सुल्तान मुबारक शाह (sultan mubarak shah) ने 1421 से 1433 तक शासन किया। मुबारक शाह के पिता खिजिर खां (khijir khan) ने मृत्युशैय्या पर अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था, उसकी मृत्यु के दिन ही दिल्ली के सरदारों की सहमति से मुबारक शाह दिल्ली (Delhi) के राजसिंहासन पर बैठा। उसी के शासन-काल में यहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने अपनी तारीखे-मुबारकशाही लिखी, जो इस काल के इतिहास की जानकारी के लिए अमूल्य है। इतिहासकार कहते हैं कि मुबारकशाह का शासन-काल भी, उसके पिता के शासनकाल की तरह ही, घटना-शून्य तथा उदासी से भरा है। उपद्रवों का शमन करने के अभिप्राय से दण्ड देने वाले कुछ आक्रमणों के अतिरिक्त, जिनमें सुल्तान को विवश होकर अपनी सेना के साथ जाना पड़ा, कुछ भी वर्णन करने योग्य महत्त्व की बात नहीं है।

हां उसने 31 अक्टूबर 1432 को यमुना नदी के किनारे एक शहर की नींव डाली। परिस्थितियां ऐसी बनी कि इसका नाम बीमार शगुन पड़ गया। यह शहर था मुबारकाबाद। हालांकि सुल्तान शहर के हर भवन को बनाने में जी जान से जुटा था। लेकिन 19 फरवरी, 1434 ई. को यमुना के किनारे मुबारकाबाद नामक एक नये आयोजित नगर के निर्माण के निरीक्षण के लिए जाते समय सुल्तान, असन्तुष्ट वजीर सखरुलमुल्क के नेतृत्व में वह एक सुनियोजित षड्यंत्र का शिकार बन गया एवं इसकी हत्या कर दी गई। इसे मुबारकपुर में ही दफनाया गया। मकबरा बहुत ही भव्य है।

मकबरे के चारो तरफ एक गैलरी है। प्रवेश पर कमल बना हुआ है जो कि सुल्तान मोहम्मद शाह सैय्यद मकबरा लोदी गार्डन के समानांतर दिखता है। कैरन स्टीफंस ने इस मकबरे के बारे में सन 1876 में लिखा था मकबरा चारे तरफ से 24 पिलर से जुड़ा है। गुंबद इसके खूबसूरत लाल पत्थर से बने हैं। हालांकि वर्तमान में इसके चारो तरफ कई बिल्डिंग बन चुके हैं, जिसकी वजह से यह मकबरा छिप सा गया है। राना सफवी अपनी पुस्तक द फॉरगटन सिटी आफ दिल्ली में लिखती हैं कि उन्हें एक स्थानीय निवासी ने उन्हें बताया कि यह मकबरा एलजी जगमोहन मलहोत्रा के हस्तक्षेप के बाद स्थानीय लोगों को मिला था। दरअसल, लोगों ने पत्र लिखकर इसे स्थानीय लोगों के लिए खोलने की गुजारिश की थी।

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