india general election 1952

india general election 1952: देश भर के साथ दिल्ली में 1952 में हुए आम चुनावों को लेकर एक फिल्म बनाई गई थी। आजाद हिंदुस्तान के पहले लोकसभा चुनावों के समय बनी इस श्वेत-श्याम फिल्म को देखने से राजधानी की चुनावी गतिविधियों के बारे में पता चलता है। जिसमें सरकारी अमले, मतदान की व्यवस्था में लगे अधिकारियों से लेकर कानून व्यवस्था की देखरेख कर रहे पुलिसकर्मियों तक, के कामकाज सहित मतदान केंद्रों में मतदान के पंक्तियों में खड़े नागरिकों के दृश्य हैं। करीब छह मिनट की यह फिल्म ब्रिटिश पाथे की वेबसाइट (www-britishpathe-com) पर सार्वजनिक रूप से देखी जा सकती है।

india general election 1952 के दौरान जवाहरलाल नेहरू दिल्ली की एक चुनावी सभा में ऊंचाई पर बने मंच पर सीढ़ी से चढ़कर वहां जुटे नागरिकों को भाषण देते हुए नजर आते हैं। तो उस सभा में सफेद कमीज-टोपी और काली पतलून पहने उनकी अवगानी करते कांग्रेस सेवादल के कार्यकर्त्ता भी दिखते हैं। सभा में नेहरू के भाषण को नागरिक आराम से जमीन पर बैठकर सुनते हुए दिखते हैं जबकि मंच चारों तरफ से कांग्रेसी झंडे के कपड़े में लिपटा हुआ दिखता है। ऐसे ही, कांग्रेस के चुनावी पोस्टर में बाई ओर नेहरू का चित्र तो दाई ओर कांग्रेस के दो बैलों की जोड़ी दिखती है। जिसमें “स्थायी असाम्प्रदायिक प्रगतिशील राष्ट्र” के लिए कांग्रेस को वोट देने की अपील भी नजर आती है। उल्लेखनीय है कि देश में लगे आपातकाल (1977) में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में संशोधन करके “धर्मनिरपेक्षता“ शब्द जोड़ा था।

दिल्ली के पहले लोकसभा चुनावों (india general election 1952) में विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्त्ता साइकिल, तांगा, इक्का और जीपों में अपना-अपना प्रचार करते थे। इस फिल्म में कनाट प्लेस के भीतरी सर्किल में कोट-पतलून, धोती-कुर्ता और शर्ट-पैंट पहने साइकिल सवार कार्यकर्त्ता अपने हाथों में झंडे-बैनर लिए नजर आते हैं। इतना ही नहीं, तब के भीड़भाड़ रहित कनाट प्लेस और उसकी दुकानें भी पृष्ठभूमि में दिखाई देती है।

सन् 1952 में चुनाव संचालित करने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में अधिकांश लोग आज कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि पहले कभी चुनाव नहीं हुए थे, यहां तक कि निर्चाचन आयोग भी अनुभवहीन था। इस फिल्म में चुनावी प्रक्रिया में पूरी तत्परता लगे सरकारी अधिकारियों, पुरूष-महिलाएं दोनों ही, के समूह दिखते हैं। जो कि तब की निरक्षर और पहली बार मतदान कर रहे पगड़ीधारी राजस्थानी मजदूरों और घूघंट वाली महिला श्रमिकों को वोट डालने के बारे में समझाते नजर आते हैं। उन दिनों तो किसी ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का तो नाम भी नहीं सुना था, बल्कि पूरी मतदान प्रक्रिया ही बिलकुल अलग थी। मतपत्र पर न तो उम्मीदवारों के नाम होते थे, न चुनाव में भाग ले रही पार्टियों के चुनाव चिन्ह। मतपत्रों पर ठप्पा तक नहीं लगाया जाता था। इसकी बजाय पोलिंग बूथ पर हर उम्मीदवार के लिए एक अलग बक्सा होता था, जिस पर उसका नाम और राजनीतिक दल का चुनाव चिन्ह अंकित होता था। मतदाताओं को मतपत्र-कागज का एक टुकड़ा, जो आकार में एक रुपए के नोट (अब एक और दुर्लभ वस्तु!) से बड़ा नहीं था-को अपनी पसंद के उम्मीदवार के बक्से में डालना होता था।

इस फिल्म में एक ऐसी ही महिला मतदाता हाथ में पर्चा लिए मतदान केंद्र के भीतर वोट देती हुई दिखती है। यहां तक कि मतदान केंद्रों के बाहर वोट डालने वालों की लंबी-लंबी कतारों को देखकर पहले लोकसभा चुनावों में भाग लेने का नागरिकों का उत्साह देखते ही बनता है। ऐसे ही एक दृश्य में, मतदान केंद्र के बाहर वोट डालने की अपनी बारी का इंतजार करती हुई महिलाएं अपने बच्चों के साथ डेरा डाले दिखती हैं। इस तरह, आम चुनावों में पढ़े-लिखे तबके से लेकर गरीब-अनपढ़ महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की बात साफ नजर आती है। यह बात उल्लेखनीय है कि राजधानी में महिलाएं केवल वोट देने में नहीं आगे नहीं थी बल्कि एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में सुचेता कृपलानी नई दिल्ली से लोकसभा से 47 फीसदी मत प्राप्त करके चुनाव जीतने वाली पहली महिला सांसद भी बनी। इसी तरह, लोकसभा चुनावी सुरक्षा प्रबंधन में लगे पुलिस के हाथ में डंडा लिए पगड़ीधारी जवान, गश्त लगाते घुड़सवार पुलिसकर्मियों से उस समय कानून व्यवस्था बनाए रखने के विभिन्न प्रयासों का पता चलता है।

इस फिल्म में एक विशेष बात देखने को मिली और वह थी, दिल्ली के राजपथ पर बंद जीप और साइकिल पर सवार कार्यकत्ताओं के जत्थों का दल विशेष के लिए प्रचार। उसमें भी हैरतअंगेज बात यह थी कि वे सब इंडिया गेट के बीच में से होकर निकल रहे थे। इतना ही नहीं, तब इंडिया गेट पर बनी “छतरी में अंग्रेज राजा की लगी प्रतिमा” भी साफ नजर आती है। आज की पीढ़ी के लिए यह दोनों बातें किसी अचरज से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि इंडिया गेट पर बनी छतरी में लगे अंग्रेज राजा की मूर्ति को समाजवादी दल के नेता राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में हुए व्यापक जनविरोध के परिणामस्वरूप् वर्ष 1958 में हटाया गया था। जबकि पाकिस्तान के साथ हुए बांग्लादेश युद्ध के उपरांत “अमर जवान ज्योति“ का निर्माण दिसंबर, 1971 में हुआ था। अमर जवान के प्रतीक स्वरूप यहां नियमित रूप से एक ज्योति जलती रहती है। इसलिए अब तो इस सड़क और इंडिया गेट के बीच से होकर निकलना प्रतिबंधित है।

तब की दिल्ली में एक चुनावी बैनर को खुली मोटर गाड़ी में ले जाते हुए के दृश्य से चुनावी प्रचार की गतिविधियों का पता चलता है। उस बैनर में अंग्रेजी में लिखा था, “विल आफ द पीपुल शैल बी द लॉ आफ द स्टेट”। जबकि चुनावी रैली में कांग्रेस पार्टी के पोस्टर में हिंदी और उर्दू भाषा का इस्तेमाल था। नई दिल्ली से होकर गुजरने वाले चुनावी प्रचार के जुलूस में लोगों को लेकर चलने वाले खुले तांगे, बंद तांगे, इक्के के साथ उस दौर की “दिल्ली ट्रांसपोर्ट सर्विस” की ट्रकनुमा बंद बसें भी नजर आती है, जिससे तब की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का पता चलता है।

गौरतलब है कि दिल्ली में पहले लोकसभा चुनाव के तीन निर्वाचन क्षेत्रों-नई दिल्ली, बाहरी दिल्ली और दिल्ली शहर-से चार उम्मीदवार चुने गए थे। इन सभी क्षेत्रों में आठ निर्दलीयों सहित कुल 19 उम्मीदवार खड़े हुए थे, जिसमें कांग्रेस के तीन और किसान मजदूर प्रजा पार्टी का एक उम्मीदवार जीता था। जबकि इस चुनाव में 10 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। india general election 1952

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