फुटबाल खेलते समय रेफरी के निशाने पर क्यों होते थे लालू यादव

सियासी गलियारे (Indian Politics) में लालू यादव (Lalu yadav) की धमक किसी से छिपी नहीं है। लालू राजनीति के जितने माहिर खिलाडी है, स्कूल के दिनों में फुटबाल में भी उतने ही माहिर थे। अपनी बॉयोग्राफी गोपालगंज टू रायसीना: माई पोलिटिकल जर्नी में लालू यादव ने अपने स्कूल के दिनों की कई कहानियां साझा की है।

लालू यादव लिखते हैं कि, मैं विज्ञान नहीं पढ सकता। क्योंकि उसमें बीज गणित एक अनिवार्य विषय है। मैं कला के विषयों हिंदी, अंग्रेजी, नागरिक शास्त्र, इतिहास, भूगोल में अच्छा था। अंग्रेजी, हिंदी व अन्य विषयों की तरह उतनी अच्छी नहीं थी। हालांकि परीक्षा में अंग्रेजी में अच्छे नंबर ले आते थे।

लालू यादव की लिखावट भी बहुत अच्छी नहीं थी। वो कोशिश करते थे कि साफ और स्पष्ट लिखा जाए। इतना ही नहीं निबंध लिखने में महारत हासिल थी।

लालू लिखते हैं कि मिलर हाईस्कूल में मैं एक जोशीले फुटबाल खिलाडी के रूप में उभरने लगा। मैं गंवारु और अक्खड था। इसलिए रेफरी से सर्वाधिक यलो और रेड कार्ड मिलता था। असल में मैं जब देखता कि मेरी टीम के किसी खिलाडी को कोई गलत तरीके से टंगडी मार रहा है तो मैं उस खिलाडी का पीछा करते हुए उस पर टूट पडता। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता था कि मेरी टीम के खिलाडियों को विरोधी टीम चोट पहुंचाए। रेफरी मुझे पसंद नहीं करते थे लेकिन अपनी टीम का मैं फेवरिट खिलाडी था।

इसी किताब में लालू लिखते हैं कि कई वर्षों बाद मैं मुख्यमंत्री बना तो मिलर हाईस्कूल का नाम बदलने का आदेश जारी किया। दरअसल, लालू यादव का मानना था कि स्कूल का नाम किसी बिहार के सम्मानित व्यक्ति पर होना चाहिए। तय हुआ कि इसका नाम महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देवीपद चौधरी के नाम पर रखा जाएगा। देवीपद ने इसी स्कूल से पढाई भी की थी।

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