1857 की क्रांति: बहादुर शाह जफर ने कमांडर इन चीफ पद से बख्त खां को हटा दिया। मिर्जा मुगल को कमान सौंप दी गई। बख्त खां के फौजी प्रशासन के खात्मे से अंग्रेजों को राहत मिल गई। रिचर्ड बार्टर का कहना है:
“दिल्ली के बादशाह ने क्रांतिकारियों के लीडरों पर व्यंग्य किया कि उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिल रही है। इसकी वजह से वह सब एक-दूसरे पर इल्जाम लगाने लगे और कुछ सिपाहीयों ने बख्त खां के कायम किए हुए फौजी प्रशासन को भी मानने से इंकार कर दिया। इसलिए जब हमारी बुरी हालत थी और हम खड़े भी नहीं हो सकते थे तो, जैसे खुदा की कुदरत से हमले बंद हो गए। और इससे हमारी फौज को वह सुकून मिल गया जिसकी उसको सख्त जरूरत थी।
बख़्त खां का पतन उसके कट्टर वहाबी नजरियों की वजह से और भी तेजी से हुआ। यह कहा जाने लगा कि वह ऊंची जात के हिंदुओं की जरूरतें पूरी नहीं करता जिसकी वजह से उन्होंने बादशाह से दर्खास्त की कि उनको मिर्जा मुगल की कमान में दे दिया जाए।”
कुछ दिन बाद उसने बादशाह की मर्जी के खिलाफ शहर के सारे उलमा को जमा किया और उनको जबरन मजबूर किया कि वह जिहाद का फतवा लगाएं। बहुत से मौलवियों ने जिनमें ग़ालिब के दोस्त मुफ्ती सद्रुद्दीन आजुर्दा भी शामिल थे, बाद में कहा कि उनको अपनी मर्जी के खिलाफ दस्तखत करने पर मजबूर किया गया था और उनसे कहा गया था कि अगर वह इंकार करेंगे तो ‘उनके खानदानों को बर्बाद कर दिया जाएगा’।
जुलाई के आखिर में इस फतवे की शह मिलते ही क्रांतिकारियों ने हिंदू-मुसलमानों की मिली-जुली संस्कृति को सख्त धक्का पहुंचाया।