जिंदगी में असफलता बहुत जरूरी होती है। वह असफलता ही है जो हमें अपनों के होने का एहसास कराती है। पराए असफलता में साथ छोड़ देते हैं। यह एहसास राज कपूर (Raj Kapoor) साहब को भी हुआ था। अपनी आत्मकथा में उन्हाेने लिखा कि ‘मेरा नाम जोकर’ (Mera Naam Joker) फ्लॉप हो गई। वे सब लोग, जिन्होंने मेरे साथ काम किया था, हमेशा मेरे साथ रहे थे और जिन्होंने मेरी फिल्मों से लाखों कमाए थे, मेरी ओर पीठ करके खड़े हो गए। मुझे आर. के. स्टूडियो, मेरा घर, मेरी बीवी के आभूषण, और जो कुछ भी मेरे पास था, गिरवी रखना पड़ा। मुझे लगा कि मैं समाप्त गया हूँ। फिर मैंने ऊपर की ओर उस प्रसिद्ध आर.के. बैनर को देखा और मुझे ज्ञात हुआ कि सबकुछ गिरवी चढ़ गया, पर राज कपूर का नाम नहीं और जब तलक यह बैनर खड़ा है, राज कपूर रहेगा और मुझे विश्वास है कि यह बैनर हमेशा खड़ा रहेगा, उसी तरह चमकता हुआ, जैसे यह आज चमक रहा है।

राज कपूर ने जब ‘बॉबी’ (Bobby film) शुरू की, तो यही सोचा कि इस फिल्म से अपनी पुरानी ख्याति फिर से प्राप्त करेंगे। उन्होंनेे ‘बॉबी’ को ठीक उसी तरह से देखा, जैसे बाद में लाखों लोगों ने इसे देखा। बकौल राज कपूर, मैं विश्वास से भरा था। पर जब मैंने यह निर्णय लिया कि मेरा पुत्र ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) इस भूमिका के लिए उचित रहेगा तो मैंने पहले उससे पूछा कि क्या वह मेरे जैसे एक फ्लॉप फिल्म कलाकार और एक अधिक कार्य की अपेक्षा करने वाले निर्देशक के साथ काम करेगा?

कॉमिक्स से आया बॉबी फिल्म बनाने का विचार

अगर मैं ईमानदारी से कहूँ तो मैं बहुत शिक्षित व्यक्ति नहीं हूँ। मैं मानता हूँ कि जीवन के प्रति जागरूकता की शिक्षा अपने आप में बहुत आवश्यक है। ‘आर्ची’ कॉमिक में मैंने एक वाक्य देखा, जिसे आर्ची स्वयं बोलता है, कुछ ऐसे, “सत्रह की उम्र किशोरावस्था नहीं रह गई है। हमारी भी तो अपनी जिंदगी है और हम इसके प्रति अनभिज्ञ हैं। ” यह मुझे घर कर गई। आजकल के बच्चे ऐसे नहीं हैं, जैसे वे बीस वर्ष पहले थे। वे अपने वातावरण और अपने स्वयं के प्रति अधिक जागरूक हैं। वे ज्यादा जिम्मेदार हैं उससे, जैसे हम बीस, तीस या चालीस वर्ष पहले थे। हमारे दादा परदादा बड़े थे, विवाहित और बच्चोंवाले थे, फिर भी उनको कहा जाता था, “चुप रहो, तुम एक बच्चे हो !” आप आज यह किसी बच्चे से नहीं कह सकते। इस बारे में सोचने से मुझे ‘बॉबी’ बनाने का विचार आया।

राज कपूर ने अपने भाग्य को ‘मेरा नाम जोकर’ की असफलता के बाद इस यौवनपूर्ण और तूफानी मनोरंजक फिल्म से उलट दिया, जिसमें उन्होंने अपने बेटे ऋषि कपूर और प्रतिभावान डिंपल कपाड़िया की एक धधकती प्रस्तुति की। प्रसिद्ध गानों की रचना के लिए संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को लिया गया। ‘झूठ बोले कौवा काटे’ (jhoot bole kauwa kaate) गीत सर्वाधिक लोकप्रिय साबित हुआ और यह फिल्म वर्ष 1973 की सबसे बड़ी हिट साबित हुई। इसे एक बोल्ड फिल्म का दर्जा प्राप्त हुआ, न केवल इसलिए कि इसमें सेक्सी डिंपल कपाड़िया लाल तैराकी की पोशाक में, फिल्म के विज्ञापनों से देख रही है, बल्कि इसके गानों की वजह से भी। शैलेंद्र और हसरत जयपुरी के कल्पनाशील काव्य के मुकाबले, जो सामान्यतः आर. के. फिल्म्स से जुड़े थे, गीतकार आनंद बक्शी का ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों,’ एक अनोखा और सांकेतिक गाना था।

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