1857 की क्रांति: जनरल विल्सन और उसका हेडक्वार्टर सेंट जेम्स चर्च को छोड़कर किले के दीवाने-खास में रहने आ गए। जहां उनके सामने हैम और अंडों का डिनर पेश किया गया। जनरल ने मलिका विक्टोरिया के नाम पर जाम पेश किया और चीयर्स में कहा कि मलिका सलामत के नाम, खुदा उन पर अपनी रहमत करे’। उसके बाद उनके एक अफसर ने लाहौर तार भेजा, जिसमें लिखा था ‘हमारी यहां की जद्दोजहद खत्म हो गई है। बंगाल फौज की विशाल बगावत को कुचल दिया गया है, और क्लाइव और लेक के दिन लौट आए।
निकल्सन को भी यह खबर भेजी गई जो रिज पर एक खेमे में मौत और जिंदगी की कशमकश में पड़ा था और उसका पठान नौकर और बॉडीगार्ड उसकी सेवा में लगा था। जब नेविल चैंबरलेन उससे मिलने और यह खबर सुनाने पहुंचा, तो उसने देखा कि वह ‘एक बच्चे की तरह बेबस था। वह बमुश्किल सांस ले पा रहा था और उसके मुंह से शब्द भी बड़ी मुश्किल से निकल रहे थे’, लेकिन अभी भी वह इतना ठीक था कि उसने अपनी पिस्तौल से एक गोली खेमे से बाहर चला दी ताकि उसके वह घुड़सवार सिपाही खामोश हो जाएं जो उसकी निगरानी के लिए बाहर जमा थे।
जब उसे बताया गया कि दिल्ली अब अंग्रेजों के कब्जे में है तो उसने कहा, “मेरी सबसे बड़ी ख्वाहिश यही थी कि दिल्ली मेरे मरने से पहले फतह हो जाए और अब यह पूरी हो गई है। तीन दिन बाद वह मर गया और उसे एक संगमरमर की चौकी के नीचे दफन कर दिया गया, जो इसी मकसद से जफर के प्रिय महताब बाग से उखाड़ी गई थी।
जब किले पर हमला हो रहा था और मलिका विक्टोरिया की सेहत का जाम पिया जा रहा था, तो शहर में बदतरीन कत्ले-आम जारी था। अंग्रेजों के लिए तो जद्दोजहद खत्म हो गई थी, लेकिन दिल्ली के बाशिंदों के लिए सबसे ज़्यादा मुसीबतें अब शुरू हो रही थीं। सुबह को अंग्रेजों ने शहर की दीवारों को छान मारा था और अजमेरी दरवाजे, लाहौरी दरवाजे और गार्सिंटन बुर्ज पर कब्जा कर लिया था।
होडसन और उसके अनियमित घुड़सवार दीवारों से लेकर अजमेरी और दिल्ली दरवाज़ों के बाहर बागी सिपाहियों के विशाल कैंपों तक चक्कर लगा रहे थे और इस तरह उन्होंने पूरे शहर को घेर लिया था। सब कैंप खाली थे सिवाय ‘कुछ जख्मी या बीमार सिपाहियों के जो चल नहीं सकते थे’, जिन्हें फौरन मार डाला गया। उनकी लाशें कैंप के मल्बे पर फेंक दी गई, जहां हथियार, कपड़े, लूट का सामान और वह ‘ढोल, बाजे, बिस्तर, बर्तन, और उनके ऐशो-आराम की वह सारी चीजें पड़ी थीं, जो वह फरार होते वक्त छोड़ गए थे।
उसके बाद आदेश दिया गया कि दिल्ली दरवाजे के आसपास की सारी जगह ‘साफ’ कर दी जाए। एडवर्ड वाइबर्ट उन लोगों में से एक था, जिन्होंने इस कल्ले-आम में हिस्सा लिया। उसने अपने अंकल गॉर्डन को एक ख़त लिखा, जिसमें वह लगातार खून भरी डींगों और अपने किए हुए जुल्मों के अहसास के बीच झूल रहा था। उसने लिखाः
मैंने पिछले चंद दिनों में बहुत से खूनी और भयानक दृश्य देखे हैं लेकिन जैसा मैंने कल देखा, मैं दुआ करता हूं कि खुदा मुझे फिर कभी न दिखाए। रेजिमेंट को आदेश मिला था कि दिल्ली और तुर्कमान दरवाज़ों-वह दो दरवाजे जिन पर हमें कब्ज़ा बनाए रखना था-के दर्मियान सब घर खाली करवा दिए जाएं और हर इंसान को गोली मार दी जाए। मैंने कोई 30 या 40 बेबस लोगों को अपने सामने गोलियां खाकर मरते देखा। यह खुलेआम कत्ल था और मैं बुरी तरह आतंकित हो गया। औरतों को छोड़ दिया गया लेकिन अपने बेटों और शौहरों को मरते देखकर उनकी चीख-पुकार बड़ी भयानक थी।
“आप कल्पना कर सकते हैं कि शहर का हुलिया इस वक्त कितना भयानक होगा. चारों तरफ लाशों के ढेर लगे हैं और हर मकान में घुसकर उसे लूट लिया गया है-लेकिन अब शहर के आम लोग गुस्से में पागल हमारी फौज का निशाना बन रहे हैं।
“आप सोच सकते होंगे कि किन भावनाओं के साथ मैं कल अपनी सब पुरानी जगहों पर गया। मैं उन सब मुकामों पर घूमा, जो मुझे याद थे और अपने दिमाग में कल्पना करता रहा कि जैसे कुछ नहीं हुआ है, लेकिन जब मैंने चारों तरफ नज़र डाली, तो यह भ्रम गायब हो गया क्योंकि चारों तरफ तोपों और बंदूकों के निशान दिख रहे थे और उस लड़ाई का पता दे रहे थे, जो कुछ ही दिन पहले यहां ज़ोर-शोर से हो रही थी। थोड़ी दूर पर कुछ लाशें पड़ी सड़ रही थीं या कोई बूढ़ी औरत भूखी मर रही थी, और मैं यह सोचता रह गया कि किस तरह हम लड़ाई और खूनखराबे से खुश हो सकते हैं। चंद गज आगे हमारे कुछ पिये हुए सिपाही लड़खड़ाते हुए चलते मिले जिन्हें देखकर दया भी आती थी और घिन भी होती थी। जहां भी मैं गया मुझे कोई न कोई बेचारा ऐसा बदनसीब दिखाई दे ही जाता, जिसको सिपाही उसकी छिपने की जगह से बाहर घसीटकर लाते और बर्बरतापूर्वक मार डालते।
“ईश्वर जानता है मेरे दिल में दया नहीं है-लेकिन जब किसी सफेद दाढ़ी वाले शख्स पर आपकी आंखों के सामने गोली चलाई जाए, तो शायद कोई बहुत ही पत्थरदिल इंसान होगा, जो ऐसे दृश्य को देखकर बेहिस रहे। लेकिन यह तो होना ही था क्योंकि हमारे हमवनों का कत्ल करने की भरपाई इन काले बदमाशों को अपने खून से करनी ही होगी। मेरे अपने पिता और मां, बहन और भाई सब इंतकाम की पुकार करते हैं। और उनका बेटा जरूर इंतकाम लेगा। वह जरूर इस लड़ाई में हिस्सा लेगा और इस खूनखराबे से दूर नहीं रहेगा, क्यों उसको खुदा ने हिम्मत और ताकत दी है कि वह बदला ले सके।