बिहार की राजनीति (Bihar Politics) लालू यादव (Lalu prasad yadav) के बिना अधूरी है। यह लालू यादव की राजनीतिक (Indian Politics) सुझबूझ का ही नतीजा है कि जेल में लंबा समय गुजारने के बाद भी आज भी राजनीतिक गलियारे में उनकी चर्चा खूब होती है। इसके पीछे बडा कारण लालू यादव का अपना स्टाइल है। लालू हंसी-मजाक में बडी बात कहने का माद्दा रखते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि लालू स्कूल के दिनों में अभिनय भी किया करते थे।

अपनी बॉयोग्राफी गोपालगंज टू रायसीना: माइ पोलिटिकल जर्नी (Gopalganj to raisian: My political journey) में लालू लिखते हैं कि वो नकल बहुत अच्छा करते थे। हालांकि, उन्हें यह पता नहीं चला कि कब नकल करना सीखे। लेकिन लालू इसमें बहुत माहिर थे। उनके दोस्त और शिक्षक लालू के अभिनय का आनंद उठाते थे। बकौल लालू, गांव और स्कूल में चोर सिपाही का खेल करते-करते अभिनय सीखा।

लालू लिखते हैं कि हमारे स्कूल में एक बार बीएमपी सभागार में शेक्सपीयर के नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का मंचन हुआ। लालू ने इसमें शायलॉक की भूमिका निभाई। दर्शकों में मौजूद बीएमपी के अधिकारी, स्कूल के शिक्षक और वेटर्नरी कॉलेज के निवासियों ने लालू के एक्टिंग की खूब तारीफ की। बीएमपी कमांडेंट ब्रजनंदन बाबू ने लालू को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा।

लालू कहते हैं कि यह उन क्षणों में था, जिन पर वो गर्व करते हैं। उन्हें एहसास हुआ कि लोगों को हंसा सकते हैं। बकौल लालू जब लोगों को मेरी बात में आनंद आता तो मैं खुश होता था। मुझे खुद पर हंसना पसंद था। इन्हीं दिनों आकाशवाणी से प्रसारित होने वाला भोजपुरी धारावाहिक लोहा सिंह भोजपुरी भाषियों के बीच खूब पसंद था। धारावाहिक का मुख्य पात्र लोहा सिंह अपनी पत्नी को खदेरन कहता था। उसका एक संवाद ‘अरे ओ खदेरन को मदर, जब हम काबूल का मोरचा में था नू’ बहुत ही लोकप्रिय हो चुका था। यह सुनकर लोग लोटपोट हो जाते थे। लालू यादव इसे इस अंदाज में पेश करते कि लोग खूब हंसते।

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