सिपाहियों के कमांडर बख्त खां पर ही लगा दिए गए संगीन आरोप?
1857 की क्रांति: नीमच ब्रिगेड के अफसर जो क्रांतिकारियों की फौज में सबसे आखिर में एक बड़ी तादाद में शामिल हुए थे, बख़्त खां का आदेश मानने को तैयार नहीं थे। उनको यह ऐतराज दिल्ली और मेरठ के सूबेदारों से भी ज़्यादा था। 23 अगस्त को उन्होंने उस पर यह बिल्कुल गलत इल्जाम तक लगा दिया कि वह अंग्रेजों से मिल गया है और कि ‘उसने ताकि अंग्रेजों को इंग्लैंड से मदद पहुंच जाने तक के लिए अपने सिपाहियों को रोक रखा है।”
इन अफवाहों को फैलाने में बड़ा दखल अंग्रेजों के जासूस और एजेंट हरियाणा रेजिमेंट के गौरी शंकर का भी था, जिसने एक गवाह पेश किया, जिसने झूठी गवाही दी कि उसने बख्त खां को रिज पर अंग्रेजों को खत भेजते देखा था।
बख्त खां ने अपनी वफादारी की कसमें खाईं, लेकिन जफर ने सबके सामने उसकी किले में दाखिले पर पाबंदी करने की बात की। इसपर नीमच ब्रिगेड के अफसरों ने भी बरेली के सिपाहियों से जबरदस्ती हथियार छीन लेने की योजना बनाई।
अपना नाम साफ करने और अपना रुत्बा फिर से कायम करने के लिए बख्त खां ने अंग्रेजों को हराने का एक नया निराला और हौसलामंद प्लान बनाया। उसका इरादा था कि अजमेरी दरवाजे से सिपाहियों का एक बड़ा दस्ता भेजा जाए, जो ऐसा लगे कि वह पश्चिम की तरफ जा रहे हैं लेकिन बजाय जयपुर की तरफ जाने के फौज नजफगढ़ के पास यमुना की नहर का पुल पार करके वापस आकर अंग्रेजों पर पीछे से हमला करेगा। यह वह प्लान था, जो क्रांतिकारियों को दो महीने पहले ही सोचना चाहिए था जब अंग्रेज कमजोर थे। इस वक़्त जफर बड़ी खुशी से किसी भी ऐसी योजना को मानने को तैयार थे, जो क्रांतिकारियों को उनके शहर से हटा दे। उन्होंने कहा कि ‘जाओ, खुदा तुम्हारी हिफाजत करे! अंग्रेजों पर हमला करके अपनी वफादारी साबित करो, उनको तबाह करो और कामयाब वापस आओ।’
इसलिए एक तेज बारिश के दिन 24 अगस्त को बख्त खां अब तक के एक ही हमले के लिए सबसे बड़ी जमा हुई फौज के साथ शहर से बाहर निकला-नौ हजार सिपाहियों और तेरह तोपों के साथ। वह गीली सड़कों पर मार्च करते हुए नजफगढ़ के गांव की तरफ रवाना हुए ताकि उसके दक्षिण वाले यमुना के पुल को पार कर लें।
जब सिपाही पालम के उत्तर में यमुना की नहर पर पहुंचे, तो बारिश और तेज हो गई। वहां उन्होंने देखा कि जनरल विल्सन के आदेश से पुल तोड़ दिया गया था ताकि बागी सिपाही इस तरह पीछे से नदी नहीं पार कर सकें। बख्त खां इसके लिए तैयार आया था। उसने फौरन ही पुल की मरम्मत शुरू करा दी लेकिन यह काम बहुत बुरी तरह किया गया और जैसे ही सिपाही उस पर से गुजरने लगे, वह टूट गया। उसको फिर से बनाने में चौबीस घंटे लग गए। और इस अर्से में पूरी फौज ‘एक पूरे दिन और एक रात खराब मौसम में रही और सब पूरी तरह से भीग गए। और अब तक ‘सारे बागी सिपाही तीन दिन से तकरीबन पूरी तरह भूखे थे’। 25 अगस्त को इस भूखी और बदहाल फौज ने फिर से बढ़ना शुरू किया। वह नजफगढ़ के दलदल के किनारे एक-एक करके चल रहे थे।
सईद मुबारक शाह ने लिखा है कि यह काफी मुश्किल काम था। ‘दलदल, या झील, तक पहुंचने तक सिपाही बिल्कुल थक गए थे और जब वह इस झील पर पहुंचे, तब भी उनको आराम करने या ताजादम होने का वक्त नहीं मिला। तोप की गाड़ियों के पहिये बार-बार दलदल में फंस जाते और उनको निकालने में और भी देर लग जाती थी। सब सिपाही घुटनों तक भरे पानी में चल रहे थे।
जब इस फौज का दिल्ली से मार्च शुरू हुआ था, तो बख्त खां का बरेली दस्ता आगे था, लेकिन पुल पर रुकने के बाद नीमच दस्ते के सरदार, जनरल सुधारी सिंह और ब्रिगेड मेजर हीरा सिंह, जो नजफ खान के दुश्मन और विरोधी थे वह आगे थे। उनके बाद नासिराबाद रेजिमेंट की एक छोटी टोली थी। दो दिन पहले ही नीमच के जनरलों ने बख्त खां की काट करके उसको हटाना चाहा था। यह इस मोर्चे की कामयाबी के लिए अच्छा नहीं था।