सम्मान के पीछे राजनीति के चलते पद्मभूषण सम्मान लेने से किया मना
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
BIOGRAPHY OF VILAYAT KHAN: उस्ताद विलायत खां का नाम इस युग के महानतम सितार वादकों में शामिल है। उनका जन्म २८ अगस्त, १९२८ को एक संगीत घराने में गौरीपुर गाँव में हुआ था, जो आज बंगलादेश में है। अपने जीवन को सितार वादन में उन्होंने इस तरह से शामिल किया कि वे २०वीं सदी के सबसे प्रभावी संगीतकार के रूप में पहचाने गए।
संगीत में उनके घराने का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। दरअसल संगीत उनके शरीर में रक्त की तरह प्रवाहित होता रहा। उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन खाँ साहिब अपने जमाने के लोकप्रिय सितार वादक थे। इसी प्रकार उनके दादा उस्ताद इमदाद हुसैन खाँ साहिब एक प्रसिद्ध रुद्र वीणा वादक थे।
13 साल की उम्र में पिता का निधन
कम आयु में ही विलायत खां पर परिवार की जिम्मेदारियां आन पड़ीं। जब वे १३ वर्ष के थे, तभी में ही उनके पिता का निधन हो गया। उन्हें परिवार चलाने के लिए काम की तलाश में भटकना पड़ा।
1930 के दशक में उस्ताद विलायत खां ने अपने मामा जिंदा हुसैन खां के संरक्षण में सितार बजाने की तालीम ली। यह वही समय था, जब उन्होंने ‘गायकी अंग’ का विकास किया। बाद में यही उनका ‘ठप्पा’ बन गया और लोकप्रिय हुआ। इस वादन शैली में सितार वादन गायन की खयाल जैसी शक्ल अख्तियार कर लेता है।
फिल्मों में भी दिया संगीत
विलायत खाँ का व्यावसायिक कैरियर विविधतापूर्ण और बहुत व्यापक है। उन्होंने बहुसंख्यक विदेशी दौरे किए। उनके असंख्य रिकॉर्ड हैं और बोसियों फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया है, जिनमें सत्यजीत रे की ‘जलसागर’ भी शामिल है। इतना सब होने के बावजूद उनका कैरियर विवादों से अछूता नहीं रहा। इसका सबसे बड़ा कारण उनके सख्त सिद्धांत रहे।
पद्म भूषण ठुकराया
भारत में सम्मान वितरण के पीछे होने वाली राजनीति के भी वे कटु आलोचक रहे। इसी के चलते उन्होंने पद्मभूषण पुरस्कार ठुकरा दिया। वे आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) के प्रचालन को लेकर उसके भी मुखर आलोचक थे। उन्होंने केवल एक सम्मान ग्रहण किया था, और वह था – ‘ आफताब-ए-सितार’ ।
विलायत खाँ से आज के बहुत से नामचीन संगीतकार प्रभावित हैं। बहुत से लोगों को उन्होंने सितार वादन सिखाया भी। इनमें उनके दो पुत्र उस्ताद शुजात खाँ और हिदायत खाँ सहित पं. अरविंद पारिख भी शामिल हैं। यही नहीं, अपने छोटे भाई उस्ताद इमरत खाँ को भी छोटी उम्र में उन्होंने संगीत की तालीम दी थी, जो एक अच्छे सितार और सुरबहार वादक रहे हैं। उस्ताद विलायत खाँ के भानजे रईस खाँ भी एक प्रसिद्ध सितार वादक हैं।
उस्ताद विलायत खाँ का निधन फेफड़ों के कैंसर के चलते १३ मार्च, २००४ को मुंबई के जसलोक अस्पताल में हो गया। वे तब ७५ वर्ष के थे।
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