deepfake Lok Sabha polls
लेखक: डॉ. रमेश ठाकुर, वरिष्ठ स्तंभकार
deepfake Lok Sabha polls ‘डीपफेक’ की उन्मादी करतूतों ने आगामी लोकसभा चुनाव (deepfake Lok Sabha polls) में व्यापक प्रभाव डालने की संभावनाओं ने भारतीय चुनाव आयोग को खासा चिंतित किया हुआ है। वैसे ही चुनाव दर चुनाव उनके माथे पर नित नए आरोप लग रहे हैं। इसके अलावा इलेक्शन के दौरान झूठी खबरों और भ्रामक प्रचार का इतना प्रसार फैल चुका है जिससे निपटना भी आयोग के लिए चुनौती बना हुआ है। आम चुनाव एकदम सिर पर हैं। चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को ध्यान में रखते हुए ऐसी समस्याओं से कैसे निपटा जाए, उन्हें रोका जाए और उनका निवारण-छुटकारा हो? जैसे अति संवेदनशील मसले पर हिंदुस्तान का चुनाव आयोग बेहद गंभीरता से विचार-विमर्श करने के बाद एक नई तरकीब खोजी है। तरीका ये है कि आयोग लोकसभा-2024 चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष संचालन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई तकनीक का उपयोग करेगा। (deepfake Lok Sabha polls) इसके लिए एक अलग से विभाग स्थापित किया है। जो सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भ्रामक और गलत सूचनाओं को चिन्हित कर उन्हें ऑटोमेटिक हटाएगा।
(deepfake Lok Sabha polls) आयोग के टॉप अधिकारियों ने एआई तकनीक विशेषज्ञों से इसके लिए प्रशिक्षण लेकर राज्य के चुनाव आयोग के साथ अपने अनुभव शेयर किए हैं। तसल्ली करके और अच्छे से जांच-परखने के बाद मुख्य चुनाव आयोग ने इस तकनीक को आगामी चुनाव में उपयोग करने का मन बनाया। चुनाव में एआई कैसे काम करेगा, इसके संबंध में बताया जाता है कि ऑथेंटिकेटर ऐप ईसीआई ऑथेंटिकेटर ऐप विभिन्न एल्गोरिथम का उपयोग करके निर्वाध और सुरक्षित टू-वे ऑथेंटिकेशन का प्रबंधन करेगा, जो प्रयोक्ताओं को एसएमएस आधारित ओटीपी या ई-मेल ओटीपी की आवश्यकता के बिना सुरक्षित रूप से लॉग इन करने में मदद करेगा। कहावत है कि ‘लोहा ही लोहे को काटता है’। ठीक उसी तर्ज पर एआई का उपयोगी वर्जन ही एआई के डीपफेक तकनीक से इस बार मुकाबला करेगा। (deepfake Lok Sabha polls) चुनाव में एआई तकनीक चुनावों की निगरानी, एनालिसिस और भ्रामक सामग्रियों को ट्रैक करेगा। नकली-बनावटी वीडियो, झूठी खबरें, फेक चेहरों की पहचान करेगा। समय से पहले ही गलत सूचनाओं को जंगल में आग लगने से पूर्व बुझाता रहेगा। एआई की ये तकनीक जल्द नकली सामग्री का मिलान वास्तविक वस्तु से कर लेगी। गलत होने पर उसे तुरंत डिलीट कर देगी। चुनाव आयोग को अंदेशा है कि प्रधानमंत्री से लेकर प्रमुख मंत्रियों की आवाज इस बार के चुनाव में गलत इस्तेमाल हो सकती है। (deepfake Lok Sabha polls)
(deepfake Lok Sabha polls) डीपफेक जैसी प्रौद्योगिकी के प्रयोग से गलत सूचनाओं के प्रसार को बढ़ावा मिला है। वोटों की गिनती में पारदर्शिता रहे उन पर इन खुराफातों का असर न हो, इसके लिए एआई दोधारी तलवार बनेगी। वरना, स्थित पूर्व जैसी न हो? जैसे, 2019-लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने ईवीएम में वोट की गड़बड़ी का एक बड़ा आरोप लगाया था। जांच हुई तो उनके आरोप सही भी साबित हुए। तब, 8 वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के मिलान में आयोग ने खुद अंतर पाया था, यानी .0004 फीसदी वोटों का मिलान नहीं हो सका। संभावनाएं है, ऐसी हरकतों पर अंकुश लगाने में एआई तकनीक कारगर साबित हो सकती है।
ऐसा करना इसलिए जरूरी हो गया है लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव आयोग को बहुत महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। इस संस्था के कांधों पर ऐसी जिम्मेदारी है, जो हुकुमती नींव रखती है। पर, सोशल मीडिया की भ्रामक खबरों और अनापत्ति हरकतों ने इस संस्था की विश्वसनीयता और उसकी साख पर बट्टा लगा डाला है। सोशल मीडिया का युग है, जहां, बात निकलती है, तो दूर तक जा पहुंचती है। पूर्व में संपन्न हुए तमाम इलेक्शनों में अनगिनत ऐसी अप्रिय घटनाएं घटित हुईं, जिसके बाद वोटरों का शक चुनावी प्रक्रियाओं पर भी गहराया? आयोग के काम करने के तरीकों और ईवीएम मशीनों का प्रयोग अब सवालों के घेरे में है ही?
दरअसल, इन आरापों के पीछे डीपफेक की हरकतें ही ज्यादा थी, जो बाद में पकड़ में आईं? आयोग की निष्पक्षता पर तो विपक्षी दल सवाल उठाते ही थे, अब सत्तारूढ़ दल से मिलीभगत के भी आरोप लगने लगे हैं। हालांकि, ईवीएम मशीन का जहां तक सवाल है, तो आयोग ने खुद आरोप लगाने वाले दलों को ईवीएम हैक करने की खुली चुनौती कई मर्तबा दी। मशीनें पर जांच के लिए सामने प्रस्तुत की, लेकिन तब कोई नहीं पहुंचा? डीपफेक द्वारा फर्जी समाचार व गलत सूचनाओं की समस्या से भारत ही पीड़ित नहीं है, ये एक वैश्विक चुनौती बन गई है।
डीपफेक की गिरफत में नामी हस्तियां ज्यादा फंस रही हैं। खुद प्रधानमंत्री तक इसकी चपेट में आ चुके हैं। बड़े टीवी एंकरों की गलत आवाजें इस वक्त सोशल मीडिया में फैली ही हुई हैं। निश्चित रूप से समस्या विकराल हो गई है। इसलिए आगामी चुनाव साफ-सुथरे निपटे जिसको लेकर मुख्य चुनाव आयोग बेहद गंभीर है।
इलेक्शन में डीपफेक के जरिए हूबहू नेताओं की आवाज निकालकर गलत बातें बुलवाई जाती हैं और उन्हें डीपफेक के ही माध्यम से सोशल मीडिया पर जारी भी किया जाता है। केंद्र सरकार भी इस बात को मानती है कि गलत सूचनाओं को रोकना बड़ी चुनौती है? खासकर चुनावों के समय कुछ ज्यादा ही? इनका तीन व्यापक क्षेत्रों में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हेरफेर अधिक होता है।
अव्वल, मतदाता के पक्ष में, दूसरा उम्मीदवार के पक्ष में, और तीसरा मतगणना प्रक्रिया में। क्योंकि डीपफेक के एआई प्रारूप में किसी की भी आवाज, हूबहू शक्ल-सूरत, स्टाइल का प्रतिरूपण कर लिया जाता है, फिर चुनाव में वो चाहे वह मतदाता हो या उम्मीदवार? इसलिए किसी भी प्रसिद्ध राजनेता व विशिष्ट व्यक्ति का डिजिटल ट्विन या एआई अवतार बनाना और कोई भी गलत बयान देना, या झूठे वादे करना आसान होता है।
लोकसभा-2024 में डीपफेक के जरिए खुराफाती तत्व नेताओं द्वारा झूठे चुनावी वादे और घोषणापत्र में पार्टी के एजेंडे के विपरीत बातों को ज्यादा फैलाने की संभावना है। इसलिए चुनाव आयोग ने अलग विभाग बनाकर एआई के माध्यम से ही इनकी कमर तोड़ने का प्लान बनाया है। इस अपराध के लिए सख्त कानून की जरूरत है क्योंकि मौजूदा भारत दंड संहिता-1860, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 व सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम-2021 से काम नहीं चलेगा। इस क्षेत्र में नापाक हरकतें जिस तेजी से बढ़ी हैं, उसे देखते हुए अलहदा कठोर कानून बनाए जाने की दरकार है। फिलहाल, देखते हैं लोकसभा चुनाव में डीपफेक की करतूतों पर अंकुश लगाने में चुनाव आयोग की ‘एआई’ तकनीक कितनी कारगर साबित होती है।(deepfake Lok Sabha polls)
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