रोहिंग्या के खिलाफ यूपी की तरह बाकि राज्यों को भी करनी चाहिए कार्रवाई

आतंरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहे रोहिंग्या घुसपैठी

संजीव कुमार मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार  

भारत लंबे समय से अवैध घुसपैठ की समस्या से जूझ रहा है। पाकिस्तान से कटकर जब बांग्लादेश अलग हुआ, उस समय बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत आकर बस गए। पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटना इंदिरा गांधी सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि जरूर थी लेकिन घुसपैठ की समस्या को अपेक्षाकृत कमतर आंका गया।

एक अनुमान के मुताबिक बांग्लादेश मुक्ति के लिए हुए युद्ध की शुरुआत के समय ही करीब एक करोड़ बांग्लादेशी भारत आ गए थे। यूनाइटेड नेशंस हाई कमीशन फार रिफ्यूजीज की तत्कालीन रिपोर्ट इस पर और अधिक विस्तार से प्रकाश डालती है। रिपोर्ट के मुताबिक 1971 युद्ध के समय प्रतिदिन करीब एक लाख बांग्लादेशी भारत आ रहे थे।

भारत सरकार के समक्ष बहुत ही असहज स्थिति उत्पन्न हो गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इस गंभीर खतरे को भांप चुकी थी, शायद तभी संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के भारी दबाव के बावजूद उन्हें यह कहना पडा था कि किसी भी स्थिति में इन्हें भारत में स्थान नहीं दिया जा सकता। वर्ष 1971 में एक साक्षात्कार में इंदिरा गांधी ने माना भी था कि भारी संख्या में शरणार्थी आने की वजह से भारत में बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।

समय के साथ अस्थाई बस्तियों में रहने वाले बांग्लादेशी कब भारतीय नागरिक बन गए, यह पता भी नहीं चला। यह बात असम में एनआरसी बनाते समय बखूबी समझ में आई। विगत दशकों में हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते ही चले गए।

बांग्लादेशी घुसपैठियों से जूझ रहे भारत की मुश्किलें अब रोहिंग्या ने बढा दी है। कारण, तमाम कोशिशों के बावजूद रोहिंग्या घुसपैठियों की संख्या में हो रही लगातार वृद्धि है। फिलहाल इनकी संख्या कितनी है, इसका सटीक अंदाजा लगाना मुश्किल है।

2017 में केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में 40 हजार अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान में रहते हैं। हालांकि यूएनएचआरसी ने अपनी रिपोर्ट में 2021 दिसंबर तक देश के अलग अलग हिस्सों में करीब 18 हजार रोहिंग्या मुसलमानों के रहने की बात कही।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2019 में नागरिकता संशोधन बिल पर चर्चा के दौरान रोहिंग्या घुसपैठियों का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि भारत रोहिंग्या को नागरिक के रूप में स्वीकार नहीं करेगा। इसके पीछे महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि रोहिंग्या आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। रोहिंग्या अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधनों पर तो बोझ हैं ही ड्रग्स, मानव तस्करी समेत आतंकवादी घटनाओं में इनकी संलिप्तता ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है।

रोहिंग्या ने भारत के अलावा बड़ी तादाद में बांग्लादेश में घुसपैठ की। आज बांग्लादेश रोहिंग्या घुसपैठियों की वजह से बदहाली के भंवर में फंसता जा रहा है। खुद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने माना कि म्यांमार से भागकर भारत और बांग्लादेश आए रोहिंग्या मुसलमानों ने देश के सामाजिक तानेबाने और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है। पिछले साल सितंबर महीने में संयुक्त राष्ट्र से प्रभावी भूमिका निभाने का अनुरोध करते हुए शेख हसीना ने कहा था कि रोहिंग्या की लंबे समय तक बांग्लादेश में मौजूदगी ने अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, सुरक्षा और सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाला है। रोहिंग्या की वजह से देश में व्यापक निराशा है।

ड्रग्स, मानव तस्करी समेत संगठित अपराध बढ़ गए हैं। भारत में भी स्थितियां कमोबेश ऐसी ही है। म्यांमार की सीमा पर जवानों से बचते हुए घने जंगलों से होकर रोहिंग्या उत्तर-पूर्वी राज्यों सिक्किम और मिजोरम से भारत के अंदरूनी हिस्सों का रुख कर चुके हैं और कर रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए काफी सख्ती बरती जा रही है, अलग-अलग जगहों पर गिरफ्तारियां भी होती रहती हैं। फिर भी सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले रोहिंग्या उत्तर-पूर्व से बंगाल, असम, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश होते हुए नेपाल सीमा तक पहुंच रहे हैं। यही नहीं, बंगाल से ट्रेन के माध्यम से देश की राजधानी दिल्ली और फिर वहां से पाकिस्तान की सीमा से सटे संवेदनशील जम्मू-कश्मीर तक डेरा डाल चुके हैं। जम्मू कश्मीर में पुंछ, डोडा, अनंतनाग, सांबा और जम्मू में काफी संख्या में रहने लगे। इन राज्यों में रोहिंग्या की कारस्तानियों ने सुरक्षा एजेंसियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं।

भारत सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दायर कर चुकी है कि रोहिंग्या देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। ऐसे कई मामले सामने भी आ चुके हैं। 2012 में मुंबई में प्रदर्शन के दौरान हिंसा, 2013 में बोधगया में विस्फोट के लिए सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर रोहिंग्या आए।

जम्मू कश्मीर में पुलिस गोलीबारी में मारे गए दो विदेशी आतंकियों में से एक के म्यांमार का मूल निवासी होने के बाद सुरक्षा बलों ने रोहिंग्याओं को सुरक्षा के लिए खतरा मानना शुरू किया था। रोहिंग्या घुसपैठियों के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर हाल ही में एटीएस ने मथुरा, अलीगढ़, हापुड़, गाजियाबाद में छापेमारी की। कुल 74 रोहिंग्या घुसपैठियों को गिरफ्तार किया गया।

अन्य राज्यों को यूपी से प्रेरित होकर सुरक्षा के लिए खतरा बने रोहिंग्या के खिलाफ लगातार कार्रवाई करने की जरूरत है। पुलिस और खुफिया एजेंसियों को संयुक्त रूप से कार्रवाई करनी होगी। क्योंकि गाजियाबाद में पकडे गए रोहिंग्या से कई सनसनीखेज खुलासे हुए हैं। कईयों के पास से पहचान पत्र, राशन कार्ड बरामद हुए है।

कई घुसपैठी तो 10-15 सालों से रह रहे थे। ऐसे में यह जांच का विषय है कि आखिर कैसे इन घुसपैठियों का पहचान पत्र, राशन कार्ड बन गया। फर्जी दस्तावेज बनवाने में मदद करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। रोहिंग्या घुसपैठियों से निपटने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में बाकायदा एक सेल का गठन किया गया।

बड़ी संख्या में घुसपैठिए पकड़े भी गए थे लेकिन इन दिनों यह सेल बहुत सक्रिय नहीं है। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि ये घुसपैठिए येन केन प्रकार से फर्जी दस्तावेज बनवा लेते हैं, जिस कारण उनकी पहचान मुश्किल हो जाती है। इसलिए अब इन घुसपैठियों के खिलाफ गंभीरता से कार्रवाई करने का समय आ गया है। क्योंकि कुल वैश्विक क्षेत्रफल के मात्र 2.4 प्रतिशत एवं जल संसाधनों के मात्र 4 प्रतिशत भाग के बूते अपनी लगभग 140 करोड आबादी का वहन कर रहा देश घुसपैठियों का बोझ किसी भी सूरत में उठाना नहीं चाहेगा।

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