अंग्रेजों को दिल्ली कॉलेज में खुफिया तरीके से चलानी पडी धार्मिक कक्षाएं
ब्रितानिया हुकूमत में धार्मिक प्रचार में लगे जेनिंग्स के दिमाग में यह ख्याल जड़ पकड़ चुका था कि वह उस नई झाडू की तरह से है जो इस तरह के नैतिक रूप से भ्रष्ट बर्ताव को साफ करने के लिए भेजी गई है। कुछ ही समय में उसके दो और साथी भी जुड़ गए जिनमें से एक उर्दू और फारसी और दूसरा संस्कृत जबान का माहिर था ताकि वह मुसलमानों और हिंदुओं दोनों को निशाना बना सकें, और जल्द ही उन सबने मिलकर धर्मनिरपेक्ष दिल्ली कॉलेज में खुफिया तौर पर बाइबिल की क्लासें शुरू कर दीं, जिससे दिल्ली के अमीरों और उलमा के सारे अंदेशे और डर सही साबित हुए।
कुछ महीनों के लिए धर्मांतरण में एक उल्लेखनीय रुकावट देखने को आई और जेनिंग्स की कोशिशों का विरोध बढ़ता गया। लेकिन जुलाई 1852 में, जवांबख्त की शादी के चार महीने बाद, जेनिंग्स को एकदम एक बड़ी कामयाबी हासिल हो गई। दिल्ली के दो सम्माननीय हिंदू डॉ. चमनलाल जो जफर के डाक्टरों में से एक थे और उनके दोस्त मास्टर रामचंद्र ने जो दिल्ली कॉलेज गणित के योग्य लेक्चरर थे, ऐलान किया कि वह ईसाई धर्म कुबूल करना चाहते हैं।
जाहिर है जेनिंग्स को बहुत खुशी हुई और उसने 11 जुलाई को सेंट जेम्स चर्च में एक बहुत बड़ी सभा करके उनको ईसाई धर्म में शामिल कर लिया। उसके फौरन बाद उसने अपनी सोसाइटी को एक रिपोर्ट भेजी, जिसमें वह खुशी से फूला नहीं समा रहा थाः
मिशनरी कार्रवाईयों के लिए कभी भी मैदान इतना साफ नहीं था जितना इस वक्त है। इन दोनों के दिल्ली में बहुत से लोगों से ताल्लुकात हैं और इनका बहुत सम्मान है और इनके धर्मांतरण की रस्म की सारे शहर में खूब चर्चा है। इतवार की शाम को तमाम हिंदू आबादी चर्च के इर्द-गिर्द जमा थी……
सिपाही भी वहां मौजूद थे ताकि कुछ गड़बड़ न हो। उस वक्त तो कुछ न हुआ मगर तुरंत ही बाद पूरे शहर में बहुत जोरदार हलचल हुई। इज्जतदार खानदानों ने फौरन अपने बच्चों को दिल्ली कॉलेज से बाहर निकाल लिया, जहां मास्टर रामचंद्र पढ़ाते थे। और जो उलमा अंग्रेजों के हक में थे जिन्होंने भी अपने निरंतर उग्र होते ईसाई मालिकों के बारे में अपनी राय बदल दी।