मोहम्मद अली जिन्ना (muhammad ali jinnah) ने 16 वर्ष की उम्र में मुम्बई विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की। जिन्ना के निजी सचिव के. एच. खुर्शीद ने, जो बाद में भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त हो गए थे, इसकी पुष्टि की है। जिन्ना के पिता कराची की एक अंग्रेज कम्पनी, डगलस ग्राहम ट्रेडिंग कंपनी के साथ मिलकर व्यापार करते थे। इस फर्म का अंग्रेज मैनेजर सर फ्रेडरिक ली क्राफ्ट जिन्ना को पसंद करता था। उसने जिन्ना के पिता से बातचीत करके जिन्ना को फर्म का अप्रेंटिस बनाकर पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड भेजने का प्रस्ताव किया।

मां ने रखी शर्त

जिन्ना की मां ने बेटे को विदेश भेजने से इंकार कर दिया। भय था कि उसके बेटे को कोई अंग्रेज लड़की अपने प्रेम जाल में फंसाकर वहीं न बसा ले। पिता-पुत्र के बहुत अनुनय-विनय करने के बाद जिन्ना की मां इस शर्त पर उसे इंग्लैण्ड भेजने को तैयार हुई कि वह जाने से पहले विवाह करे। जिन्ना का बहुत छोटी उम्र में (16 वर्ष ) में ही अमई बाई (14 वर्ष) से विवाह कर दिया गया।

जिन्ना मूल रूप से ग्राहम ट्रेडिंग कम्पनी में सहायक के तौर पर विदेश गए। तथापि, इरादा यह भी था कि वह वहां पढ़ाई भी करे। इस संबंध में भी मतभेद है कि जिन्ना को किस विषय की पढ़ाई करने के लिए विदेश भेजा गया था। जिन्ना के पिता पारिवारिक सम्पत्ति के विवाद में उलझे थे। यह खतरा पैदा हो गया था कि कहीं परिवार को सम्पत्ति से वंचित न होना पड़े। इस खतरे को टालने के लिए जिन्ना को कानून की पढ़ाई करने विदेश भेजा गया। इसके विपरीत यह कहा जाता है कि जिन्ना को व्यापार के गुर सीखने के लिए विदेश भेजा गया था।

विवाह के दूसरे दिन (1892) मे जिन्ना इंग्लैंड के लिए रवाना हो गया। जहाज में यात्रा के दौरान एक वृद्ध अंग्रेज ने अकेले एक दूर-दराज देश को जा रहे इस किशोर को अपनाया और उसके साथ पुत्रवत व्यवहार किया। उसने उसे अपना लंदन का पता दिया। बाद में जब कभी वह अंग्रेज भारत से स्वदेश आता था, वह जिन्ना को भोजन के लिए बुलाता था।

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