मिर्जा गालिब ने बताया, दिल्ली की किन इमारतों को गिरा दिया गया
1857 की क्रांति: दिल्ली में 1857 की क्रांति दबाने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने शहर में जमकर तोड़फोड़ की। कई इमारतें भी गिराई गईं। मिर्जा गालिब के खतों में भी दिल्ली की कुछ बेहतरीन इमारतों के गिराए जाने का जिक्र है। मौलवी मुहम्मद बाकर का बनवाया हुआ इमामबाड़ा, दरीवे का बड़ा दरवाजा और बुलाकी बेगम का मुहल्ला।
दिल्ली के चार बहुत अजीमुश्शान महल भी बिल्कुल गिरा दिए गए। हाल ही में फांसी पर लटका दिए गए झज्जर, बहादुरगढ़ और फर्रुखनगर के नवाबों और बल्लबगढ़ के राजा की हवेलियां। शाहजहां की बेटी जहांआरा की कारवांसराय भी तोड़ डाली गई और उसकी जगह नया टाउन हाल बनवा दिया गया।
शालीमार बाग को जहां औरंगजेब की ताजपोशी हुई थी खेती के इस्तेमाल के लिए बेच दिया गया। अगर कहीं कोई पुरानी मुगल इमारत छोड़ भी दी गई, तो उसका नाम बदल दिया गया। मसलन बेगम बाग को क्वीन्स गार्डन कर दिया गया। अफ़सोस की बात यह है कि लाल किले की मुकम्मल बर्बादी रोकने में लॉरेंस को देर हो गई।
उसने जामा मस्जिद और किले की दीवारों को यह दलील देकर तोड़े जाने से बचा लिया कि वह अंग्रेजों के भी उतनी काम आएंगी जितनी मुगलों के, लेकिन बाकी 80 प्रतिशत किले को ढहा दिया गया। हैरियट टाइटलर, जो उस समय दीवाने-आम के पास रह रही थी, इस फैसले को सुनकर बहुत नाखुश हुई और उसने फैसला किया कि वह शहर की एक पेंटिंग बनाएगी, इससे पहले कि वह सारा गायब हो जाए।