साइमन फ्रेजर ऑक्टरलोनी के पुराने मातहत विलियम फ्रेज़र का दूर का रिश्तेदार था लेकिन उससे बिल्कुल भिन्न । वह एक मोटे जिस्म का खुशमिज़ाज, धार्मिक, तन्हा, ऐसा शख्स था जिसे गाने का बहुत शौक था और जिसकी जिंदगी का मकसद दोस्तों के लिए संगीत की छोटी-मोटी पार्टियां आयोजित करना था। उसकी रिश्तेदारी ईस्ट इंडिया कंपनी के इंजीली डायरेक्टर चाल्स ग्रांट से भी थी जिसने उसे हिंदुस्तान में नौकरी दिलवाई थी। फ्रेज़र हिंदुस्तान आने पर पादरी जेनिंग्स से और उनकी राय से मुत्तफिक नहीं था लेकिन चूंकि वह एक अच्छा ईसाई था इसलिए वह उसकी इज़्ज़त करता था।”

थोड़े ही दिन के बाद फ्रेज़र सेंट जेम्स चर्च के कॉयर में भी शामिल हो गया जो जेनिंग्स की ख़ूबसूरत 21 साल की बेटी ऐनी ने कायम किया था जो शुरू-शुरू हिंदुस्तान आई थी। जब से ऐनी और उसकी खूबसूरत दोस्त मिस क्लिफर्ड ने मिलकर कॉयर का इंतज़ाम अपने ज़िम्मे लिया था, छावनी से सेंट जेम्स चर्च की लंबी इतवार की सर्विस सुनने वालों की तादाद बहुत बढ़ गई थी, और जल्द ही न सिर्फ वहां गाने और बाजा बजाने वालों की बहुतात हो गई बल्कि बंगाल रेजिमेंट का बाजा बजाने वाला एक सिपाही लेफ्टिनेंट चार्ली थॉमासन पादरी जेनिंग्स की बेटी से मंगनी करने में भी कामयाब हो गया।”

सर थॉमस की तरह साइमन फ्रेजर की बीवी की भी कम उम्र में मृत्यु हो गई थी। लेकिन वह अपने बच्चों को अपने पास न रख पाया क्योंकि उन्होंने शुरू से ही अंग्रेज़ी स्कूल के बोर्डिंग में शिक्षा पाई और फिर वहीं रह गए। वह अपने बाप से बहुत कम संपर्क रखते थे और अगर कभी ख़त भी लिखते तो पैसे मांगने के लिए। उसने एक बार अपने बड़े बेटे को डांटकर लिखा, “मुझे तुम्हारी निजी जिंदगी की किसी भी तफ्सील का ज्ञान नहीं है जो बहुत अफसोस की बात है लेकिन ऐसा लगता है कि ख़तो किताबत से नफरत करना हमारे खानदान की खासियत है।” जब उसका एक और बेटा रेवरेंड साइमन जे. फ्रेज़र हिंदुस्तान में नौकरी करने आया और वह उससे मिलने गया तो दोनों बग़ैर एक-दूसरे को पहचाने एक दूसरे के करीब से गुज़र गए।

फ्रेज़र ने अपनी सारी जिंदगी कंपनी की नौकरी में गुज़ारी थी लेकिन वह किसी क्षेत्र में भी नाम नहीं हासिल कर सका। दिल्ली उसकी आखरी पोस्टिंग थी और उसके बाद उसको कोई उम्मीद न थी, इसलिए उसने फ़ैसला किया कि वह इस ओहदे का ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाएगा। 1854 में उसने अपने बेटे को लिखाः

“मैं इस ओहदे पर बहुत संतुष्ट हूं। दिल्ली मुझे बहुत रास आई है और मैं उन सब छोटी-मोटी बीमारियों से निजात पा गया हूं जो अक्सर मुझे होती रहती थीं। हम गिरजा में बहुत मेहनत से गा रहे हैं और हमने एक बहुत खूबसूरत तराना सीखा है जो आजकल के हालात के लिए उचित है। उसका कोई विरोध नहीं हुआ और चर्च आने वाले सभी लोग उसको बहुत पसंद करते हैं। यहां एक-दो अच्छे गाने वाले हैं और मैं उम्मीद करता हूं कि इस गर्मी के मौसम में सबको महीने में दो बार कुछ धर्मनिरपेक्ष गाने सुनने के लिए मदद कर सकूंगा। लेकिन सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर ही आन पड़ती है चाहे यह महफिल मेरे घर में हों या कहीं और यहां के लोग इतने बेकार हैं कि अगर कोई और उनके लिए कुछ करे तो वह उसमें शरीक ज़रूर हो जाएंगे लेकिन खुद कुछ करने की तकलीफ गवारा नहीं करेंगे। और संगीत की महफिल तो अभ्यास के बगैर करना बहुत मुश्किल है।

फ्रेज़र अपने गाने की महफिलों में इतना मसरूफ़ था कि उसे अपने दफ्तर का काम करने के लिए वक्त निकालना भी मुश्किल लगता था और उसने एक पूरा महीना दिल्ली में गुज़ार दिया और बादशाह से मिलने नहीं गया बल्कि जब बादशाह ने उनके सम्मान में 1 दिसंबर 1853 को रोशनआरा बाग में एक दावत का इंतज़ाम किया तो वह उसमें भी नहीं पहुंचा। इसका नतीजा यह हुआ कि ज़फ़र की बीवियां जो इस जश्न के दौरान बाग़ में कयाम करने आई थीं, उनको सख्त सर्दी होने की शिकायत हुई और उनकी रखैलों को अलग शिकायत थी कि जो सिपाही बाग़ के पहरेदार थे, वह उन पर गंदै फिकरे कसते हैं।”

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here