-निरीक्षक ने छात्र को फेल कर दिया, शून्य अंक दिए

-कानून मंत्रालय ने भी यूपीएससी का किया समर्थन

1965 में हिन्दी को भारतीय संघ की प्रमुख भाषा घोषित किया गया तो यू.पी.एस. • सी. की परीक्षा देनेवाले एक छात्र ने सभी प्रश्नों के उत्तर हिन्दी में दिए और हर उत्तर की शुरुआत ‘हिन्दी माता की जय’ के नारे से की। लेकिन निरीक्षक उसकी भावनाओं के प्रवाह से प्रभावित नहीं हुए और उसे ‘शून्य’ अंक दे दिए गए।

कानून मंत्रालय ने यू.पी.एस.सी. का समर्थन किया और कहा कि वह अपने नियम खुद बनाती थी। लेकिन गृह मंत्रालय को डर था कि वह छात्र उच्चतम न्यायालय में जा सकता था। इसलिए केबिनेट ने सैद्धान्तिक रूप से आठवीं सूची में शामिल सभी पन्द्रह भाषाओं में उत्तर देने की छूट देने का फैसला किया। हालाँकि इस सूची में अंग्रेजी शामिल नहीं थी, लेकिन उसे एक वैकल्पिक माध्यम के रूप में जारी रखने का फैसला किया गया।

पन्त अभी हिन्दी के प्रयोग की माँग से उबरे ही थे कि उनके सामने एक और समस्या आन खड़ी हुई। यू.पी.एस.सी. की परीक्षा में एक छात्र को इसलिए फेल कर दिया गया था क्योंकि वह पर्सनेलिटी टेस्ट में पास नहीं हो पाया था। अन्य सभी विषयों में उस छात्र को 90 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए थे। पन्त को लगा कि यह न्यायपूर्ण नहीं था। उन्होंने आदेश दिया कि मौखिक परीक्षा को एक सामान्य विषय के रूप में देखा जाए और इसे अनिवार्य नहीं माना जाए। पर्सनेलिटी टेस्ट के अंक कुल अंकों में जोड़े जाने चाहिए, लेकिन इसमें फेल होनेवाले छात्र को अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए।

नेहरू ने प्रतियोगियों के लिए जरूरी पुलिस प्रमाण-पत्र की औपचारिकता को काफी नरम बना दिया था। इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि कहीं प्रत्याशियों की कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि तो नहीं थी। जब तीन ऐसे प्रत्याशियों के मामले नेहरू के पास पहुँचे जिनकी रिपोर्ट से उनके कम्युनिस्ट रुझान का पता चलता था, तो नेहरू ने इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए उन्हें अपना प्रशिक्षण पूरा करने की अनुमति दे दी। उन्हें आई.ए.एस. में ले लिया गया। लेकिन इंटेलीजेंस ब्यूरो आज भी प्रशिक्षार्थियों की पृष्ठभूमि की जाँच करके यह पता लगाता है कि कहीं उनका कम्युनिस्ट रुझान तो नहीं है।

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