Bangladesh Liberation War (26 मार्च 1971) पूर्वी पाकिस्तान ने ‘बांग्लादेश’ के रूप में अपने आपको एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था। भारत की पूर्वी सीमा पर शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है। आखिरकार, भारत ने बांग्लादेश के गुरिल्लाओं को हथियार और प्रशिक्षण देना शुरू किया, जैसाकि पाकिस्तान ने भारत के नागा और भीजो विद्रोहियों के मामले में किया था। इन गुरिल्लाओं को सेना के अधिकारियों के नेतृत्व में सीमा सुरक्षा बल का भी भरपूर सहयोग मिलने लगा। भारत ने 6 दिसम्बर, 1971 को ‘बांग्लादेश’ को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी तो मुक्तिवाहिनी और भारतीय सेना की एक संयुक्त कमान गठित की गई।
पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को पठानकोट हवाई अड्डे पर बमबारी करके लड़ाई की शुरुआत कर दी तो भारत ने राहत की सांस ली। पाकिस्तानी सेना आपसी मतभेदों की शिकार थी। ऐसी अफवाहें थीं कि जब जनरल याहिया खान लड़ाई खत्म करना चाहते थे तो अपने सहयोगियों के आगे उनकी एक नहीं चली। लड़ाई से पहले तीनों सेना प्रमुख- थलसेना प्रमुख जनरल एस.एच.एफ. जे. मानेकशा, वायुसेना प्रमुख एवरचीफ मार्शल पी.सी. लाल और नौसेना प्रमुख एडमिरल एस.एम. नन्दा मे मिलकर जनरल मानेकशा को तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर चुन लिया था।
पाकिस्तान की तरफ से हमले की शुरुआत होते ही भारतीय सेनाएं हरकत में आ गई। योजना के अनुसार सबसे पहले चिटगांव बन्दरगाह और ढाका हवाई अड्डे पर बमबारी करके पाकिस्तानी वायुसेना को निष्क्रिय बना दिया गया। इसके साथ ही समुद्र का रास्ता भी बन्द कर दिया गया। इस तरह पाकिस्तानी सेना को पहुंचने वाली मदद के सभी रास्ते बन्द कर दिए गए।
जहां तक नौसेना का सम्बन्ध था, उसने न सिर्फ भारत के आसपास के समुद्री रास्ते बन्द कर दिए, बल्कि कराची बन्दरगाह की भी घेराबन्दी कर ली। पाकिस्तान इतना भ्रमित हो गया कि उसने अपने ही एक जहाज की भारतीय जहाज समझकर डुबो डाला। पाकिस्तान के एक वरिठ अधिकारी ने कहा था कि इस गलती के पीछे पाकिस्तानी नौसेना के एक बंगाली अधिकारी का हाथ था, जिसने ‘बांग्लादेश के प्रति अपनी निष्ठा की खातिर सही सन्देश को आगे नहीं पहुंचाया था।