भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह कैसे आवंटित किए जाते हैं
History of election symbols of political parties: आज के चुनावी लोकतंत्र में चुनाव चिन्ह के बिना राजनीतिक दल के अस्तित्व की कल्पना एकांगी है। चुनावी दल की पहचान ही चुनाव चिन्ह से है। पचास के दशक में हुए चुनावों ने मतदाताओं की निरक्षरता को मिटाने और राजनीतिक समझ को बढ़ाने का काम चुनाव चिन्हों ने ही किया। ऐसे में, राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह ‘माध्यम से अधिक सन्देश’ के रूप में मतदाताओं के मानस पटल पर अंकित हो गया।
उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग का प्रमुख दायित्व भारत के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति के कार्यालयों, संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) एवं निचले सदन (लोक सभा) तथा राज्य विधानसभाओं के उच्च व निचले सदनों सदनों के चुनावों को आयोजित करना है। निर्वाचन आयोग ने अपनी इसी भूमिका के अनुरूप, अगस्त 1951 में फॉरवर्ड ब्लॉक (मार्क्सवादी) को ‘शेर’, फॉरवर्ड ब्लाक (रूइकर) को ‘हाथ’, हिंदू महासभा को ‘घोड़ा-सवार’, किसान मजदूर प्रजा पार्टी को ‘झोपड़ी’, रामराज्य परिषद् को ‘उगता सूरज’, शिडयूल्ड कॉस्ट फेडरेशन को ‘हाथी’, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को ‘दो बैलों की जोड़ी’, सोशलिस्ट पार्टी को ‘पेड़’, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ‘बाली-हंसिया’, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को ‘कुदाल-कोयलाझोंक’ और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया को ‘जलती मशाल’ के चुनाव चिन्ह (History of election symbols of political parties) प्रदान किए।
History of election symbols of political parties
फिर, सितंबर 1951 को निर्वाचन आयोग ने बोल्शेविक पार्टी ऑफ इंडिया को ‘सितारा‘, कृषिकार लोक पार्टी को ‘गेंहू झाड़ता किसान‘ और भारतीय जनसंघ को ‘दीपक‘ का चुनाव चिन्ह प्रदान किए। वर्ष 1952 में दिल्ली के पहले विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, शिडूल्यड कॉस्ट फैडरेशन, रामराज्य परिषद, हिंदू महासभा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक और सोशलिस्ट पार्टी समेत कुल दस राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग से आवंटित चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ा।
राजनीतिक दलों की संख्या अब दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। सात प्रमुख राष्ट्रीय दल, 26 राज्य स्तरीय दल और 2301 से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त दल हैं। दिल्ली में वर्ष 1972 में हुए महानगर परिषद् चुनाव में छह राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और एक राज्य स्तरीय दल ने भाग लिया। इसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन), स्वतंत्र पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया नए थे।
उल्लेखनीय है कि समाजवादियों को वर्ष 1955 में दुविधा की स्थिति का सामना करना पड़ा। इसका बड़ा कारण, कांग्रेस की वो घोषणा थी। दरअसल, कांग्रेस ने यह घोषणा की कि उसका लक्ष्य समाजवादी बनावट वाले समाज की संरचना है। इसका असर यह हुआ कि सोशलिस्ट पार्टी के कई टुकड़े हो गए। कुछ दल एक दूसरे के साथ समायोजित भी हुए। इस तरह में कई समाजवादी दल बने। इनमें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का नाम प्रमुख है। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने ‘पेड़‘ के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा।
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वहीं वर्ष 1969 में अविभाजित कांग्रेस के चुनावी चिन्ह को लेकर कांग्रेस के दो गुटों में विवाद हुआ। निर्वाचन आयोग ने इंदिरा गांधी की अगुवाई वाले कांग्रेस के धड़े को दल में प्राप्त बहुमत के आधार पर चिन्ह दे दिया। इस निर्णय को दूसरे गुट कांग्रेस (आर्गेनाइजेशन), जो कि सिंडीकेट नाम से अधिक प्रसिद्ध था, ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। जिस पर उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में दोनों गुटों को पार्टी के चुनावी चिन्ह से वंचित कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि एक राजनीतिक दल दो या दो से अधिक गुटों में बंट सकता है लेकिन चुनाव चिन्ह नहीं। चुनाव चिन्ह दो बराबर के मालिकों के बीच बांटने वाली संपत्ति नहीं है।
सो, इंदिरा कांग्रेस ने ‘गाय-बछड़ा’ और सिंडीकेट ने ‘चरखा चलाती महिला’ के चिन्ह पर महानगर परिषद् चुनाव लड़ा। जबकि सी. राजगोपालचारी की स्वतंत्र पार्टी का चिन्ह ‘सितारा’ और राज्य स्तरीय दल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया ने ‘हाथी’ के चिन्ह तथा पंजीकृत (गैर मान्यता प्राप्त) दल हिन्दू महासभा ने ‘घोड़ा-सवार’ चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा।
घट गई राष्ट्रीय दलों की संख्या
वहीं 1977 में राष्ट्रपति शासन के तहत हुए महानगर परिषद् चुनाव में चार राष्ट्रीय, एक राज्य स्तरीय दल और पांच पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त दलों ने हिस्सा लिया। इनमें कांग्रेस और भाकपा पुराने राष्ट्रीय दल थे जबकि जनता पार्टी ‘हलधर किसान’ और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ‘हंसिया-हथौड़ा’ के नए चुनाव चिन्हों के साथ मैदान में उतरें। दूसरी तरफ राष्ट्रीय दलों की संख्या छह से घटकर चार ही रह गई।
ऐसा आपातकाल अवधि के बाद जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल और सोशलिस्ट पार्टी के आपसी विलय के कारण हुआ। इन चुनावों में वर्ष 1972 के चुनावों की तुलना में अधिक संख्या में (पांच) पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने चुनाव लड़ा। जिसमें हंसिया-सितारा चुनाव चिन्ह वाली सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया, हिन्दू महासभा, रामराज्य परिषद रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (खोब्रागडे) थी। जबकि 1983 के महानगर परिषद् चुनाव में सात राष्ट्रीय दलों ने चुनाव में भाग लिया। इनमें लोकदल (हल वाली बैलों की जोड़ी के साथ खेती करता किसान), भारतीय जनता पार्टी (कमल का फूल) और इंडियन कांग्रेस सोशलिस्ट (चरखा) दल नए चुनाव चिन्हों के साथ मैदान में उतरे थे जबकि बाकि भाकपा, माकपा, कांग्रेस और जनता पार्टी पुराने ही थे। History of election symbols of political parties
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