(पठान काल : 1193-1526 ई) में बनी इमारतें

मुसलमानों का शासनकाल 1193 ई. से प्रारंभ होता है। मोहम्मद गोरी पहला मुस्लिम बादशाह था। मगर सल्तनत का आरंभ हुआ- कुतुबुद्दीन ऐबक से, जिसने गुलाम खानदान की बुनियाद डाली और किला रायपिथौरा को राजधानी बनाया। पहले नौ गुलाम बादशाह पृथ्वीराज की दिल्ली में ही हुकूमत करते रहे। रायपिथौरा का किला इनकी राजधानी थी, जिसमें इन्होंने एक मस्जिद और अन्य बड़ी-बड़ी आलीशान इमारतें बनाई। लेकिन दसवें बादशाह कैकबाद ने, जो बलबन का पोता था, किलोखड़ी में 1286 ई. में एक महल बनाया और वहां शहर बसाया, जो नया शहर कहलाया। यह मुसलमानों की दूसरी दिल्ली थी। राजधानी को वह किलोखड़ी में ले गया। जलालुद्दीन खिलजी ने यहां के किले को मजबूत किया और उसमें सुधार किया।

जलालुद्दीन खिलजी ने पृथ्वीराज के किले को ही राजधानी रखा, मगर अलाउद्दीन ने कुछ अर्से किला रायपिथौरा में रहकर 1303 ई. में सीरी को राजधानी बना लिया। यह मुसलमानों की तीसरी दिल्ली थी। 1321 ई. में खुसरो खां ने कुतुबुद्दीन मुबारक शाह का कत्ल कर डाला। और वह गद्दी पर बैठ गया लेकिन खुद गयासुद्दीन तुगलक शाह द्वारा मारा गया, जो राजधानी को सीरी से हटाकर 1321-23 ई. में तुगलकाबाद ले गया। यह मुसलमानों की चौथी दिल्ली थी। गयासुद्दीन के लड़के मोहम्मद आदिल शाह ने तुगलकाबाद के नजदीक ही आदिलाबाद बसाया और चंद वर्ष बाद उसने दिल्ली रायपिथौरा और सीरी के चारों ओर एक दीवार 1327 ई. में बनवाई और नए शहर का नाम जहांपनाह रखा।

यह मुसलमानों की पांचवीं दिल्ली थी। मोहम्मद शाह के भतीजे फीरोज शाह तुगलक ने, जो उसके बाद गद्दी पर बैठा, अपने पुरखों की राजधानियों को छोड़कर 1354 ई. में एक नया नगर फीरोजाबाद नाम से आबाद किया, जो मुसलमानों की छठी दिल्ली थी। तैमूर के हमले ने इस नए शहर को बरबाद कर दिया और शक्तिहीन सैयदों ने, जो लड़ाकू पठानों के उत्तराधिकारी बने थे, और कुछ तो नहीं, पर अपने नाम से शहर बसाने का प्रयत्न जरूर किया। सैयद खानदान के पहले बादशाह खिजर खां ने खिजराबाद 1418 ई. में बसाना चाहा और उसके जानशीन मुबारक शाह ने 1432 ई. में मुबारकाबाद आबाद किया, जो मुसलमानों की सातवीं और आठवीं दिल्ली थी।

लोदियों ने, जो सैयदों के पीछे आए, दिल्ली में अपने राज्यकाल की कोई खास यादगार नहीं छोड़ी। बहलोल लोदी, जिसने इस खानदान को चलाया, कुछ समय सीरी में रहा। जब बाबर ने लोदियों को पानीपत में पराजित करके दिल्ली को फतह कर लिया तो उसने दिल्ली को अपने सूबेदार के अधीन छोड़कर आगरा को ही राजधानी बनाया। बाबर का लड़का हुमायूं पठानों द्वारा शेरशाह सूरी से पराजित होकर हिंदुस्तान छोड़ गया और 14 वर्ष बेघरबार घूमता रहा। हिंदुस्तान से निकाले जाने के पूर्व हुमायूं ने पुराने किले के पास 1533 ई. में दीनपनाह नाम की दिल्ली बसानी शुरू की थी, जो मुसलमानों की नौवीं दिल्ली थी। जब शेरशाह दिल्ली पर काबिज हुआ तो उसने भी अपने पूर्वजों का अनुकरण करके 1540 ई. में एक नया शहर ‘शेरगढ़’ या दिल्ली शेरशाह बसानी शुरू की, जो मुसलमानों की दसवीं दिल्ली थी। 1546 ई. में उसके लड़के सलीमशाह सूरी ने यमुना नदी के द्वीप पर एक नया किला सलीमगढ़ बनाया। यह मुसलमानों की ग्यारहवीं दिल्ली थी।

1555 ई. में हुमायूं ने पठानों को पराजित करके दिल्ली को फिर से अधिकृत किया। पठानों पर विजय प्राप्ति के छह मास पश्चात हुमायूँ दीनपनाह में गिरकर मर गया और उसका लड़का अकबर प्रथम गद्दी पर बैठा, जो आगरा को राजधानी बनाकर वहीं रहने लगा और वहीं मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसके पश्चात उसका लड़का जहांगीर भी आगरा में ही रहता रहा और मृत्यु के पश्चात् जब शाहजहां गद्दी पर बैठा तो उसने दस वर्ष आगरा में शासन करके 1678 ई. में राजधानी को फिर से दिल्ली में तब्दील कर दिया। 1678 से 1803 ई. तक दिल्ली में मुगलों की राजधानी रही। 11 सितंबर 1803 को दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। उसके बाद 1857 ई. के गदर तक यद्यपि मुगल बादशाह दिल्ली में रहा, मगर उसका शासन केवल लाल किले तक ही सीमित था और वह भी अंग्रेजों की अधीनता में। 1857 ई. में उसकी भी समाप्ति हो गई, साथ ही भारतवर्ष से मुस्लिम शासन की भी। शाहजहां ने अपनी बसाई दिल्ली का नाम शाहजहांबाद रखा। यह मुसलमानों की बारहवीं और अंतिम दिल्ली थी।

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