ऑकस (aukus security pact) के उभार से यूरोप से लेकर एशिया तक मची हुई है हलचल
लेखक:- अरविंद जयतिलक (वरिष्ठ स्तंभकार)
aukus security pact: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के नए त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ऑकस (एयूकेयूएस) समूह (aukus security pact) में अब जापान भी शामिल होगा। चीन का मुकाबला करने के लिए तीनों सदस्य देश जापान को शामिल करने की रणनीति को मूर्त रूप देना शुरू कर दिए हैं। गौरतलब है कि 2021 में तीनों देशों ने मिलकर ऑकस का गठन किया था। ऑकस के उभार से यूरोप से लेकर एशिया तक हलचल मची हुई है।
ड्रैगन (चीन) द्वारा बार-बार ऑकस (aukus security pact) के उभार को हथियारों की होड़ बढ़ाने वाला कदम करार दिया जा रहा है। दिलचस्प है कि चीन ही नहीं अमेरिका का खास सहयोगी फ्रांस भी ऑकस की बढ़ती ताकत से नाराज है। चीन और फ्रांस की बेचैनी के अलग-अलग निहितार्थ हैं।
चीन की बात करें तो उसे कतई पसंद नहीं है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आस्ट्रेलिया की सक्रियता बढ़े। इसलिए कि दक्षिणी चीन सागर में चीन की जबरन कब्जा नीति को आस्ट्रेलिया ने लगातार आलोचना की है। दूसरी ओर क्वाड समूह में आस्ट्रेलिया का सदस्य के तौर पर शामिल होना भी चीन के लिए बर्दाश्त के काबिल नहीं है। ड्रैगन को लगता है कि वह अमेरिका, भारत और जापान के साथ मिलकर उसकी घेराबंदी कर रहा है। गौर करें तो आस्ट्रेलिया से चीन की नाराजगी की कई अन्य वजहें भी हैं।
मसलन एलएसी विवाद में वह भारत का खुलकर समर्थन कर चुका है। जी-7 देशों की बैठक में विश्व व्यापार संगठन से चीन को बुरे बर्ताव के लिए दंडित करने की भी मांग कर चुका है। उल्लेखनीय है कि चीन ने मई 2020 में जौ की फसल पर 80 प्रतिशत से अधिक टैरिफ लगाकर आस्ट्रेलियाई जौ के आयात को प्रभावी ढंग से खत्म कर दिया था। चीन के इस कदम से आस्ट्रेलिया का गुस्सा चरम पर है। वह चीन को सबक सीखाने के लिए मौके की तलाश में है।
चीन की चिंता यह भी है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते सहयोग से भारत को आस्ट्रेलिया से यूरेनियम मिलने का रास्ता साफ हो सकता है। आस्ट्रेलिया यूरेनियम का बड़ा स्रोत है और अगर वह भारत को यूरेनियम देता है तो भारत को बिजली उत्पादन समेत कई अन्य मानवीय परियोजनाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी। अभी तक आस्ट्रेलिया परमाणु अप्रसार का तर्क देकर भारत को यूरेनियम आपूर्ति करने से बचता रहा है। लेकिन चीन के खतरनाक रवैए ने भारत-आस्ट्रेलिया को एक मंच पर ला दिया है। वैसे भी गौर करें तो भारत और आस्ट्रेलिया दो बहुसांस्कृतिक एवं बहुलतावादी लोकतांत्रिक देश हैं।
विश्व स्तर पर भू-सामरिक एवं भू-आर्थिक संदर्भों में दोनों देशों की अहम भूमिका रही है। परपरांगत लगाव और द्विपक्षीय विवादास्पद मुद्दों के अभाव के अलावा दोनों देश सुरक्षा एवं विश्व व्यवस्था के संदर्भ में समय-समय पर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।
अभी गत वर्ष पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और तत्कालीन आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मारिसन (scott morrison) के बीच संपन्न हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन में दोनों देशों ने कोरोना महामारी से निपटने के अलावा सात महत्वपूर्ण समझौते को आयाम दिया जिसके मुताबिक अब दोनों देशों की सेनाएं हिंद प्रशांत क्षेत्र में एकदूसरे के ठिकानों का इस्तेमाल हथियारों की मरम्मत और आपूर्ति के लिए कर सकेंगी। ऑकस के गठन को लेकर आस्ट्रेलिया कह चुका है कि उसने यह समझौता भारत को विश्वास में लेकर किया है और भारत उसके साथ है।
आस्ट्रेलिया ने यह भी कहा कि ऑकस (aukus security pact) आसियान के सदस्य देशों, प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों और क्वाड के सदस्यों को भी समर्थन देगा। हालांकि अमेरिका ने फ्रांस की नाराजगी को दूर करते हुए कहा था कि उसका यूरोपीय सहयोगियों से गहरा रिश्ता है और उसकी मंशा नए सुरक्षा गठबंधन ऑकस के जरिए क्षेत्रीय विभाजन पैदा करना नहीं है। लेकिन सच यहीं है कि अमेरिका नए सुरक्षा गठबंधन के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। ऐसा इसलिए कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का केंद्र बन गया है। इस क्षेत्र में दुनिया की आधी चीजों का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में दुनिया की दूसरी (चीन) और तीसरी (जापान) अर्थव्यवस्था वाले देश अवस्थित हैं। गौर करें तो यह क्षेत्र न सिर्फ चीन व जापान बल्कि भारत और दक्षिण कोरिया समेत पश्चिमी देशों के हितों से जुड़ा हुआ है। इन परिस्थितियों के बीच अगर अमेरिका अपने मित्र देशों के साथ त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ऑकस को विस्तार देने के लिए जापान को साथ लेना चाहता है तो यह अस्वाभाविक नहीं है।
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