नीले नभ में हवा संग अठखेलियां करते पक्षियों का समूह। कहीं किसी तस्वीर में फौव्वारा तो कहीं झूमती डालियां, आसमान में घुमड़ते काले घने बादल। कहीं एक दूसरे का हाथ पकड़ मकबरे की सीढ़ी चढ़ते कपल। किसी स्केच में रस्सी कूदती बच्चियों की खुशी झलक रही है तो कहीं सेल्फी का दौर चल रहा है। कोई डॉगी लेकर घुम रहा है तो कोई मकबरे के बरामदे में फुर्सत से बैठ किताबें पढ़ रहा है। ये सारी बातें किसी भी मकबरे पर भ्रमण के दौरान देखी जा सकती है। लेकिन सोचिए जब यही भाव भंगिमाएं, क्रियाकलाप स्केच के जरिए जब कैनवास पर उतरते हैं तो बरबस ही दिल में उतर जाते हैं। शायद यही कारण है कि इंडिया हैबिटेट में चल रही स्केच प्रदर्शनी लोगों को पसंद आयी। दिल्ली के मकबरे नाम से आयोजित हुई प्रदर्शनी में राजधानी के विभिन्न इलाकों में इंडो इस्लामिक मेल से बने मकबरों की ना केवल स्केच बल्कि उनके बारे में इतिहास जानना लोगों के लिए काफी दिलचस्प अनुभव है। पांच कलाकारों की नजर से दिल्ली के मकबरों एवं उनके इतिहास समेत लोगों की क्रियाकलापों को बड़े ही खूबसूरत ढंग से कैनवास पर उकेरा गया है।

कलाकारों की पारखी नजर

प्रदर्शनी अर्बन स्केचर संस्था द्वारा आयोजित की गई है। जिसमें इसमें पांच कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की गई है। इनमें जिसमें आईआईटी दिल्ली के एल्युमिनाई नीरज गुप्ता, इंजीनियर रितूराज दीक्षित, कलाकार जूही कुमार, इरविन कालेज से एमएससी गीता गुप्ता और मोनाली हल्दीपुर शामिल हैं। दिल्ली अर्बन स्केचर की शुरूआत करने वाले नीरज गुप्ता कहते हैं कि हर कलाकार की अपनी खूबियां है। खुद नीरज, स्केच के साथ कैलीग्राफी करते हैं। कहते हैं, कैलीग्राफी का मकसद लोगों का चित्र के इतिहास आदि के बारे में बताना होता है। जबकि मोनाली हल्दीपुर कहती हैं कि स्केच के जरिए मैं उस दुनिया की खुशी और जोश को कैनवास पर उकेरती हूं जिसमें मैं खुद रहती हूं। पेश से साफ्टवेयर इंजीनियर रितूराज कहते हैं कि उन्होंने कभी कला विषय से संबंधी कोई कोर्स नहीं किया है। यह बचपन का शौक था जो अर्बन स्केचर के साथ परवान चढ़ा। वहीं जूही कहती हैं उनकी बनाई हुई कलाकृतियां अमेरिका समेत कई अन्य देशों में प्रदर्शित हो चुकी है।

कहानी मकबरों की

नीरज गुप्ता कहते हैं कि दिल्ली में कई मकबरे हैं। हम ऐसे मकबरों की कहानी लोगों को सुनाना चाहते थे जो इंडो-इस्लामिक आर्किटेक्चर से बने हैं। ये इंडो इस्लामिक मेल के उदाहरण सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत के अन्य इलाकों में भी मौजूद है। यह मेल हुमायूं के मकबरे में परिलक्षित होता है, जिसने बाद में ताजमहल बनाने की प्रेरणा दी। चारबाग शैली में बने इस मकबरे के चारो ओर खूबसूरत उद्यान बनाए गए है। इसके बाद तो इस शैली व ऐसे उद्यानों का अनेक इमारतों में इस्तेमाल किया गया था। पर ताजमहल के निर्माण के बाद यह शैली खूब प्रचलित हुई थी। तुगलकाबाद स्थित गियासुद्दीन तुगलक मकबरे के ऊपर कलश बना हुआ है। इसी तरह हौजखास स्थित फिरोज शाह मकबरा बुद्धिस्ट स्टाइल में बना हुआ है। लोदी गार्डन स्थित मुहम्मद शाह और सिकंदर लोदी मकबरे के उपर छतरियां, गुलदस्ता बना है।

हर रविवार मिलते हैं

दिल्ली अर्बन स्केचर के सदस्यों का मकसद दिल्ली के विभिन्न मकबरों की लाइव तस्वीर लोगों के सामने रखनी है। समूह के सभी सदस्य पेशेवर है। रविवार को सभी सदस्य एक निश्चित स्थल पर मिलते हैं एवं दिल्ली को अपने अंदाज में जीने की कोशिश करते हैं। विगत एक साल से यह मुलाकात लगातार चल रही थी। विचार विमर्श के बाद निश्चित स्थल को सब अपने कूचों से कैनवास पर उतारते हैं। वाटर कलर, इंक ब्लैक इंडिया, थ्रेडिंग, चारकोल समेत विभिन्न प्रकार के तरीकों से स्केच करते हैं। स्केच पैमाने पर खरा उतरा है नहीं यह जानने के लिए हम स्केचिंग के बाद दोबारा बैठक करते हैं।

स्केच बनाते समय जरूरी सावधानियां

नीरज कहते हैं कि जब कोई आम व्यक्ति मकबरे की तस्वीर खींचता है तो वो आसपास के आब्जेक्ट को नजरअंदाज कर देता है। लेकिन एक कलाकार के लिए ये आब्जेक्ट मायने रखते हैं। स्केच बनाते समय कई सावधानियां बरती जाती है। कुछ आर्टिस्ट आब्सट्रेक्ट बनाते हैं। जबकि कई विस्तृत डिटेल के साथ बनाते हैं। मसलन, यदि दस खिड़कियां है तो सभी बनाने की कोशिश करते हैं। एक कलाकार स्केचिंग के समय योजना बनाता है। मसलन, दूर की चीज है तो स्केच बनाते समय टेढ़ी बनने लगती है। जो आंख के सामने आब्जेक्ट है वो सीधा दिखता है। जो साइड में है वो भी टेढ़ी बनने लगती है। जैसे मेरे सफदरजंग मकबरे के स्केच में कैनाल की लाइने दो तरफ जा रही है। हम स्केल का प्रयोग नहीं करते हैं। आंख से देखकर अंदाजे से बनाते हैं। दूसरी चीज जो ज्यादा ध्यान दी जाती है, वो प्रकाश और छाया है। मतलब, किधर से लाइट आ रही है और किधर शेड बन रहा है। हमें एक स्केच बनाने में तीन घंटे से ज्यादा लगते हैं। इस लंबी अवधि में तो सूर्य की पोजिशन भी चेंज हो जाती है। ऐसी स्थिति में हम एक समय चुन उसके अनुसार ही स्केच बनाते हैं। ये स्केच वाटर कलर से बनाए जाते हैं। कुछ लोग इंक, आयल का भी प्रयोग करते हैं।

कई देशों में लोकप्रिय स्केच कलाकृति

अर्बन स्केचर संस्था भारत समेत दुनिया के विभिन्न शहरों मसलन इजिप्ट, घाना, केन्या, दक्षिण अफ्रीका, ट्यूनिशिया, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, इजराइल, जापान, कोरिया, लेबनान, मलेशिया, फिलीपींस, अमेरिका, लंदन समेत कई अन्य शहरों में है। भारत में दिल्ली के अलावा हैदराबाद, इंदौर, पूणे, मुंबई, ग्वालियर में अर्बन स्केचर के चैप्टर है। जिससे सैकड़ों पेशेवर जुड़े हुए हैं। दिल्ली चैप्टर डेढ़ साल भर पहले शुरू हुआ है।

लोगों को फ्री सिखाते भी हैं

कला मनुष्य को शांति देती है। कुछ इसी तर्ज पर लोगों को फ्री में स्केच भी सिखाया जाता है। संस्था के सदस्यों की मानें तो बकायदा फेसबुक पेज बनाया गया है। इस पेज के जरिए लोगों को रजिस्ट्रेशन के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। भविष्य में इन लोगों को एक निश्चित स्थल पर प्रत्येक रविवार बुलाया जाएगा एवं फ्री में स्केच की बारीकियां बताई जाएंगी। ताकि लोग स्केच बना सके।

इन मकबरों की बनाई गई स्केच

राजवशं-शासक-मकबरा- निर्माण

1-मामुलक-शमशुद्दीन इल्तुतमिश-इल्तुतमिश का मकबरा-1235

2-तुगलक-गयासुद्दीन तुगलक-गयासुद्दीन का मकबरा-1320-25

3-तुगलक-फिरोजशाह तुगलक-फिरोजशाह तुगलक का मकबरा-1352-53

4-सैय्यद-मुहम्मद शाह-मुहम्मद शाह-1445

5-लोदी-इब्राहिम मोदी सेकेंड-सिकंदर लोदी-1517-18

6-मुगल-हुमायूं-इमाम जमीन-1539

7-मुगल-अकबर-1556-05-हुमायूं मकबरा-1565-72

इसके अलावा आधम खान का मकबरा, कुली खान, अफसर वाला मकबरा, सफदरजंग के मकबरे की स्केच भी बनाई गई है।

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