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बरसात के मौसम में बारहमासे गाए जाने का भी रिवाज रहा है-
कहूं किससे दिल का हाल, बीत गया साल
मेरे दिलदार ने कुछ न किया ख्याल
निर्मोही सांवरिया गयो परदेस
न आया न भेजा कोई संदेस
असाढ़
सखी रुत असाढ़ की आई, बहे हवा पुरवाई
होश नहीं तन का बिन पिया, कोई न जाने हाल मन का
घिर आई घटा घनघोर, वन में नाच रहे हैं मोर
दिन पहर, दिन घड़ी इजहार करूँ पी के आवन का
सखी रिमझिम बरसे पानी, पर न आए दिलजानी
निर्मोही सांवरिया चले गए परदेस
ना घर आए ना भेजा संदेस
सावन
सखी लागा सावन मास, मन की बंधी आस
आवे पी पास तो जी बहलाऊँ, ऊँची अटरिया पलंग बिछाऊँ
मन बहलाऊं
आंगना में डालूं झूला, फूल ख़ुशी का फूला
जो आ जाए पिया घर को भूला
निर्मोही सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
भादों
भादों में मेंह का जोर, मोर करे शोर
उमड़े चहुं ओर नदी और नाले
दमदम दामिनी रही दमक जुगनू रहे चमक
पी पी पपीहरा बोले मोरा मन रह रह डोले
निर्मोही सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
क्वॉर
सरदी बरसे क्वॉर लहर रंज हुआ बहुतेरा
देखने जाएं दसहरा सभी नर नारी
मैं देखूं पी की राह खड़ी हुई अटारी
सब सखियाँ करें सिंगार मैं विरहन जोगिनी बनी
निर्मोही सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए ना भेजा संदेस
कार्तिक
कातक में सब करें स्नान बिना जलपान
मैं बैठी मन मारे जैसे चंदा की ओर चकोर निहारे
घर घर दीप जले दिवाली हुई खुशहाली
आज दीवाली नहीं घर प्यारे सखियाँ गायें मंगल अपने द्वारे
सांवरिया बसे परदेस मैं बैठी मन मारे
निर्मोही साँवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा सदेस
अगहन
सखी लगा मेंह अगहन का
पड़े शीत धड़के हिया
घर न आए पिया यह क्या हुआ
नजर न आए पिया की परछाई
पीड़की चौखट बाट आंखें पथराई
अपने रसिया के कारन ले लियो बैराग
निर्मोही सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
पूस
सखी लगा मेंह पूस विरह ने लिया चूस
थरथर कांपे बदन किसे अपने अंग लगाऊं
अपनी विरह की कथा बैठे किसे सुनाऊं
निर्दयी साँवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
माघ
सखी री माह मेघ आया मीत न घर को आए
बागन में आम बौराए कोयलिया मस्त बोल सुनाए
नहीं बलम अब तो घर आए जान उसी में जाए
बिरहन नीर नहाए अपनी विपदा किसे सुनाए
निर्दयी सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
फागुन
सखी री सुहावना सावन मास
संदेसा फगुआ खेलन का लाया
सब सखियां हिलमिल खेलें होली
सांवर मोरी हाथ में ले पिचकारी
मनाते खुशियां जलावें होली
सखियां हमजोली रंगरंग की बोलें
बोली निर्दयी सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
चैत
मोहे चैत चिंता घेरे, पी न घर आए मेरे
खिले वन में टेसू फूल, पिया मोहे गए भूल
घर में पड़ी अकेली, न कोई साथी न सहेली
निर्दयी सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
बैसाख
बीता चैत आया बैसाख बलमवा को मेरी याद न आई
मैं तड़पूं दिन रैन पड़े नहीं चैन
निर्दयी सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
जेठ
लगा जेठ महीना याद सताए हो गया मुश्किल जीना
सपने में भी दरस पिया ने न दीन्हा तड़पत बिताए बारह महीना
निर्दयी सांवरिया चले गए परदेस
न घर आए न भेजा संदेस
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