-सिविल लाइंस में विगत 20 सालों से ड्राई फ्रूटस समोसा का सिरमौर

चौड़ी सड़कों पर दोनों तरह हवा संग बाते करते हरे पौधे। शांत, साफ, सुथरा माहौल में सीना ताने खड़े बंगले। सिविल लाइंस की यही खासियत तो अंग्रेजों को भी पसंद आयी थी। शायद तभी तो शहर आबाद करने का ख्याल आने पर सबसे पहले सिविल लाइंस ही बसाया। जहां दिल्ली की सरजमीं पर कदम रखने वाला हर अंग्रेज रहना चाहता था। यहां अंग्रेजों के अलावा पढ़े लिखे ऊंचे तबके के लोगों की रिहायश रही। आजादी के बाद सिविल लाइंस की पहचान बंगलों, सरकारी दफ्तरों, पुराना सचिवालय से इतर जायके के बेहतरीन ठौर वाली जगहों से भी होने लगी। आज यहां कई ऐसी दुकानें हैं जहां लाजवाब जायका मिलता है। लेकिन स्थानीय लोगों से समोसे का ठौर पूछेंगे तो जुबां पर उत्तम समोसा जंक्शन का नाम सबसे पहले आता है।

तभी तो जब पुराना सचिवालय के पास दुकान का पता पूछा गया तो एक स्थानीय निवासी हंसते हुए कहा कि यहां से कुछ दूरी पर जाइएगा। बाकि थोड़ी दूर जाने पर समोसे की खुशबू और लोगों की भीड़ से आपको खुद ब खुद अंदाजा लग जाएगा। उनकी यह बाते सच भी थी। छोटी सी दुकान, जहां ना बहुत सजावट, ना बड़े-बड़े एसी, टेबल, कुर्सियां। लेकिन बाहर लोगों की लाइन लगी थी। दस-बीस मिनट इंतजार करने के बाद भी समोसा खा रहे थे। कोई मीठी तो कोई हरी चटनी मांग रहा था। आखिर ऐसा क्या है, यहां के समोसे में जो रोहिणी से मिस्टर अंकुर तिवारी को खींच लाया। अंकुर कहते हैं, ड्राईफ्रूट के समोसे तो कई जगह खाए लेकिन यहां बात ही कुछ और है। इस पर हंसते दुकान पर बैठे आकाश अग्रवाल कहते हैं कि दरअसल, मेरे पापा विनेश अग्रवाल के हाथ में जादू है।

आकाश बताते हैं कि उनका परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शामली जिले का रहने वाला है। पिता 20 साल पहले अपने पैरों पर खड़ा होने की उम्मीद पाले दिल्ली आए। यहां उन्होंने सबसे पहले हलवाई की दुकान खोली। जहां कई तरह की मिठाईयां मिलती थी। पिता इसमें पारंगत भी थे। क्यों कि शामली स्थित हनुमान टिला मंदिर के बाहर एक पुश्तैनी दुकान संभालने का अनुभव था। यहां सिविल लाइंस में दुकान खुली तो ग्राहक भी आने लगे। लोगों ने पसंद किया। इस बीच 2002 में समोसे बेचने का ख्याल आया। बस फिर क्या था, समोसे बेचने शुरू भी कर दिए। विनेश अग्रवाल कहते हैं कि उस समय 2 रुपये में एक समोसे बेचता था। लोग मीठी, खट्टी चटनी के साथ खाते थे। आज कल 25 रुपये के एक समोसे बिकते हैं।

समोसा बनाते कैसे हैं के सवाल पर आकाश हंसते हैं। कहते हैं, जैसे सब बनाते हैं, वैसे ही बनाते हैं। असली कमाल तो पापा के हाथ के जादू का है। हम काजू, किशमिश, बादाम, अखरोट, नारियल का समोसा शाही समोसा नाम से बेचते हैं। इसका मसाला हम खुद घर पर तैयार करते हैं एवं बनाते भी खुद ही है। हरी चटनी धनिया, पुदीना और टमाटर की बनाते हैं जबकि मीठी चटनी इमली की होती है। दुकान पर ही समोसे खा रहे विमल कहते हैं कि दिल्ली में लगभग हर जगह समोसे मिलते हैं। कहीं भी खाइए, कुछ न कुछ कमी जरूर मिलती है। कोई तीखा बना देता है तो कहीं अंदर मसाला ठीक से नहीं भरा रहता है। लेकिन यहां ऐसा नहीं है। हर चीज आपको परफेक्ट मिलती है। यही वजह है कि हम यहां समोसे खाने आते हैं।

समोसा पसंद करने वालों की फेहरिस्त लंबी

राजनीतिक गलियारे में उत्तम समोसा जंक्शन का समोसा सत्ता-विपक्ष की दूरियां पाट देता है। भले ही राजनीतिक गलियारे में दल एक दूसरे का विरोध करें लेकिन शायद समोसे की दुकान उनके बीच की दूरियां पाट देती है। आकाश कहते हैं कि यहां भाजपा से लेकर आम आदमी पार्टी तक के नेता आते हैं। विजेंद्र गुप्ता, अमानतुल्ला खान, केंद्रीय मंत्री विजय गोयल, पार्षद अवतार सिंह, रोहिणी के विधायक समेत अन्य राजनेताओं को समोसा पसंद है।

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