ताशकन्द जाने से पहले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (lalbahadur shastri) ने वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामचारी (tt krishnamachari) को इस्तीफा देने के लिए कहा। उन्हें सन्देह था कि टी.टी.के. उनकी पीठ पीछे उनकी हंसी उड़ाते थे। इससे भी ज्यादा चिन्ताजनक बात यह थी कि टी.टी.के. ने इंदिरा गांधी (indira gandhi) के साथ मिलकर उनके खिलाफ मोर्चा खोल लिया था।

यह पहली बार नहीं था कि टी.टी. कृष्णामचारी को केबिनेट छोड़ना पड़ा हो। सात वर्ष पहले भी उन्हें इन आरोपों को लेकर इस्तीफा देना पड़ा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के एक उपक्रम ‘जीवन बीमा निगम’ के कुछ सौदों में उनकी संदिग्ध भूमिका रही थी। उस समय नेहरू ने टी.टी.के. के बारे में अपने सहयोगियों से कहा था कि उन्हें जाना होगा क्योंकि “मंत्री को अपने सचिव के किसी भी फैसले या कार्रवाई के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए।” इसके बाद नेहरू(jawaharlal nehru) ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर टी.टी.के. की ‘असीम क्षमता और कर्मठता की तारीफ की थी और यह भी लिखा था कि “उनका जाना मेरे और मेरी सरकार के लिए। एक बड़ा झटका है।

ऐसा माना जाता था कि टी.टी.के. को शास्त्री के केबिनेट से हटाए जाने के पीछे अमरीका का दबाव था। उन दिनों यह किस्सा काफी सुनने में आ रहा था कि राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन को उपमहाद्वीप के दो नेता रास नहीं आ रहे थे- भारत के टी.टी.के. और पाकिस्तान के जुल्फीकार अली भुट्टो । ये दोनों अमरीका-विरोधी माने जाते थे। कुलदीप नैयर ने भुट्टो से पूछा था कि क्या उन्हें अयूब की सरकार से हटाए जाने के पीछे जॉनसन का हाथ था। उनका जवाब था भी मैं उन थोड़े से राजनीतिज्ञों में से हूँ जो दोनों बड़ी ताकतों (अमरीका और सोवियत संघ) का कहर झेलने के बावजूद राजनीति में वापसी करने में सफल रहे हैं। बेचारे कृष्ण मेनन ने इनमें से एक को नाराज कर दिया था और वे कभी वापस नहीं लौट सके।

टी.टी.के. के इस्तीफे के बाद इंदिरा गांधी को लगने लगा कि अब उनके दिन भी पूरे हो गए थे और किसी भी दिन उनका पता भी कट सकता था। उनके काफी नजदीक माने जानेवाले दिनेश सिंह के अनुसार वे इंग्लैंड में बसने की सोचने लगी थीं। उन्होंने वहां के रहन-सहन के खर्चे और नेहरू की किताबों की रायल्टी के बारे में भी पता करवाया था। इन्दिरा गांधी को अहसास हो चुका था कि लड़ाई के बाद शास्त्री की ताकत बहुत बढ़ गई थी और हर जगह उन्हें देश के नए हीरो के रूप में देखा जाने लगा था। उन्होंने एक नया नारा भी दिया था- ‘जय जवान, जय किसान’-जो खूब लोकप्रिय हो चला था।

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