माधोदास की बगीची का बहुत दिलचस्प है इतिहास

लाल किले के सामने से एक पैदल का रास्ता उत्तर की तरफ यमुना को चला गया है। पहले यह गाड़ी का रास्ता था। पुराने जमाने में यमुना स्नान के लिए शहर से लोग इसी रास्ते से आया करते थे। शहर के मुर्दे भी इधर ही से जाया करते हैं।

यह रास्ता उस नहर के नीचे से होकर गया है, जो किले में जाती थी। वहां सड़क पर दरवाजा बना हुआ है। इस ओर दाएं-बाएं कई मंदिर, बगीचियां और धर्मशालाएं थीं। इनमें माधोदास की बगीची खासकर बहुत प्राचीन है। यह मंदिर कोई दो सौ बरस पुराना कहा जाता है।

इस मंदिर में चरण हैं। कहा जाता है कि अकबर शाह सानी एक बार माधोदास के पास आया और देखा कि बहुत-सी चक्कियां स्वयं चल रही हैं। बादशाह को यह करामात देखकर बहुत आश्चर्य हुआ और उसने महात्मा जी को कुछ देना चाहा, मगर उन्होंने स्वीकार नहीं किया।

मंदिर में बगीची तो नहीं है, मगर कई मंदिर बने हुए हैं। कई सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में दाखिल होते हैं, जिसकी चारदीवारी है और एक दरवाजा पुश्त की तरफ है। सहन में कई मंदिर हैं। एक राम जी का मंदिर है, जिसमें लक्ष्मण और सीता जी की मूर्तियां भी हैं।

राम जी की मूर्ति काले पत्थर की और दूसरी दो संगमरमर की हैं। राम जी के मंदिर के सामने रामेश्वर महादेव का मंदिर है, जिसमें पार्वती और नंदी की मूर्तियों के अलावा शिवलिंग की पिंडी भी है। महंत माधोदास की गद्दी है, जिसमें बलराम और रेवती की मूर्तियां हैं। बलराम की मूर्ति बहुत सुंदर बनी हुई है। चौथा मंदिर यमुना का है, फिर सत्यनारायण और गंगा का मंदिर है।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here