चीन (china) ने भारत (India) के ही पुराने नक्शों (old map) को आधार बनाकर कई इलाकों पर दावा ठोंका। इन नक्शों को जलाने के निर्देश जारी किए गए। जिसके जवाब में चीन ने कुछ क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया। नेहरू (jawaharlal nehru) के लिए यह व्यक्तिगत झटका था। दरअसल, नेहरू यह मानते थे कि चीन कभी धोखा नहीं देगा। ऐसा लगता था कि चीन भी यही चाहता था कि दोनों देशों का झगड़ा लड़ाई की हद तक न पहुँचे। चाउ एन लाई (Zhou Enlai) इसी इरादे से दिल्ली भी आए, ताकि बातचीत से मामला सुलझ सके और दोनों देशों के सम्बन्ध सुधर सकें। नेहरू ने उन्हें बताया कि भारतीय भावनाएं बहुत ज्यादा भड़की हुई थीं और सरकार में उनके सहकर्मियों का कहना था कि उनकी नीतियों के कारण चीन ने भारत के इलाकों पर कब्जा कर लिया था। कुलदीप नैयर ने अपनी किताब एक जिंदगी काफी नहीं में साझा किसा किस्सा

इस बीच, नेहरू ने लद्दाख में भारतीय उपस्थिति दर्शाने के लिए पुलिस चौकियाँ स्थापित करने का आदेश दिया था। इस तरह की 64 चौकियां स्थापित की गई थीं। लेकिन वे टिकाऊ नहीं थीं। गृह सचिव बी. एन. झा ने मुझे बताया था कि यह शानदार आइडिया’ गुप्तचर विभाग के निदेशक बी.एन. मलिक के दिमाग की उपज था कि “हम जहाँ-जहाँ मुमकिन हो अपनी पुलिस चौकियाँ स्थापित कर लें, भले ही चीनी पंक्तियों के पीछे, ताकि हम इन इलाकों पर अपने दावे को मजबूत कर सकें।” यह नेहरू की ‘फॉरवर्ड’ नीति थी। “लेकिन”, झा ने आगे कहा, “मलिक को यह बात नहीं सूझी कि पीछे से कोई मदद न मिलने के कारण ये पुलिस चौकियाँ चीन का दबाव पड़ते ही तिनकों की तरह बिखर जाएँगी। हमने बेकार ही अपने पुलिस कर्मियों की जानें खतरे में डाल दीं। सच कहा जाए तो यह सेना का काम था। लेकिन सेना पीछे से युद्धस्तरीय मदद के बिना अपने आदमियों को खतरे में डालने के लिए तैयार नहीं थी। इसलिए यह काम पुलिस को सौंपा गया। और सचमुच, जब 21 अक्टूबर, 1962 को चीन ने हमला किया तो ये चौकियां तिनकों की तरह ढह गई। चीन के साथ किसी भी तरह से कोई बात न बनती देख नेहरू ने सेना को चीनियों को भारतीय जमीन से खदेड़ने का आदेश दे दिया।

मुझे याद है कि लड़ाई छिड़ने से पहले वी.के. कृष्ण मेनन ने सीमा-विवाद को सुलझाने के लिए एक ‘समाधान’ पेश किया था। लेकिन पन्त ने इसे ठुकरा दिया था। मेनन जेनेवा में चीन के विदेश मंत्री चेन यी से मिले थे। उन्होंने चेन यी से कहा था कि भारत अक्सई चिन पर पीकिंग के अधिकार को स्वीकार कर सकता था और साथ ही सड़क से दस मील तक के इलाके को मध्यवर्ती (बफर) क्षेत्र मान सकता था, बशर्ते कि चीन आधिकारिक रूप से पूर्व में मैकमोहन रेखा को और शेष लद्दाख पर भारत के अधिकार को स्वीकार कर ले

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