Bangladesh Liberation War 26 मार्च 1971 पूर्वी पाकिस्तान ने ‘बांग्लादेश’ के रूप में अपने आपको एक स्वतंत्र देश घोषित किया। इसके बाद जो हालात बिगड़ते चले गए। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को पठानकोट हवाई अड्डे पर बमबारी करके लड़ाई की शुरुआत कर दी। भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया। भारत ने 6 दिसम्बर, 1971 को ‘बांग्लादेश’ को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी तो मुक्तिवाहिनी और भारतीय सेना की एक संयुक्त कमान गठित की गई।

इस बीच नई दिल्ली को मास्को के माध्यम से पता चला कि अमरीका पाकिस्तानी सेनाओं को बड़िसाल और नारायण गंज से निकालने की योजना बना रहा था, जहां पीछे हटती सेनाएं इकट्ठी हो रही थीं। जनरल मानेकशा ने एक रेडियो प्रसारण में पाकिस्तानी सेनाओं को चेतावनी देते हुए कहा कि वे बचकर नहीं भाग सकते क्योंकि उनके बाहर निकलने के सभी रास्ते बन्द कर दिए गए थे। उनके लिए आत्म-समर्पण कर देना ही सबसे बेहतर रास्ता था। जनरल मानेकशा ने उनसे वायदा किया कि उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाएगा।

हालांकि भारत ने ढाका पर फंदा कसना शुरू कर दिया था, फिर भी ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इसमें काफी समय लग रहा था पाकिस्तानी सेनाएं आत्म-समर्पण के लिए आगे नहीं आ रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वे आखिरी घमासान की योजना बनाकर ढाका के आसपास इकट्ठी हो रही थीं। मास्को भारतीय सेनाओं की धीमी रफ्तार को लेकर चिन्तित था। वह बांग्लादेश को भारत का वियतनाम नहीं बनने देना चाहता था। रूस की इसी चिन्ता के तहत विदेश उपमंत्री वेसिली कुज्नेत्सोव झट से दिल्ली पहुंचे। लेकिन जल्दी ही उन्हें यह यकीन हो गया कि पाकिस्तानी सेनाओं का मनोबल टूट चुका था। वे बांग्लादेश की स्थानीय जनता से पूरी तरह कट चुकी थीं और उनका आत्म-समर्पण अब कुछ ही दिनों की बात थी।

पाकिस्तान ने हथियारों और गोला-बारूद के लिए अमरीका से गुहार लगाई। अमरीका ने न सिर्फ इस पर गम्भीरता से विचार किया, बल्कि भारत द्वारा पाकिस्तानी बन्दरगाहों की नाकेबन्दी के बावजूद हथियारों की सप्लाई के तरीके भी सोचने लगा। संवाददाताओं ने अमरीका की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो राष्ट्रपति निक्सन के प्रेस सचिव का जवाब था, “कोई खबर नहीं है।

यह गोलमोल-सा जवाब अमरीका के पिछले बयानों से बिलकुल अलग था कि भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई की स्थिति में अमरीका तटस्थ रहेगा। वाशिंग्टन ने पाकिस्तान की मदद के इरादे से अमरीका और पाकिस्तान के बीच 1964 की सुरक्षा सन्धि का इस्तेमाल करने का विचार किया। यह पता चलते ही इन्दिरा गांधी ने एक सार्वजनिक सभा में अमरीका को चेतावनी देते हुए कहा

मैंने सुना है कि कुछ देश हमें धमकाने की कोशिश कर रहे हैं और पाकिस्तान के साथ किन्हीं सन्धियों और समझौतों की बात कर रहे हैं। मुझे इस बारे में पहले कुछ भी मालूम नहीं था, क्योंकि मैंने सिर्फ यह सुना था कि यह सन्धि कम्युनिज्म के खिलाफ थी। यह किसी प्रजातंत्र के खिलाफ लड़ने की सन्धि नहीं थी। यह न्याय की आवाज के खिलाफ नहीं थी। यह गरीबों को कुचलने के खिलाफ नहीं थी। लेकिन अगर ऐसा था तो फिर उन्होंने दुनिया से बहुत बड़ा झूठ बोला था।

निकसन ने पहले तो भारत को एक ‘चेतावनी’ भिजवाई और फिर अपने सातवें बेड़े को बंगाल की खाड़ी की तरफ रवाना कर दिया। इस बेड़े का नेतृत्व ‘एन्टरप्राइज’ नामक एक परमाणु-शक्तिधारी एयरक्राफ्ट कैरियर कर रहा था। इसकी जानकारी भी सबसे पहले मास्को से मिली, जिसने उत्तरी वियतनाम के पास टॉनकिन खाड़ी में सातवें बेड़े को भेजा गया एक सन्देश पकड़ा था।

स्वर्ण सिंह ने संयुक्त राष्ट्र से नई दिल्ली फोन करके ‘ऑपरेशन’ को जल्दी से पूरा करने के लिए कहा। सोवियत संघ ने उनसे कहा था कि वह संयुक्त राष्ट्र के युद्ध विराम के प्रस्ताव को ज्यादा देर नहीं लटका सकता। फिर भी, मास्को ने संयुक्त राष्ट्र से ‘राजनीतिक समाधान’ की अपील की थी। अगर पाकिस्तान इसे स्वीकार कर लेता तो उसी समय युद्ध-विराम हो जाता। भारत ने झट से (8 दिसम्बर, 1971) बांग्लादेश की अन्तरिम सरकार को मान्यता दे दी। ऑपरेशन की बागडोर संभाल रहे मेजर जनरल जेकब को आत्म-समर्पण से एक दिन पहले अमरीका के एक राजनयिक ने फोन किया। उसने उन्हें बताया कि नियाजी और फरमान अली दोनों ही अमरीका के सामने युद्ध-विराम का प्रस्ताव रख चुके थे।

लेकिन किंसिअर इस प्रस्ताव को अपने पास ही रखे रहे, इस उम्मीद में कि शायद पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान में भारत के कब्जे में आ चुके कुछ इलाके वापस छुड़ाने में सफल हो जाए।उन्होंने बड़ी मुश्किल से मुक्तिवाहिनी के जवानों को ब्रिगेडियर की हत्या करने से रोका। पाकिस्तानी सेना के हेडक्वार्टर में ही नियाजी और जेकब के बीच आत्म-समर्पण को लेकर बातचीत हुई। जेकब ने जो ड्राफ्ट दिल्ली भेजा था उसकी अब तक पुष्टि नहीं हुई थी। अपनी बातचीत के दौरान वे आत्म-समर्पण के पत्र को 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के सरेआम और बिना शर्त आत्म-समर्पण में बदलने में सफल रहे।

आत्म-समर्पण की घोषणा 15 दिसम्बर, 1971 को हुई। पाकिस्तान ने बहुत कोशिश की थी कि यह समर्पण संयुक्त राष्ट्र की उपस्थिति में हो। उसे आत्म समर्पण शब्द को लेकर भी हिचकिचाहट थी। लेकिन जेकब अड़े रहे और उन्होंने यह समर्पण ढाका की जनता के सामने खुलेआम करवाया। आत्म-समर्पण लेफ्टि. जनरल जे.एस. अरोड़ा की निगरानी में हुआ, जो इस कार्रवाई के लिए खासतौर से कलकत्ता से गए थे।

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