती है। यहां हर मौसम में प्रवासी और अप्रवासी पक्षी आते हैं और फिर उड़ कर वापस चले जाते हैं, लेकिन सर्दियों की बात ही कुछ और है। बरसात के बाद जलाशय भी भरे होते हैं, पानी और जंगलों में इनके भोजन के लिए काफी कुछ होता है। इसलिए इस मौसम में पक्षियों के आने का सिलसिला ज्यादा रहता है। इन्हें देखने वालों को भी इनका इंतजार बेसब्री से होता है। दिल्ली में साइबेरिया, सेंट्रल एशिया, यूरोप, तिब्बत से कई अप्रवासी पक्षी आते हैं। राजधानी में इन पक्षियों के आने की वजह यह भी है कि यहां हर तरह का वातावरण उन्हें मुहैया होता है। जैसे यहां नम भूमि के साथ साथ जंगल भी हैं, पहाड़ी क्षेत्र भी हैं। पहले यहां साइबेरियन हंस भी दिखा करते थे लेकिन साल 2002 के बाद दिल्ली में यह पक्षी नहीं दिखा है। इन परिंदों को जितना देखना सकूनभरा होता है उतना ही पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए भी जरुरी है।
यमुना नदी का किनारा हमेशा से अप्रवासी और प्रवासी पक्षियों के लिए पसंदीदा स्थान रही है। इस पार्क के विकसित होने से पहले से भी कई प्रजाति यहां हर सर्दी के मौसम में चले आते थे। हजारों मील की दूरी तय करके वे इन नम भूमि में कुछ पलों के लिए ठहरते हैं। यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में तकरीबन 30-32 प्रजाति के अप्रवासी पक्षी देखने को मिलते हैं। सबसे खास बात यह है कि यह स्थान क्रियाशील पारिस्थितिकी तंत्र (फंक्शनल इकोसिस्टम) है इसलिए यहां बर्ड फ्लू का असर नहीं दिखता। इस पार्क की 457 एकड़ भूमि में पांच किलोमीटर का क्षेत्र नम भूमि का है। पक्षियों को देखने के लिए यहां जगगह जगह ट्रेल बनाए गए हैं और आने वाले दिनों में यहां मचान भी बनाए जाएंगे। सर्दियों में मौसम अच्छा होता है इसलिए पक्षियों के दीवाने घंटों इनकी अठखेलियों को देखते हैं। हर दिन इनके लिए गाइडेड टूर भी रखा जाता है। हर साल यहां कुछ नया देखने को मिलता है। पिछले साल लार्ज क्रिसटेड ग्रीब देखा गया था। इस वर्ष भी कुछ अनदेखे मेहमान के दीदार की उम्मीद है।
सेट्रल एशिया से आने वाले अप्रवासी पक्षी
रेड क्रिस्टेड (लालसर) – इस पक्षी का साइज में बड़ा होता है, तकरीबन 3-5 किलो का होता। चोंच उसकी लाल होती है, नारंगी सिर होता है। सेंट्रल एशिया और साइबेरिया। जलीय पौधे पर भोजन करती है। खाती है। सर्दी सारे तालाब बर्फ बनते है। वापस चले जाते हैं। यहां ब्रीड नहीं करते।
शॉवलर –शॉवलर नर का सिर हरा होता है। इसकी चोच फ्लैट चमच (स्पैचुला)जैसा होता है जिससे यह पानी को फिल्टर करके अपना भोजन करता है। पानी। मादा शॉवलर का सिर ब्राउन होता है। नर और मादा दोनों को ध्यान से देखने से इनमें अंतर देखा जा सकता है।
यूरोप से आने वाले कुछ अप्रवासी पक्षी
पिनटेल – एक विचित्र पक्षी है। ऐसा इसलिए नहीं कि यह दिखने में विचित्र है लेकिन इसके भोजन करने का तरीका बेहद अलग है। यह पक्षी अपनी चोंच को पूरी तरह से पानी में डाल देता है, जिससे इसकी पिन की तरह नुकीली पूंछ ऊपर दिखाई देती है। इस पक्षी का सिर हरा होता है।
गेडवॉल- भ्ररे रंग की बतखें जैसी होती है।
फिरोजेनिस पोचार्ड- इस पक्षी की आंखें सफेद होती है। यह पक्षी पानी के अंदर डाइव करके खाना खाते हैं। पानी के अंदर वलिसनेरिया नामक पौधे खाते हैं।
यूरोशियन वीजन- इसके सिर पर पीले का रंग का तिलक होता है। यह काफी दुर्लभ प्रजाति है। यह पक्षी जलीय पौधे खाते हैं। इनकी उपस्थिति नम भूमि में ज्यादा दर्ज होती है।
कॉमन पोचार्ड- भूरे रंग का बतख जैसा दिखता है। इसका सिर मिट्टी के रंग जैसा दिखता है।
ग्रेट कारमोरेन – चीन से आने वाले इस पक्षी का रंग काला होता है और यह झुंड में रहना पसंद करती हैं। चीन से आने वाली यह प्रवासी पक्षी मछलियों का शिकार बहुत बढ़िया तरीके से करती हैं। यह पक्षी एक ही तरह की मछलियां को खाती खाती हैं। इसकी खास बात यह है कि यह अपने पंखों को सुखाने के लिए पेड़ों की साखों पर बैठती हैं।
कूट – तिब्बत से आने वाले कूट काले रंग का होता है और इसकी चोंच सफेद होती है।
खूबसूरत परिंदों की खास जगहें —
यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क में वैसे तो 30 प्रजाति के अप्रवासी पक्षी आते हैं लेकिन रेड क्रिस्टेड पोचार्ड यही देखने को मिलता है।
ओखला बैराज
इस स्थान पर चीन से आने वाली गीज बड़ी संख्या में बसेरा करती हैं। इन्हें पानी में अठखेलियां करते देखना अद्भुत अनुभव होता है।
चिड़िया घर
पेंटेड स्ट्रोक, रोसी पेलिकन, स्वैन, फ्लैमिंगोज
नजफगढ़ के कांगनहेड़ी
फ्लैमिंगोज (कच्छ ) सुंदर लगती हैं। पेलिकन हिमाचल आती हैं। ब्लैक हेडेड इलबिस, ब्लैक टेल गोडविट, पेंटेंड स्टोर्क
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