मोर सराय (1816-62 ) :

सुभाष मार्ग से बाएं हाथ को जो रास्ता रेलवे स्टेशन को गया है, उस पर जहां अब बाएं हाथ रेलवे के मकान बने हुए हैं, वहां 1861-62 में हैमिल्टन डिप्टी कमिश्नर ने एक लाख रुपये के खर्चे से एक सराय बनवाई थी। बाद में इंजीनियर मोर साहब ने इसकी बुर्जियों पर मोर लगवा दिया। तब से यह मोर की सराय कहलाने लगी। सन् 1907 में इसे पौने दो लाख में ईस्ट इंडिया रेलवे के हाथ बेच दिया गया और कालांतर में यहां रेलवे क्वार्टर बना दिए गए।

घंटाघर (1868 ई.) :

इसे चांदनी चौक में, मलका के युत के सामने, सड़क के ऐन बीच में लॉर्ड नार्थबुक के जमाने में 22,134 रुपये की लागत से बनाया गया था। कुछ वर्ष हुए इसके ऊपरी भाग में से पत्थर टूटकर नीचे गिरा, जिससे कई आदमी जख्मी हुए, और कुछ मर भी गए। इसलिए उसे खतरनाक करार देकर गिरा दिया गया और उसकी जगह एक चबूतरा बना दिया गया। बादशाही काल में वहां नहर का हौज हुआ करता था।

घंटाघर की इमारत खूबसूरत मुरब्बा मीनार की शक्ल की थी, जिसके नीचे चारों ओर डाट लगी हुई थी, और मीनार के चारों ओर घंटे लगे हुए थे।

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