दिल्ली में गांधीजी कहां ठहरे

गांधीजी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान लौटे थे। 1915 से 1948 तक के 33 वर्षों के अर्से में उन्हें बीसियों बार दिल्ली आना पड़ा। दिल्ली आकर जहां-जहां वह ठहरे, वे स्थान भी गांधीजी के स्मारक के रूप ही हैं, इसलिए उनको जानकारी दिलचस्पी से खाली न होगी।

1915-18 शुरू-शुरू में गांधीजी जब दिल्ली आते थे तो वह अपने दोस्त सी. एफ. एंड्र्यूज के साथी प्रिंसिपल रुद्र के साथ कश्मीरी दरवाजे के सेंट स्टीफेंस कालेज में ठहरा करते थे। सड़क के साथ ऊपर की मंजिल में उनका कमरा था, जहां वह ठहरा करते थे। फरवरी 1981 में वह दिल्ली आए थे और फिर अप्रैल में लेखक का पहली बार उनसे परिचय हुआ।

1919

मार्च 1919 में रौलेट कानून के खिलाफ गांधीजी का सत्याग्रह शुरू हुआ। 13 अप्रैल को जलियांवाला का काला कांड घटित हुआ। गांधीजी ने यह मुनासिब नहीं समझा कि रुद्र साहब को राजनीति में घसीटा जाए, चुनांचे उन्होंने डा. अंसारी की कोठी नं. 1, दरियागंज में ठहरना शुरू कर दिया।

अक्तूबर 1919 में पंजाब जाते समय वह दिल्ली से गुजरे।

1920-21 1920 में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ, जो गांधीजी की देखरेख में चलता था। होम रूम लीग के प्रेसीडेंट भी वही थे। दिल्ली में जलियांवाला कांड की जांच के लिए हंटर कमेटी भी बैठी हुई थी। उधर गांधीजी ने असहयोग का आंदोलन भी शुरू कर दिया था। हकीम अजमल खां और डा. अंसारी उन दिनों दिल्ली के मुख्य नेताओं में से थे। कांग्रेस और खिलाफत की बहुत-सी बैठकें हकीम साहब के घर पर बल्लीमारान में हुआ करती थीं। गांधीजी को बार- बार दिल्ली आना पड़ता था। इन दिनों वह डा. अंसारी की कोठी पर ठहरा करते थे।

1922-23 10 मार्च 1922 को गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए और 18 मार्च को उन्हें छह वर्ष कैद की सजा हो गई। 1923 के अंत तक वह जेल में रहे।

1924

5 फरवरी 1924 के दिन गांधीजी रिहा हुए। इसी साल देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए, जिनमें कोहाट का दंगा सबसे भयंकर था। गांधीजी कोहाट जाने के लिए सितंबर 1924 में दिल्ली आए और मौलाना मोहम्मद अली के मकान पर कूचा चेलान में ठहरे, जहां हमदर्द अखबार का दफ्तर भी था। यहीं उन्होंने कौमी एकता के लिए 21 दिन का उपवास शुरू किया। पहले सप्ताह वह मौलाना के मकान पर रहे, फिर उन्हें मलकागंज रोड, सब्जीमंडी में लाला रघुवीर सिंह की कोठी दिलकुशा में ले जाया गया। वहां उनका उपवास समाप्त हुआ। दिल्ली से वह सर्वदलीय कान्फ्रेंस में शरीक होने नवंबर के तीसरे सप्ताह में बंबई चले गए।

1925 इस वर्ष गांधीजी कांग्रेस के प्रेसीडेंट थे। उन्होंने इस वर्ष देश का दौरा किया और वह कई बार सर्वदलीय कान्फ्रेंस के सिलसिले में दिल्ली आए। इन दिनों वह लाला रघुवीर सिंह जी की कोठी पर कश्मीरी दरवाजे ठहरते रहे।

1926

इस वर्ष गांधीजी करीब-करीब साबरमती आश्रम में ही रहे और जैसा कि कानपुर कांग्रेस के समय दिसंबर 1925 में उन्होंने कहा था, उन्होंने एक वर्ष तक सियासत में कोई भाग नहीं लिया।

1927

मार्च मास में वह गुरुकुल कांगड़ी की रजत जयंती में शरीक होने हरिद्वार गए थे। वापसी पर उन्हें दिल्ली होकर साबरमती जाना था। चंद घंटों के लिए वह लेखक के मकान कटरा खुशहाल राय में ठहरे। इस मकान पर वह पहली बार 1924 के उपवास के पश्चात नवंबर में आए थे और फिर 8 मार्च 1931 के दिन आए।

7 अप्रैल को वह फिर एक बार अपने मंत्री कृष्णदास को देखने आए, जो बीमार पड़े थे। 10, 11, 12, 14 दिसंबर 1933 को गांधीजी इस मकान पर लेखक को देखने आते रहे। लेखक उन दिनों सख्त बीमार था । 27 अक्तूबर और 5 नवंबर 1936 को उन्हें लार्ड इर्विन से मिलने फिर एक बार दिल्ली आना पड़ा, उस वक्त वह डा. अंसारी की दरियागंज की कोठी पर ठहरे थे। सुबह गांधीजी लेखक की माता को देखने इस घर पर आए थे। यह उनका इस मकान पर अंतिम आगमन था।

1928

इस वर्ष सर्वदलीय कान्फ्रेंस की कई बैठकें दिल्ली में हुईं, जिनमें शरीक होने फरवरी मार्च और मई में गांधीजी को दिल्ली आना पड़ा। तीनों बार वह चांदनी चौक, नटवों के कूचे में सेठ जमनालाल बजाज के मित्र सेठ लक्ष्मीनारायण

1929

गाडोदिया के मकान पर ऊपर की मंजिल में ठहरे। फरवरी महीने में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में शरीक होने गांधीजी जब दिल्ली आए तो वह विट्ठलभाई पटेल की कोठी नं. 20, अकबर रोड, नई दिल्ली पर ठहरे। विट्ठलभाई उन दिनों असेंबली के अध्यक्ष थे। मार्च मास में वर्मा जाते समय थोड़ी देर के लिए वह हरिजन निवास में ठहरे थे।

5 जुलाई को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में शरीक होने वह फिर दिल्ली आए और दो दिन कूचा नटवां में सेठ लक्ष्मीनारायण के घर ठहरे। 23 दिसंबर को गांधीजी लाई इर्विन से मिलने फिर एक बार दिल्ली आए। इस बार वह कोठी नं. 1, औरंगजेब रोड पर ठहरे।

1930

जनवरी के प्रथम सप्ताह में लाहौर कांग्रेस से लौटते समय गांधीजी जब साबरमती जा रहे थे तो एक दिन के लिए वह सेठ लक्ष्मीनारायण की गोशाला रामपुरा गांव में ठहरे थे। इसी वर्ष गांधीजी ने नमक भंग का सत्याग्रह चलाया। 12 मार्च से दांडी यात्रा की और 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़ा। 5 मई को वह कराड़ी में गिरफ्तार कर लिए गए। शेष सारा वर्ष वह जेल में रहे।

1931

गांधीजी 26 जनवरी को यरवदा जेल से रिहा हुए और 17 फरवरी को दिल्ली आए। इस बार वह डा. अंसारी की कोठी पर ठहरे। 4 मार्च को गांधी इर्विन समझौता हुआ। मार्च को वह दिल्ली से चले गए। 19 मार्च को वह कराची कांग्रेस में शरीक होने फिर दिल्ली आए और डा. अंसारी की कोठी पर ही ठहरे। कराची से वापसी पर 2 अप्रैल को वह फिर दिल्ली आए और डा. अंसारी के घर पर दरियागंज में ठहरे। 24 अप्रैल को लार्ड विलिंगडन से मिलने शिमला जाते हुए वह दिल्ली से गुजरे और दूसरे ही दिन वह गोलमेज कान्फ्रेंस में शरीक होने बंबई के लिए रवाना हो गए, जहां से वह 29 अप्रैल को लंदन के लिए रवाना हुए। 28 दिसंबर को वह विलायत से लौटकर आए और 31 दिसंबर की रात को फिर से सत्याग्रह शुरू करने का प्रस्ताव पास कर दिया।

1932 गांधीजी 4 जनवरी की सुबह गिरफ्तार कर लिए गए और सारा वर्ष जेल में ही रहे।

1933

18 मई को गांधीजी जेल से रिहा किए गए। उन्होंने 21 दिन का उपवास शुरू कर दिया था।

10 दिसंबर को गांधीजी हरिजन यात्रा के सिलसिले में दिल्ली आए। इस बार वह डा. अंसारी की कोठी पर ठहरे। 14 दिसंबर को वह यहां से लौट गए।

1934

अक्तूबर मास में जो कांग्रेस अधिवेशन बंबई में हुए था, उसमें गांधीजी कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने चार आने की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया। वह 29 दिसंबर को दिल्ली आए और इस बार एक मास के लिए वह हरिजन निवास किंग्सवे कैंप में ठहरे।

1935

2 जनवरी के दिन गांधीजी ने हरिजन निवास का शिलान्यास किया। 28 जनवरी को वह वर्धा चले गए।

1936

चौदह मास के पश्चात 8 मार्च के दिन गांधीजी फिर दिल्ली आए और हरिजन निवास में ही ठहरे तथा 27 मार्च को कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में शरीक होने चले गए। 30 अप्रैल से गांधीजी सेवाग्राम में रहने चले गए, जिसका नाम पहले सेगांव था। 27 अक्तूबर को इलाहाबाद से वर्धा जाते समय दिन-भर के लिए गांधीजी हरिजन निवास में ठहरे ।

1937

4 अगस्त को गांधीजी लार्ड लिनलिथगो से मिलने फिर एक बार दिल्ली आए और हरिजन निवास में ठहरे। मार्च मास में दिल्ली में आल इंडिया कन्वेंशन थी, जिसमें शरीक होने गांधीजी दिल्ली आए और 15 से 22 मार्च तक

1938

हरिजन निवास में ठहरे। मई में गांधीजी ने खान अब्दुल गफ्फार खां के साथ सरहदी सूबे की यात्रा की। वह आते-जाते समय दिल्ली से गुजरे।

20 सितंबर को वह दिल्ली आए और हरिजन निवास में ठहरे, जहां 25 सितंबर को उन्होंने लेखक की माता जानकी देवी की स्मृति में एक मंदिर का शिलान्यास किया। 4 अक्तूबर को वह सरहदी सूबे की यात्रा के लिए वहां से निकले, जो 9 नवंबर को समाप्त हुई। वहां से वह सेवाग्राम चले गए। राजकोट के आमरण अनशन के पश्चात गांधीजी 15 मार्च को दिल्ली आए और इस बार वह बिरला सदन में अबुकर्क रोड, नई दिल्ली में ठहरे। 7 अप्रैल को वह राजकोट लौट गए।

1939

इसी वर्ष 3 सितंबर को दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया और गांधीजी को 4 और 25 सितंबर को तथा 5 अक्तूबर को लार्ड लिनलिथगो से मिलने दिल्ली होकर शिमला जाना पड़ा। पहली नवंबर को गांधीजी दिल्ली आए और बिरला भवन में ठहरे। दूसरी नवंबर को उन्होंने जानकी देवी मंदिर का हरिजन निवास में जाकर उद्घाटन किया, जिसका 25 सितंबर 1938 के दिन उन्होंने शिलान्यास किया था।

5 फरवरी को वाइसराय से मिलने गांधीजी फिर दिल्ली आए और बिरला भवन में ही ठहरे।

1940

29 जून को वाइसराय से मिलने शिमला जाते समय गांधीजी दिन भर के लिए दिल्ली में बिरला भवन में ठहरे। 30 जून को वह शिमला से लौट आए और इस बार वह 7 जुलाई तक राजपुर रोड पर कोठी नं. 32 पर डा. शौकतुल्लाह अंसारी के साथ ठहरे। 26 सितंबर को गांधीजी फिर से दिल्ली आए और दिन-भर के लिए बिरला भवन में ठहरे। रात को वह वाइसराय से मिलने शिमला चले गए, जहां से वह 1 अक्तूबर को लौटकर बिरला भवन में ठहरे और शाम को ही वर्धा चले गए।

1942-44 11 मार्च 1942 को महायुद्ध की स्थिति बहुत भयंकर हो गई थी, ब्रिटिश मिशन की नियुक्ति हुई 25 मार्च को स्टेफर्ड क्रिप्स दिल्ली आए और 27 मार्च को वह गांधीजी से मिले। गांधीजी 5 अप्रैल तक बिरला भवन में ठहरे।

8 अगस्त 1942 को बंबई में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त को वह बिरला हाउस, बंबई से गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें आगा खां महल, पूना में रखा गया, जहां से वह 6 मई 1944 को रिहा किए गए।

1945

गांधीजी सवा तीन वर्ष बाद 17 जुलाई की सुबह शिमला में लार्ड वेवेल से मिलकर दिल्ली आए थे। वह इस बार भी दिन-भर के लिए बिरला भवन में ठहरे और शाम को ही वर्धा लौट गए।

1946

गांधीजी ने निश्चय किया था कि भविष्य में वह हरिजन कालोनी में ठहरा करेंगे। अब महायुद्ध समाप्त हो चुका था और इंग्लैंड में लेबर पार्टी सत्ता में आ गई थी, जिसने हिंदुस्तान को स्वराज देने का फैसला कर लिया था और हिंदुस्तान में इसकी तैयारी करने के लिए केबिनेट मिशन भेजा गया था। गांधीजी पहली अप्रैल के दिन बंबई से दिल्ली आए और निजामुद्दीन स्टेशन पर उतरे। इस बार उन्हें वाल्मीकि मंदिर में उतारा गया, जो नई दिल्ली में रीडिंग रोड पर है।

वाल्मीकि मंदिर : यह स्थान रीडिंग रोड के अंत पर पंचकुइयां रोड की तरफ अंदर जाकर हरिजन कालोनी के साथ ही है। गांधीजी के कारण यह स्थान ऐतिहासिक बन गया है। सड़क जो नई दिल्ली की वर्कशाप के साथ-साथ अंदर गई है, उस पर अंदर जाकर बाएं हाथ घूमना होता है। वहां करीब 150 फुट लंबे और 100 फुट चौड़े एक अहाते में चारदीवारी के अंदर एक सहन है, जिसके बीच में वाल्मीकि ऋषि का मंदिर है और मंदिर के दाएं-बाएं दो कमरे बने हुए हैं। बाएं हाथ वाले कमरे में, जो 15-20 फुट लंबा और 10-12 फुट चौड़ा होगा और जिसके दो दरवाजे हैं, गांधीजी के ठहरने का प्रबंध किया गया था। साथियों के ठहरने के लिए डेरे लगाए गए थे। एक और कमरे में जो सदर दरवाजे के साथ है, भोजनालय बनाया गया था। सहन के दाएं हाथ एक चबूतरे पर प्रार्थना का प्रबंध किया गया था, जो हर शाम के समय होती थी। उसके साथ वाले मैदान में हजारों नर-नारी जमा होते थे।

कैबिनेट मिशन में भारत सचिव पैथिक लारेंस सर स्टेफर्ड क्रिप्स और ए. बी. एलेक्जेंडर आए थे। गांधीजी पूरा अप्रैल मास यहां ठहरे। गर्मी का मौसम होने से वह पहली मई को शिमला चले गए। वहां से 27 को वह मसूरी गए। वहां 8 जून तक वह ठहरे और वहां से दिल्ली के वाल्मीकि मंदिर में लौट आए। वहां वह 28 जून तक ठहरकर पूना चले गए।

26 अगस्त को गांधीजी फिर दिल्ली आए और वाल्मीकि मंदिर में ठहरे। 2 सितंबर को भारत की अंतरिम राष्ट्रीय सरकार बनी, जिसमें श्री जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बनाए गए। उस दिन सोमवार का दिन था गांधीजी का मौन दिवस। शपथ लेने से – राष्ट्रीय हुकूमत के मंत्री गांधीजी से आशीर्वाद लेने आए। गांधीजी ने कागज के एक टुकड़े पर लिखकर मंत्रियों को चार बातें करने का आदेश दिया था : (1) नमक कर का अंत करो; दांडी कूच को मत भूलो, (2) एकता प्राप्त करो, (3) छुआछूत को दूर करो और (4) खादी सबको मिल सके, ऐसा प्रयत्न करो।

28 अक्तूबर को गांधीजी नोआखली जाने के लिए कलकत्ता के लिए रवाना हो गए।

1947-48 पांच मास बाद गांधीजी वायसराय लार्ड माउंटबेटन से मिलने और अंतर- एशियाई कान्फ्रेंस में शरीक होने 31 मार्च को फिर से दिल्ली आए और वाल्मीकि मंदिर में ठहरे। 12 अप्रैल को वह बिहार चले गए। 1 मई को उन्हें कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में शरीक होने फिर से दिल्ली आना पड़ा। वह वाल्मीकि मंदिर में ही ठहरे और 8 मई को कलकत्ता लौट गए।

25 मई को श्री जवाहरलाल के बुलावे पर गांधीजी को फिर दिल्ली आना पड़ा। वह वाल्मीकि मंदिर में ही ठहरे। 5 जुलाई को वाइसराय की पत्नी लेडी माउंटबेटन गांधीजी से मिलने वाल्मीकि मंदिर में आईं। यह पहला अवसर था कि किसी वाइसराय की पत्नी इस प्रकार आई थीं। 30 जुलाई को गांधीजी कश्मीर गए, जहां से 6 अगस्त को वह लाहौर आए और वहां से सीधे कलकत्ता चले गए। वाल्मीकि मंदिर में गांधीजी का यह अंतिम बार ठहरना था। गांधीजी के बार-बार यहां ठहरने से उनकी सुविधा के लिए मंदिर के सामने चबूतरा बना दिया गया था। मंदिर के दाएं-बाएं दो और कमरे सीमेंट की चादरों की छत के बना दिए गए थे। जिस चबूतरे पर गांधीजी प्रार्थना किया करते थे, उसको अब संगमरमर का बना दिया गया है। यह अब गांधी स्मारक में शरीक है। इसकी सात सीढ़ियां हैं। चबूतरा दस फुट लंबा, 6 फुट चौड़ा और पांच फुट ऊंचा है। जहां पास वाले मैदान में लोग बैठते थे, उसमें भी घास लग गई है।

नौ सितंबर को उन्हें कलकत्ता से दिल्ली लौटना पड़ा। दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम फसाद की आग भड़की हुई थी और कर्फ्यू लगा हुआ था। वाल्मीकि मंदिर शरणार्थियों से भरा पड़ा था। इसलिए गांधीजी को बिरला भवन में ठहराया गया, जहां वह अपने देहावसान के अंतिम दिन 30 जनवरी 1948 तक ठहरे रहे।

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